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लालू के घोटालों-विवादों का अंतहीन सिलसिला

1998 में भी राबड़ी देवी के सीएम रहते हुए भी लालू के ठिकानों पर सीबीआई के छापे पड़े थे।

लालू के घोटालों-विवादों का अंतहीन सिलसिला
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राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक जीवन विवादों और घोटालों का पर्याय रहा है। यह पहली बार नहीं है जब लालू प्रसाद यादव के परिवार को सीबीआई छापों का सामना करना पड़ा है।

1998 में भी राबड़ी देवी के सीएम रहते हुए भी लालू के ठिकानों पर सीबीआई के छापे पड़े थे। फर्क यह है कि इस बार लालू का पूरा परिवार सीबीआई के आरोपों की जद में है।

सीबीआई छापों को बेशक लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित बताएं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भी और देश के रेलमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल घोटालों और वित्तीय गड़बड़ियों का पुलिंदा रहा है।

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उन पर कई घोटालों और पद का दुरुपयोग करते हुए संपत्ति अर्जन के आरोप लगे हैं। चारा घोटाला मामले में दोषी पाए गए हैं और जेल की हवा खा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनके खुद के चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है।

चारा घोटाले में दोषी, जेल काटने और चुनाव पर रोक जैसी सजा से भी लालू यादव ने सबक नहीं लिया। सत्ता से दस साल दूर रहने के बावजूद उनकी राजनीति नहीं बदली।

नीतीश के कंधे पर सवार होकर उन्होंने अपने दोनों बेटों तेज प्रताप व तेजस्वी को राजनीतिक सत्ता में एंट्री तो करवा दिया, लेकिन वे दोनों भी स्वच्छ राजनीति की बुनियाद नहीं रख पाए।

सत्ता में आए दो साल भी नहीं हुए कि दोनों पर वित्तीय धांधली के आरोप चस्पां होने लगे। इस वक्त लालू का पूरा परिवार वित्तीय धांधली में लिप्त होने के आरोपों का सामना कर रहे हैं।

सीबीआई ने रेलवे घोटाले में लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव सहित उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक मामला दर्ज करने के बाद पटना, रांची, भुवनेश्वर और गुरुग्राम समेत 12 स्थानों पर छापेमारी की।

सीबीआई ने भादंवि की धारा 120बी आपराधिक साजिश, 420 धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के तहत कार्रवाई की है। यह पूरी साजिश 2004 से 2014 के बीच में रची गई जिसमें लालू परिवार ने तीन एकड़ जमीन के रूप में फायदा उठाया।

लालू परिवार के खिलाफ इस तरह और भी कई मामले हैं। 1990 से 97 के दौरान लालू यादव के बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए 1000 करोड़ का चारा घोटाला हुआ। इसके एक मामले में लालू पर दोष सिद्ध हो चुका है।

कुछ मामले अदालत में है। बेनामी संपत्ति मामले में लालू की बेटी मीसा भारती, दामाद शैलेश कुमार, बेटा तेजस्वी यादव, पत्नी राबड़ी देवी, रागिनी और चंदना यादव की कुछ संपत्तियां जब्त की गई हैं।

मीसा के खिलाफ आठ हजार करोड़ का मनी लॉड्रिंग केस भी है। तेजस्वी यादव पर बिहार के सबसे बड़े मॉल का प्रमोशन कर रही कंपनी में भारी शेयर रखने का आरोप है। तेज प्रताप यादव के खिलाफ कथित तौर पर जमीन कब्जाने और पेट्रोल पंप रखने का आरोप है।

लालू की तीन बेटियों मीसा, रागिनी और हेमा के खिलाफ शेल यानी फर्जी कंपनियों में डायरेक्टर होने का आरोप है। लालू यादव पर राजद नेताओं को मंत्री पद देकर उनकी जमीन कब्जाने का भी आरोप है।

इसके अलावा रेलमंत्री रहने के दौरान आम लोगों को नौकरी देकर उनकी जमीन हथियाने का आरोप है। इन मामलों में जमीनें लालू के बेटों को दान की गई हैं।

इतने आरोपों के होने के बावजूद नीतीश कुमार ने बिहार में सत्ता पाने के लिए लालू से गठबंधन किया और अब लालू के आरोपी बेटे नीतीश सरकार में मंत्री हैं। नीतीश कुमार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपने मंत्रिमंडल में किसी आरोपी को मंत्री कैसे बनाए रख सकते हैं।

उन्हें जनता को बताना चाहिए कि वे जानबूझकर बिहार को घपले और घोटालों से घिरे लालू परिवार को सत्ता में क्यों भागीदार बनाया और अब राजद से गठबंधन बनाए रखने की उनकी क्या मजबूरी है?

लालू यादव भी अब तक अपने सभी आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता कर खारिज करते रहे हैं और इसके लिए भाजपा पर इल्जाम मढ़ते रहे हैं, लेेकिन वे इतने आरोपों को झुठला नहीं सकते।

लालू के शहाबुद्दीन जैसे आपराधिक छवि के लोगों से संबंध भी उजागर हो चुके हैं। लालू परिवार को लगता है कि वे बेकसूर हैं, तो उन्हें जांच का सामना करना चाहिए और जांच पूरी होने तक तेजस्वी व तेजप्रताप को मंत्री पद से हटा कर मुख्यमंत्री नीतीश को सीबीआई, ईडी आदि का सहयोग करना चाहिए।

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