शीतकालीन सत्र में गरमा सकता है न्यायिक सेवा का मुद्दा, पिछड़े सांसद बनाएंगे सरकार पर दबाव

देश के सभी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का मुद्दा इस बार संसद के शीतकालीन सत्र में गरमा सकता है।
संकेत है कि सरकार अगर इस मामले में गंभीरता से विचार करते हुए कानून बनाने के लिए पहल नहीं करती है तो उसे भाजपा सहित तमाम दलों के अनुसूचित जाति,अनुसूचित जन जाति एवं पिछड़े सांसदों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि सामाजिक न्याय के नाम पर काफी समय से दलित संगठनों की ओर से न्यायाधीशों के मौजूदा चयन प्रकिया का विरोध करते हुए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की मांग की जा रही है।
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लेकिन पहली बार तकरीबन सभी राजनीतिक दलों के दलित एवं पिछड़े सांसद एकजुट होकर सरकार को संसद में बिल लाकर उनकी मांग पूरी करने के लिए दबाव बनाएगें।
भाजपा के भिंड के सांसद भागीरथ प्रसाद ने कहा कि न्यायधीशों के चयन की मौजूदा व्यवस्था अलोकतांत्रिक है।
इसमें न्यायधीशों की अनुशंसा पर उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश नियुक्त हो रहे हैं,जिसके चलते कुछ खास परिवारों के लोग ही बार-बार इस पद पर काबिज हो रहे हैं।
जबकि उनसे कहीं ज्यादा प्रतिभाशाली लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है। प्रसाद ने दावा कि इन न्यायालयों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी भी नहीं है।
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