लीबिया के साथ फिर राजनयिक संबंध स्थापित करने के प्रयास, इंदिरा के बाद रिजीजू जाएंगे यात्रा पर
2011 में मुअम्मर कज्जाफी सरकार के गिरने के बाद लीबिया के भारत के साथ संबंध टूट गए थे। इसके बाद बीते कुछ साल से त्रिपोली में भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं हैं और ना ही लीबिया का कोई राजदूत दिल्ली में है।

भारत लीबिया के साथ अपने राजनयिक संबंध फिर से स्थापित करने के प्रयास में है और केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू मंगलवार से इस उत्तर अफ्रीकी देश का आधिकारिक दौरा शुरू करेंगे।
वर्ष 2011 में मुअम्मर कज्जाफी सरकार के गिरने के बाद लीबिया के भारत के साथ संबंध टूट गये थे। नयी दिल्ली का बीते कुछ वर्ष से त्रिपोली में कोई प्रतिनिधि नहीं हैं और ना ही लीबिया का कोई राजदूत नयी दिल्ली में है।
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रिजिजू ने आज यहां पीटीआई भाषा से कहा कि गृहयुद्ध और कज्जाफी के लंबे शासन के खत्म होने के बाद पहली बार भारत लीबिया की सरकार से संपर्क स्थापित करेगा।
अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान, रिजिजू के लीबिया के शीर्ष नेतृत्व तथा संकटग्रस्त भारतीय मूल के सदस्यों से मिलने की संभावना है।
करीब 1500 ऐसे भारतीय नागरिक हैं जिन्होंने विदेश मंत्रालय के लीबिया छोड़ने के परामर्श के बावजूद वहां रूककर अपनी नौकरी जारी रखी।
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रिजिजू ने कहा कि ऐसे देशों से जिनके भारत से अबतक उचित संबंध नहीं हैं, उनके साथ राजनयिक संबंध बनाना विदेश मंत्रालय की पहल का हिस्सा है।
मंत्री के साथ ट्यूनीशिया में भारत के राजदूत प्रशांत पिसे रहेंगे जो लीबिया का अतिरिक्त प्रभार संभाले हुए हैं। भारत ने 1969 में लीबिया में पहली बार राजनयिक मिशन स्थापित किया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1984 में लीबिया की यात्रा की थी।
इनपुट- भाषा
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