भारत की विकास दर होगी 8 फीसदी, 2017 तक जीडीपी में होगा इजाफा
2017 तक जीडीपी आठ फीसदी होगी

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वॉशिंगटन. विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2017 तक आठ प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और देश में मजबूत विस्तार तथा तेल की अनुकूल कीमतों के चलते दक्षिण एशिया की वृद्धि दर बढ़ेगी।विश्वबैंक के दक्षिण एशिया संबंधी मुख्य अर्थव्यवस्था मार्टिन रामा ने कहा ‘कच्चे तेल की कीमत में नरमी का सबसे बड़ा लाभ दक्षिण एशिया को अभी उठाना बाकी है लेकिन ऐसा नहीं होगा कि इसका फायदा सरकार या उपभोक्ता खातों के जरिए स्वभावत: प्रेषित हो जाएगा।’ उन्होंने कहा ‘सस्ते कच्चे तेल से ऊर्जा मूल्यों को तर्कसंगत बनाने, सब्सिडी से राजकोषीय बोझ घटाना और पर्यावरण वहनीयता में योगदान करने का मौका मिलता है।
अनुकूल खाद्य कीमतों और सस्ते तेल ने मुद्रास्फीति में तेज गिरावट में योगदान किया। विकसित देशों में सबसे अधिक मुद्रास्फीति दक्षिण एशिया में थी जो सिर्फ एक साल में घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गई। मार्च 2013 में इस क्षेत्र का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) सालाना स्तर पर बढ़कर 7.3 प्रतिशत हो गया था जो मार्च 2015 में 1.4 प्रतिशत हो गया।
विश्वबैंक ने अपनी छमाही रपट में कहा है कि वित्त वर्ष 2015-16 में देश की जीडीपी की वृद्धि दर 7.5 रहने का उम्मीद है, लेकिन 2016 से 2018 के दौरान देश में निवेश की वृद्धि 12 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जिसके कारण वर्ष 2017-18 तक भारत की वृद्धि दर आठ प्रतिशत पर पहुंच सकती है। विश्व बैंक की द्विवार्षिक दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रपट में कहा गया है कि खपत बढ़ने और निवेश बढ़ने से वर्ष 2015 से 2017 के दौरान क्षेत्र की वृद्धि दर सात प्रतिशत से बढ़कर 7.6 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी।
क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद में भारत के दखल को देखते हुए अनुमान में भारत की वृद्धि में बढ़ोतरी की उम्मीद नजर आती है जो कोराबार केंद्रित सुधार और बेहतर निवेशक रूझान से प्रेरित होगा। विश्वबैंक की रपट में कहा गया कि कच्चे तेल की कीमत में नरमी का असर इस क्षेत्र में घरेलू पेट्रोलियम उत्पादों पर अलग-अलग तरीके से असर हुआ है। पाकिस्तान में ज्यादातर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में ग्राहकों का बोझ 50 प्रतिशत कम किया गया लेकिन बांग्लादेश में उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं दिया गया। रपट में कहा गया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत को राजकोषीय से अलग करने और कार्बन कराधान पेश करने जैसी उत्साहजनक पहलें की हैं ताकि पेट्रोलियम उत्पादों के उपयोग से होने वाले नकारात्मक असर से निपटा जा सके। कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी की स्थिति में चुनौती बरकरार रहेगी।
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