Republic Day Essay And Speech In Hindi : हिंदी में गणतंत्र दिवस पर निबंध और गणतंत्र दिवस पर भाषण के लिए यहां से करें तैयारी
गणतंत्र दिवस (Republic Day) हर साल भारत में 26 जनवरी (26 January) को मनाया जाता है। इस मौके पर स्कूलों में, सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक जगहों पर लोगों द्वारा गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम (Republic Day Program) आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों में गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day Speech in Hindi 2019) देते हैं। जिसमें बच्चे, अध्यापक और वरिष्ठ नागरिक हिस्सा लेते हैं। लेकिन गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण (Republic Day Speech in Hindi 2019) कैसे दें यह नहीं पता। वहीं कई जगह इस मौके पर हिंदी में निबंध (Republic Day Essay in Hindi 2019) का आयोजन किया जाता है। इस पर भी लोगों को नहीं पता होता कि गणतंत्र दिवस पर सबसे बेहतरीन निबंध हिंदी में (Republic Day Best Essay in Hindi) कैसे लिखें। अगर आपको भी गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण (Gantantra Diwas 2019 Bhashan) देना है या गणतंत्र दिवस 2019 पर निबंध (Gantantra Diwas Par Nibandh) लिखना है। तो हरिभूमि के गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण और निबंध आपके काम आ सकता है। गणतंत्र दिवस लगातार गूगल ट्रेंड (Republic Day In Google Trend) में बना हुआ है।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 25 Jan 2019 6:40 PM GMT
गणतंत्र दिवस (Republic Day) हर साल भारत में 26 जनवरी (26 January) को मनाया जाता है। इस मौके पर स्कूलों में, सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक जगहों पर लोगों द्वारा गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम (Republic Day Program) आयोजित किए जाते हैं। लोग आपस में एक दूसरे को गणतंत्र दिवस पर शायरी (Republic Day Shayari), कविता (Republic Day Poems) भेजकर बधाई देते हैं। स्कूलों में गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day Speech in Hindi 2019) देते हैं। जिसमें बच्चे, अध्यापक और वरिष्ठ नागरिक हिस्सा लेते हैं। लेकिन गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण (Republic Day Speech in Hindi 2019) कैसे दें यह नहीं पता। वहीं कई जगह इस मौके पर हिंदी में निबंध (Republic Day Essay in Hindi 2019) का आयोजन किया जाता है। इस पर भी लोगों को नहीं पता होता कि गणतंत्र दिवस पर सबसे बेहतरीन निबंध हिंदी में (Republic Day Best Essay in Hindi) कैसे लिखें। अगर आपको भी गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण (Gantantra Diwas 2019 Bhashan) देना है या गणतंत्र दिवस 2019 पर निबंध (Gantantra Diwas Par Nibandh) लिखना है। तो हरिभूमि के गणतंत्र दिवस 2019 पर भाषण और निबंध आपके काम आ सकता है। गणतंत्र दिवस लगातार गूगल ट्रेंड (Republic Day In Google Trend) में बना हुआ है।
छुटपन की बात है- चूंकि मेरे परिवार में स्वतंत्रता सेनानी भी थे और राजनीति में सक्रिय लोग भी, इसलिए देश की जानी मानी शख्सियतों का घर पर आना जाना लगा रहता था। एक बार विजय लक्ष्मी पंडित, पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की बहन, भी आयी थीं। उनकी बहुत सी बातें सुनने का अवसर मुझे भी मिला। इन सुनी बातों में से ज्यादातर अब भूल गई हैं, लेकिन न जाने क्यों एक बात अब भी ऐसे याद है मानो कल ही सुनी हो। वह बात यह थी, ‘‘चुनाव के वादे चुनाव में ही रह जाते हैं।’’
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तब उम्र कम थी, शायद इसलिए इस बात की गहराई समझ में नहीं आयी थी। बहरहाल, जब नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित एक विवादित कार्यक्रम के लिए इस विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया कुमार को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जमानत पर रिहा होने के बाद जब उन्होंने वर्तमान वातावरण में दो शब्दों - आजादी और जुमला - को नए सिरे से परिभाषित किया, तब समझ में आया कि खद्दरधारी किस तरह मन, बातों (जुमलों व नारों) में मोह लेते हैं और आम जनता यह जानते हुए भी कि चुनावी वायदे कभी पूरे नहीं किए जाते हैं, रह-रहकर चुनाव में धोखा खाती रहती है। शायद इस उम्मीद में कि कभी तो उसे अपने जीवन की परेशानियों से आजादी मिलेगी।
इस आशा में गणतंत्र के 67 वर्ष गुजर गए हैं। यद्यपि भारत सरकार कानून की जगह हमने 26 नवम्बर 1949 को अपना नया संविधान स्वीकार कर लिया था, लेकिन स्वीकार करने की आधिकारिक तिथि 26 जनवरी 1950 मानी गयी; क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का नारा बुलन्द किया था। अपने नए संविधान को स्वीकारते हुए हमने उद्देश्य यह रखा था कि हम भारत को प्रभु सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनाएंगे जिसमें सभी नागरिकों को सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक न्याय मिलेगा। विचारों, अभिव्यक्ति, आस्था व पूजा की स्वतंत्रता होगी और सभी के लिए स्थिति व अवसर की समानता होगी। व्यक्तिगत सम्मान सुनिश्चित करते हुए देश की एकता व अखण्डता को सुनिश्चित किया जायेगा आदि-आदि। इस उद्देश्य में 1976 में 42वें संशोधन के जरिए धर्मनिर्पेक्ष व समाजवाद शब्दों को भी जोड़ दिया गया।
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उद्देश्य एकदम स्पष्ट है, हां, इस पर बहस की जा सकती है कि इसकी पूर्ति पूर्णतः हुई है या नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनेक क्षेत्रों में आजादी के बाद से जबरदस्त उपलब्धियां हासिल की गई हैं जैसे रक्षा के मामले में हम तकरीबन आत्मनिर्भर बने हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर का भी विकास हुआ है, खासकर रेलवे ने उल्लेखनीय तरक्की की है, बिजली व पानी भी ज्यादातर जगहों तक पहुंच रहे हैं, प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के संस्थान पर्याप्त मात्रा में सभी के लिए समान रूप से खुले हुए व उपलब्ध हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी कामयाबी हासिल की है... कुल मिलाकर कार्य प्रगति पर है और धीरे धीरे हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं।
इस दौरान हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। हमारे साथ ही जो हमारा पड़ोसी देश आजाद हुआ था, उसमें अधिकतर समय तानाशाही व सैन्य शासन रहा है। लेकिन हमारे यहां नियमित व निष्पक्ष चुनावों का आयोजन हो रहा है और लगभग हर विचारधारा की पार्टी को अपने हिसाब से देश चलाने का अवसर मिल चुका है। शायद प्रगतिशील से विकसित देश हम बहुत पहले हो चुके होते अगर राजनीतिक पार्टियों ने अपने चुनावी वायदों को पूरा करने का प्रयास किया होता। यह सही है कि बहुत सी राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव में किए गए लुभावने वायदों जैसे मुफ्त लैपटॉप, टेलीविजन आदि वितरित करने को किसी हद तक पूरा किया है, लेकिन यह मतदाताओं को लालच देने से अधिक कुछ न था, जिससे कुछ गिने चुने लोगों को तो लाभ हुआ लेकिन समाज में जो मूल सकारात्मक परिवर्तन आना चाहिए था, वह नहीं आया।
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सकारात्मक परिवर्तन तब आता जब जुमलेबाजी के तौरपर दिए गए नारों पर अमल होता। इसलिए बेहतर रहेगा कि 1950 में देश को गणतंत्र के रूप में स्वीकार करने के बाद जो चुनावों व अन्य विशेष अवसरों पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा नारे दिए गए हैं, उनमें से कुछ प्रमुख नारों की समीक्षा कर ली जाए। स्वतंत्र भारत में सबसे अधिक प्रभावी नारा ‘जय जवान, जय किसान’ माना जाता है, जिसे 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने उस समय दिया था, जब देश के सामने फूड का जबरदस्त संकट था। जवानों की जय होनी चाहिए, इससे किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे जवानों की सेवा स्थितियां बहुत ही दयनीय हैं, जैसा कि बीएसएफ के जवान का वीडियो वायरल होने के बाद स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें दिन-रात देश की सीमा पर चैकसी करने के बावजूद ढंग का पौष्टिक भोजन तक उपलब्ध नहीं कराया जाता है। यही नहीं अगर कोई इस पर आपत्ति करने का प्रयास करता है तो उसे कोर्ट मार्शल की धमकी दी जाती है और राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाता है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि 1989 में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार का विरोध करने के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ‘सेना खून बहाती है, सरकार कमीशन खाती है’ नारा दिया था जो इस लिहाज से बहुत हिट रहा कि राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले में कमीशन खाने के आरोप थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह इस नारे के चलते देश के प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन आज भी रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की वारदातें कम नहीं हुई हैं। जहां तक किसानों की बात है तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि किसानों की आत्महत्या 8.7 प्रतिशत से बढ़कर 9.4 प्रतिशत हो गई है। हम जब इसकी तुलना 2014 के आंकड़ों से करते हैं। अगर 2015 के आंकड़े की तुलना 2013 के आंकड़े से की जाए तो किसानों की आत्महत्या की दर में 7 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिलती है। तथ्य यह है कि 2012 के बाद से, जबसे राज्य किसानों की आत्महत्या रिपोर्ट कर रहे हैं, इस बार सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं। पिछले 20 वर्ष के दौरान 3,21,428 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
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सन 1971 के चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का जबरदस्त नारा दिया था, जिससे उन्हें आम चुनाव में शानदार कामयाबी मिली थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या गरीबी हटी? संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलपमेंट गोल कार्यक्रम के अनुसार 2011-12 में 21.9 प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा के नीचे थे यानी उनकी आमदनी 60 रुपये प्रतिदिन भी नहीं थी। अपने देश में गरीबी को लेकर जो विभिन्न परिभाषाएं हैं, उनकी वजह से काफी विवाद है कि कौन गरीबी रेखा के नीचे आता है और कौन नहीं। क्योंकि किसी अध्ययन के तहत 30 रुपये प्रतिदिन आय वाले व्यक्ति को गरीब माना जाता है और अन्य तर्कों के हिसाब से पैमाना इससे अलग है। मापा किसी भी तरह से जाए, लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अपने देश में गरीबी एक बहुत बड़ी समस्या है जिसे दूर करने की तुरंत जरूरत है।
एक अन्य नारा जिसमें देश की राजनीति को प्रभावित किया, लेकिन जिससे देश को कोई लाभ न हुआ बल्कि साम्प्रदायिकता बढ़ गई, वह था 1989-90 में बीजेपी का यह नारा- ‘राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे’। अयोध्या विवाद की पृष्ठभूमि में दिया गया यह नारा उस समय अधिक प्रभावी हो गया जब इसमें यह नारा भी जोड़ा गया- ‘जो हिंदू हित की बात करेगा, वहीं देश पर राज करेगा’। इन नारों की वजह से उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी, केंद्र में बीजेपी दो सीटों (1984) से बढ़कर 80 सीटों (1989) पर पहुंची और अब वह पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में शासन कर रही है, लेकिन अयोध्या विवाद जहां था, वहीं है। रामलला अब भी अपने लिए मंदिर को तरस रहे हैं। वैसे हर चुनाव के मौक पर इस नारे को फिर से गरमा दिया जाता है।
अगर एक राजनीतिक दल साम्प्रदायिकता के बल पर अपने चुनावी क्षेत्र का विस्तार करने का प्रयास कर रहा था, तो दूसरे राजनीतिक दलों ने जातिवाद का सहारा लिया, जिसका प्रमुख उदाहरण है 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, जब बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी ने आपस में गठजोड़ करके लखनऊ में सरकार बनाई थी। इस गठजोड़ ने नारा दिया था ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’। लेकिन यह गठजोड़ ज्यादा दिन न चला और बसपा ने मुलायम सिंह यादव से समर्थन वापस लेकर बीजेपी के सहयोग से उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाई। यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि उत्तर प्रदेश व अन्य जगहों में अपने पैर फैलाने के लिए बसपा ने यह नारा दिया था, ‘तिलक तराजू और तलवार, इनके मारो जूते चार’। इस नारे के बल पर बसपा दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बनने में कामयाब रही, लेकिन अपने दम पर सत्ता में आने के लिए उसके लिए आवयश्क था कि वह सभी वर्गों को अपने साथ लेकर चले। इसलिए 2007 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में उसने नारा दिया था ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’।
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इस तरह इस नारे की बदौलत बसपा लखनऊ में अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही। उत्तर प्रदेश में अब फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और बसपा अपने 2007 के नारे को दोहराते हुए तथा कुछ में थोड़ा बहुत फेरबदल करते हुए आयी है मसलन-‘चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबा हाथी पर’। करीब 20 साल पहले यही नारा था, ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर’। साल 2007 में समाजवादी पार्टी ने नारा दिया था, ‘यूपी में है दम, क्योंकि जुर्म यहां है कम’। नारों से नेताओं व राजनीतिक पार्टियों की तकदीरें बनी हैं, जैसे 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह इस नारे से ‘राजा नहीं फकीर है, जनता की तकदीर है’ देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब रहे।
लेकिन सवाल यह है कि बेतुकी शायरी व तुकबंदियों पर आधारित इन नारों व जुमलों से देशवासियों को क्या लाभ हुआ है? कुछ नहीं। जवान अब भी भावनात्मक मुद्दा है, किसानों की आत्महत्या रोकने का कोई प्रयास नहीं है, गरीबी अपनी जगह बदस्तूर बनी हुई है, रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार जारी है, वगैराह वगैराह। अगर इस गणतंत्र दिवस पर यही संकल्प हो कि ऐसे नारे या जुमलों का समर्थन किया जाएगा जो सकारात्मक हों, देश के लिए लाभकारी हों और जिसमें किया गया वायदा पूरा हो सके, तो यह कहा जा सकता है कि 70 वर्ष के गणतंत्र के बाद हम मतदाता के रूप में तो कम से कम परिपक्व हो गए हैं। आपात स्थिति (1975-77) के दौरान जयप्रकाश नारायण ने प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता की एक पंक्ति को नारा बनाया था, ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ जो एक जबरदस्त आंदोलन को उभारने में कामयाब रहा और 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार को हटा दिया गया, लेकिन जनता का शासन कहां आया?
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