ये है वो महिला, जिसने देश में सबसे पहले ट्रिपल तलाक पर आवाज की थी बुलंद
सर्वोच्च न्यायलय ने लंबे समय से मुस्लिमों में चली आ रही ट्रिपल तलाक की कुप्रथा को समाप्त कर दिया है।

ट्रिपल तलाक...इस मुद्दे पर काफी लंबे समय से बहस चल रही है लेकिन मंगलवार 22 अगस्त को सर्वोच्च न्यायलय ने मुस्लिम महिलाओं को राहत देने वाला फैसला सुनाया।
सर्वोच्च न्यायलय ने लंबे समय से मुस्लिमों में चली आ रही ट्रिपल तलाक की कुप्रथा को समाप्त कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायलय की जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार को 6 माह की अवधि में कानून बनाने के आदेश दिए हैं।
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न्यायाधीशों की पीठ में जहां 3 न्यायाधीशों का मानना था कि ट्रिपल तलाक को खत्म कर दिया जाना चाहिए क्यों कि ये असंवैधानिक है जबकि 2 न्यायाधीश इसके खिलाफ भी थे।
आइए आपको बताते हैं कि आखिर कौन थी वो महिलाएं जिन्होंने इतने सालों से चली आ रही ट्रिपल तलाक की कुप्रथा के खिलाफ पहली बार न केवल आवाज बुलंद की बल्कि न्यायालय की शरण भी ली।
पहली बार ट्रिपल तलाक के खिलाफ आवाज उठाने वाली मुस्लिम महिला थीं 38 वर्षीय शायरा बानो।
शायरा बानो उत्तराखंड के काशीपुर की निवासी थीं। उनका निकाह साल 2002 में इलाहाबाद के प्रॉपर्टी डीलर रिजवान से हुआ।
निकाह के कुछ समय बाद से ही शायरा की मुसीबतें शुरू हो गईं। बकौल शायरा, 'मेरे ससुराल वाले फोर व्हीलर की मांग करने लगे और मेरे पैरेंट्स से चार-पांच लाख रुपए कैश चाहते थे। उनकी माली हालत ऐसी नहीं थी कि यह मांग पूरी कर सकें। मेरी और भी बहनें थीं।'
शायरा ने बताया कि निकाह के बाद से ही उन पर हर रोज जुल्म ढाए जाते थे। उनके शौहर रिजवान न लेवल बात बात पर उनसे लड़ते बल्कि मारापीटी पर भी उतारू हो जाते थे।
निकाह के बाद शायरा के दो बच्चे भी हुए एक बेटा और एक बेटी। शायरा ने बताया कि रिजवान ने कई दफा दबाव डाल उनका गर्भपात भी करवाया।
उन्होंने बताया कि रिजवान ने उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां दीं जिससे करीब 6 बार उनका गर्भपात हुआ और उनकी सेहत काफी गिर गई।
शायरा ने बताया कि इस बात से परेशान से कर अप्रैल 2016 में उन्होंने अपने मायके का रुख किया।
मायके जाने के बाद से कई बार फोन के जरिये उन्हें ससुराल वापस आने को कहा गया लेकिन जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके शौहर रिजवान ने अक्टूबर में उनके पास टेलीग्राम से ट्रिपल तलाक दे दिया।
इस सिलसिले में जब शायरा ने मुफ़्ती से सलाह मांगी तो उन्होंने बताया की टेलीग्राम के जरिए दिया गया तलाक भी वाजिब माना जाएगा।
मुफ्ती की बात सुन शायरा ने हार न मानते हुए इस लड़ाई में एक अहम पहल करते हुए पहली बार ट्रिपल तलाक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
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आज भले ही शायरा को अपने बच्चों का मुंह देखे हुए या बात किए हुए तकरीबन 1 साल बीत चुका है क्योंकि उनके बच्चे उनके शौहर के पास हैं और उनके ससुरालीजन उन्हें शायरा से कोई तालुक नहीं रखने दे रहे हैं।
लेकिन फिर भी शायरा उन तमाम मुस्लिम महिलाओं के लिए उम्मीद की वो मशाल हैं जो कई सालों से तलाक की वजह से न केवल एकाकी जीवन जीती आ रही हैं बल्कि आर्थिक दंश भी झेलती आ रही हैं।
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