Parakram Diwas : नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मिल चुके हैं भारत सरकार से ये सम्मान
Parakram Diwas : सुभाषचंद्र बोस के नाम से पहले प्रथम प्रधानमंत्री, प्रथम राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न जैसे विशेषण नहीं जुड़े हैं। हां, एक विशेषण उनके नाम के साथ जुड़ चुका था नेताजी सुभाष चंद्र बोस।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मिल चुके हैं भारत सरकार से ये सम्मान
Parakram Diwas : सुभाषचंद्र बोस के नाम से पहले प्रथम प्रधानमंत्री, प्रथम राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न जैसे विशेषण नहीं जुड़े हैं। हां, एक विशेषण उनके नाम के साथ जुड़ चुका था नेताजी सुभाष चंद्र बोस। यह संबोधन उन्हें तब मिला था, जब उन्होंने सिंगापुर में भारत की निर्वासित सरकार बनायी थी- आज़ाद हिन्द सरकार, जिसके पास थी आज़ाद हिन्द फ़ौज।
सबसे ज्यादा लोगों को आकर्षित करता है यहा नारा
हिन्दुस्तान में जो नारा सबसे ज्यादा लोगों को आकर्षित करता आया है, जिसमें कुर्बानी के लिए प्रेरणा है, सर्वस्व न्योछावर करने का संदेश है और आज़ादी हासिल करने का संकल्प है- वह एक मात्र नारा है- 'तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुझे आज़ादी दूंगा'। सुभाष चंद्र बोस का दिया यह नारा नहीं, आज़ादी का मंत्र है। एक ऐसा मंत्र, जिसने बर्मा को अंग्रेजों से आज़ाद कराया था, एक ऐसा मंत्र जिसने तब भारतीयों के ख़ून में उबाल ला दिया था जब 'करो या मरो' का नारा अंग्रेजी दमनचक्र के सामने अपना असर को रहा था।
नेताजी को 'मरणोपरांत' भारत रत्न का फैसला
सचमुच ऐसे महान इंसान के लिए आज़ादी के 53 साल बाद अगर उनका परिवार 'भारत रत्न' स्वीकार करता, तो यह ग्लानि हमेशा भारतीयों को कचोटती रहती कि सुभाष चंद्र बोस को यह सम्मान तब मिला, जब उनकी सेना के बहादुर सिपाही भी यह सम्मान पा गये थे। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न के लिए 'मरणोपरांत' चुना गया । अगर इस सम्मान को नेताजी के परिवार ने स्वीकार कर लिया होता, तो इसका मतलब था कि वे भी उनकी मौत के रहस्य की गुत्थी सुलझाने के लिए जारी संघर्ष से पीछे हट गये।
भारत-रत्न, नोबेल से ऊपर हैं नेताजी सुभाष
सुभाष चंद्र बोस भारत के ऐसे रत्न हैं जो दुनिया में बने किसी भी सम्मान से ऊपर हैं और रहेंगे। सुभाष चंद्र बोस नोबेल पुरस्कार के लिए भी कभी विचारणीय नहीं रहे तो इसके पीछे वजह यही रही कि जब उन्हें उनके ही देश में हिटलर समर्थक घोषित कर दिया गया, तो भला उन्हें दुनिया शांति के लिए पुरस्कार के योग्य ही क्यों समझती? सच्चाई ये है कि सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम मानवता के लिए और विश्व बन्धुत्व के लिए था। उन्होंने जो सर्वस्व त्याग किया, कुर्बानी दी, वह अतुलनीय बनी रहेगी।