छोटे शहरों ने दी बड़े शहरों को मात, नौकरी, स्वरोजगार के मामले में
नौकरी और उद्योग संबंधित गतिविधियों मे वृद्धि के मामले में छोटे शहर बड़े शहरों को पीछे छोड़ रहे हैं।

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नई दिल्ली. नौकरी और उद्योग संबंधित गतिविधियों मे वृद्धि के मामले में छोटे शहर बड़े शहरों को पीछे छोड़ रहे हैं। इन छोटे शहरों में निर्माण कार्य बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और इससे जुड़ी नौकरियां भी बढ़ रही हैं। 50,000 से छोटे शहर वाले तीसरे दर्जे के शहरों में करीब 45 प्रतिशत पुरुष कामगार और 50 प्रतिशत से अधिक महिला कामगार को स्वरोजगार प्राप्त है। बड़े शहरों में जहां की आबादी 10 लाख से ज्यादा है, वहां स्वरोजगारी महिला एवं पुरुष दोनों लगभग 36-38 प्रतिशत हैं।
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संजीवनी टुडे के अनुसार स्वरोजगार में बहुत ही छोटी औद्योगिक या सर्विस सेक्टर इकाइयों के साथ-साथ दुकानें भी सम्मिलित हैं। 2004-05 की तुलना में 2011-12 में स्वरोजगार में गिरावट का आम रुझान देखा गया है जबकि सभी प्रकार के शहरों में नियमित मजदूरी या सैलरी वाली नौकरियों में इजाफा हुआ है। 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वर्कफोर्स में 55 प्रतिशत पुरुष और 58 प्रतिशत महिलाओं को नियमित दिहाड़ी या सैलरी मिल रही है।
लगभग एक दशक पहले यह आकड़ा 50 से नीचे गिर गया था। लेकिन दूसरे एवं तीसरे दर्जे के शहरों में सैलरीड नौकरियों में कमी देखी गई है। 50,000 से अधिक और 10 लाख से कम आबादी वाले दूसरे दर्जे के शहरों में पुरुष एवं महिला सैलरीड वर्कर्स की संख्या लगभग 41-43 प्रतिशत है जबकि 50,000 से कम आबादी वाले तीसरे दर्जे के शहर में सैलरीड पुरुष वर्कर्स की संख्या 34 प्रतिशत और महिला 27 प्रतिशत हैं।
छोटे शहरों में महिलाओं के लिए अधिक नौकरियां
बड़े शहरों में जो बात करीब एक दशक पहले देखने को मिली थी, छोटे शहरों में वह बात अब देखने को मिल रही है। 2004-05 और 2011-12 के बीच में तृतीयक या सर्विसेज सेक्टर में पुरुष के रोजगार में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में 61-63 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि औद्योगिक रोजगार में 38 से 36 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
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