''निकाह हलाला'' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और विधि आयोग से मांगा जवाब
बहुविवाह की प्रथा के तहत मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत है जबकि निकाह हलाला तलाक देने वाले शौहर से तलाकशुदा बीवी के दुबारा निकाह के संबंध में है।

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ विचार करेगी। इस बीच, न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केन्द्र और विधि आयोग से जवाब मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने समता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय सहित कई बिन्दुओं पर दायर जनहित याचिकाओं पर आज विचार किया।
पीठ ने इस दलील पर भी विचार किया कि 2017 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने वाले प्रकरण से बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे बाहर रखे गए थे।
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पीठ ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया जाएगा। बहुविवाह की प्रथा के तहत मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत है जबकि निकाह हलाला तलाक देने वाले शौहर से तलाकशुदा बीवी के दुबारा निकाह के संबंध में है।
निकाह हलाला वह प्रथा है जिसमे शौहर द्वारा तलाक दिये जाने के बाद उसी शौहर से दुबारा निकाह करने से पहले महिला को एक अन्य व्यक्ति से निकाह करके उससे तलाक लेना होता है।
बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा के खिलाफ अधिवक्ता और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता अश्चिनी कुमार उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने के लिये इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना वक्त् की जरूरत है।
याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं की वजह से मुस्लिम महिलाओं को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है और इससे उनके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है।
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याचिका में यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा498- ए सभी नागरिकों पर लागू होती है और तीन तलाक इस धारा के तहत महिला के प्रति क्रूरता है।
इसी तरह, निकाह हलाला को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार और बहुविवाह को धारा 494 के अंतर्गत अपराध घोषित करने का भी अनुरोध किया गया है। धारा 494 के अंतर्गत पति या पत्नी के जीवन काल में यदि कोई भी दूसरी शादी करता है तो यह अपराध है।
एक मुस्लिम महिला ने भी 14 मार्च को शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि मुस्लिम पर्सन लॉ की वजह से पति या पत्नी के जीवन काल में ही दूसरी शादी को अपराध के दायरे में लाने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 इस समुदाय के लिये निरर्थक है और कोई भी शादीशुदा मुस्लिम महिला ऐसा करने वाले अपने शौहर के खिलाफ शिकायत दायर नहीं कर सकती है।
इस महिला ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून1939 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 ,21 औ र25 के प्रावधानों का हनन करने वाला घोषित किया जाए।
याचिकाकर्ता महिला का दावा है कि वह खुद इन प्रथाओं की पीडि़त है और उसका आरोप है कि उसका पति और परिवार उसे दहेज के लिये यातनाएं देते थे और उसे उसके वैवाहिक घर से दो बार बाहर निकाला गया है।
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याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसके शौहर ने कानूनी तरीके से तलाक दिये बगैर ही एक और औरत से शादी कर ली और पुलिस ने धारा494 और धारा498- ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से भी इंकार कर दिया।
इसी तरह, 18 मार्च को हैदराबाद के एक वकील ने बहुविवाह प्रथा को चुनौती देते हुये कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस तरह की सारी शादियां मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती हैं।
याचिका में तर्क दिया गया है कि मुस्लिम कानून आदमियों को तो अस्थाई शादियों या बहुविवाह के जरिये कई बीवियां रखने की इजाजत देता है लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिये यह प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ता ने निकाह हलाला की प्रथा का भी विरोध किया है।
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