आलोक पुराणिक को लेख : महामारी में भी छलांगें लगाता विदेशी निवेश
भारतीय रिजर्व बैंक ने आंकड़ा दिया है कि 23 अक्तूबर 2020 को खत्म हुए हफ्ते में भारतीय विदेशी मुद्रा कोष 560.532 अरब डालर के स्तर पर पहुंचा। 2020 में पांच जून को पहली बार देश में विदेशी मुद्रा कोष ने 500 अरब डालर का आंकड़ा पार किया। बीते छह महीनों में मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स करीब पच्चीस प्रतिशत उछल गया है। छह महीनों में सेंसेक्स का करीब पच्चीस प्रतिशत उछलना असाधाऱण है, खासकर कोरोना से संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूरत में। कुल मिलाकर इन आंकड़ों से यही साफ होता है कि संकट की सूरत में भी संकट दिखाई नहीं पड़ रहा है।

आलोक पुराणिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंकड़ा दिया-कोरोना संकट के बावजूद अप्रैल-अगस्त 2020 की अवधि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रिकार्ड स्तर पर रहा। 35.73 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, पिछले साल यानी अप्रैल-अगस्त 2019 की अवधि में आये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुकाबले 13 प्रतिशत ज्यादा रहा। एक और आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक ने दिया 23 अक्तूबर 2020 को खत्म हुए हफ्ते में भारतीय विदेशी मुद्रा कोष 560.532 अरब डालर के स्तर पर पहुंचा। 2020 में पांच जून को पहली बार देश में विदेशी मुद्रा कोष ने 500 अरब डालर का आंकड़ा पार किया।
बीते छह महीनों में मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स करीब पच्चीस प्रतिशत उछल गया है। छह महीनों में सेंसेक्स का करीब पच्चीस प्रतिशत उछलना असाधाऱण है, खासकर कोरोना से संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूरत में। कुल मिलाकर इन आंकड़ों से यही साफ होता है कि संकट की सूरत में भी संकट दिखाई नहीं पड़ रहा है। कम से कम विदेशी मुद्रा कोष के मामले में, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में, भारतीय पूंजी बाजार में विदेशी निवेश के मामले में।
इन सभी आंकड़ों में कुछ संबंध है। यह संबंध भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ बातों को रेखांकित करता है। अप्रैल-अगस्त 2020 का समय वह समय है, जब कोरोना को लेकर भय अपने उच्चतम स्तर पर रहा है। फिर भी विदेश निवेश आंकड़ों में कोई भय नहीं दिखाई पड़ रहा है, वह लगातार आये ही जा रहा है। यह अनायास नहीं है कि भारतीय कारपोरेट सेक्टर की महत्वपूर्ण कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज में इस अवधि में भारी तादाद में विदेशी निवेश आया है। रिलायंस में निवेश दरअसल किसी एक कंपनी में हुआ निवेश नहीं है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं में हुआ निवेश भी है।
किसी अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश तभी आता है, जब दो बिंदुओं पर एकदम पक्की आश्वस्ति हो। एक इस निवेश पर लाभ कमाया जा सकेगा और दूसरी बात यह है कि यह निवेश सुरक्षित है। वरना विदेशी निवेशक किसी अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं लगाते।
भारतीय बाजार इतना बड़ा है कि एक कोरोना महामारी उसे कमजोर तो कर सकती है, पर उसे ध्वस्त नहीं कर सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर तो हो सकती है, पर उसकी संभावनाएं कमजोर नही हैं। अअंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि 2021 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था दोबारा उठना शुरू होगी, तब बहुत तेज वापसी करेगी। यानी कुल संकट बहुत लंबे समय का नहीं है। कोई अर्थव्यवस्था विकट संकट में तब आती है, जब उसके ऊपर भीषण कर्ज लदा होता है और संसाधनों के स्त्रोत सूख जाते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में संसाधनों के स्त्रोत कमजोर हुए हैं, पर वो सूखे नहीं हैं। कई उद्योगों में बिक्री की स्थिति कोरोना से पहले की स्थिति पर पहुंच रही है। यानी उनकी कमजोरी समाप्त हो रही है। आॅटोमोबाइल उद्योग में कार उद्योग की सबसे बड़ी कंपनी के अधिकारी ने कहा कि कारों पर जीएसटी कर कम किए जाने की जरूरत नहीं है। यानी एक आत्मविश्वास है कि बिना सस्ती हुए भी कारें बिक जाएंगी।
अखबारों में कई तरह की हाउसिंग परियोजनाओं के इश्तिहार दिखना शुरू हो गए हैं। महंगी बाइक बनाने वाली हार्ले डेविडसन ने हीरो मोटोकोर्प के साथ समझौता अभी फाइनल किया है। इन सबका आशय यही है कि कोरोना संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था उबर रही है और इसलिए इसके भविष्य में निवेश करना ठीक है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में विदेशी निवेशक भारत के प्लांट और फैक्टरियों में निवेश करते हैं और शेयर बाजार में निवेश उन शेयरों में होता है जो पहले ही कार्यरत हैं। दोनों ही स्तर के निवेश हाल के वक्त में खूब हुए हैं, इसीलिए विदेशी मुद्रा कोष का आंकड़ा भी रिकार्ड स्तर पर जा चुका है। जून में पहली बार 500 अरब डालर का स्तर पार करने का मतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई तथ्य विदेशी निवेशकों को अब दिख रहे हैं, ये पहले उतने दिखाई नहीं दे रहे थे। ऑटोमोबाइल से लेकर मोबाइल उत्पादन के मामले में प्लांट फैक्टरियों में निवेश हो रहा है।
आमतौर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर माना जाता है कि यह स्थायी होता है, और आसानी से देश को नहीं छोड़ता। इसकी वजह यह है कि शेयरों में लगा पैसा तो निवेशक दो चार क्लिक में ही निकाल सकते हैं, पर प्लांट फैक्टरियों में लगे पैसे को निकालने में वक्त लगता है, इसलिए अगर प्लांट फैक्टरियों में रकम का निवेश हो रहा है, तो माना जाना चाहिए कि विदेशी निवेशक बहुत भरोसे के साथ आ रहे हैं और कोरोना से संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के उबरने की उम्मीद है विदेशी निवेशकों को।
अर्थव्यवस्था सिर्फ वर्तमान पर नहीं चलती। अर्थव्यवस्था भविष्य के भरोसे पर भी चलती है। सरकार ने अस्तित्वगत संकट से जुड़े कुछ और आंकड़े महत्वपूर्ण हैं। कई राज्यों से खबरें हैं कि मनरेगा में रोजगार हासिल करने वालों की तादाद में तेज बढ़ोत्तरी हो गई, यानी गांवों में क्रय क्षमता का विस्तार होने की और संभावनाएं हैं। मनरेगा योजना बहुत न्यूनतम स्तर पर अस्तित्व की सुरक्षा तो कर ही देती है। मनरेगा योजना में कुल खर्च का करीब 90 प्रतिशत केंद्र सरकार वहन करती है। केंद्रीय बजट 2020-21 में मनरेगा के लिए केंद्रीय सरकार ने 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। इसमें बढ़ोत्तरी की गई है और मनरेगा के लिए कुल प्रस्तावित रकम एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर चली गई है। कृषि अर्थव्यवस्था ने उम्मीदें बनाए रखी हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर रहे, तो मामला एक हद तक सुलझ सकता है। कुल मिलाकर ये उम्मीदें विदेशी निवेशकों को भारत की तरफ लेकर आ रही हैं।