Hari bhoomi hindi news chhattisgarh
toggle-bar

''सरकार नहीं कर सकती आधार की जासूसी''

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी की कि वह आधार को खत्म नहीं करने जा रही है।

सरकार नहीं कर सकती आधार की जासूसी
X

निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को 9 जजों की संवैधानिक बेंच पर सुनवाई हुई। इस दौरान तमाम दलीलें पेश की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी की कि वह आधार को खत्म नहीं करने जा रही है।

महाराष्ट्र सरकार ने दलील दी कि अदालतें निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं कर सकती है, सिर्फ संसद ही ऐसा कर सकती है। निजता के अधिकार विधायी अधिकार हैं, ये मौलिक अधिकार नहीं हैं।

संसद चाहे तो संविधान में इसके लिए बदलाव कर सकती है। निजता को अन्य विधायी कानून के तहत संरक्षित किया गया है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने ये दलीलें पेश कीं।

वहीं यूआईडीएआई (यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथरिटी ऑफ इंडया) की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आधार में जो डाटा लिया गया है उसका इस्तेमाल कर अगर सरकार सर्विलांस भी करना चाहे तो असंभव है, आधार ऐक्ट कहता है डेटा पूरी तरह से सुरक्षित है।

इसे भी पढ़ें- देश के व्यापारियों पर नहीं पड़ा GST का असर: अरुण जेटली

महाराष्ट्र सरकार की ओर से वकील सीएम सुंदरम की दलील

सिर्फ संसद को ये अधिकार है कि वह संविधान के अनुच्छेद में बदलाव कर सकती है और मौलिक अधिकार में निजता के अधिकार का प्रावधान रख सकती है। अगर संसद समझती है कि समय की यह मांग है तो वह ऐसा कर सकती है।

संविधान निर्माताओं ने भी निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के दायरे से बाहर रखा है और इसका उद्देश्य साफ है। उन्होंने कहा कि मेरा निजता का अधिकार अन्य तरह के अधिकार के जरिये संरक्षित है जैसे प्रॉपर्टी का अधिकार आदि।

जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि ये तमाम अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा कि आप संवैधानिक सभा की बहस को संकुचित दायरे में पढ़ रहे हैं।

संवैधानिक सभा ने सिर्फ पत्राचार की गोपनीयता और घर में गोपनीयता की बात को बहस में रखा था। उन्होंने निजता के अधिकार के व्यापक दायरे को कभी बहस में नहीं रखा था।

व्यक्तिगत आजादी से मतलब भौतिक आजादी

सीए सुंदरम ने कहा कि व्यक्तिगत आजादी स्वतंत्रा के अधिकार से अलग है। व्यक्तिगत आजादी से मतलब भौतिक आजादी से है इससे दिमाग व विवेक का कोई लेनादेना नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमारी जिंदगी और भौतिक शरीर की स्वतंत्रता की बात करता है।

बाकी पहलू मौलिक अधिकार में कवर होता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता सिविल स्वतंत्रता नहीं है। जस्टिस आर. नरीमन ने कहा कि आरसी कूपर के जजमेंट में कहा गया है कि मौलिक अधिकार को एक साथ देखा जाना चाहिए? तब वकील सुंदरम ने कहा कि ऐसा जरूरी नहीं है।

उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता में सिविल स्वतंत्रता शामिल नहीं है। ये मामला संविधान की व्याख्या का नहीं है। यह सिर्फ संविधान के प्रस्तावना की बात है। सुंदरम ने फिर दोहराया कि खड़ग सिंह से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले को पलटा नहीं गया है।

डेटा प्रोटेक्शन संपत्ति के अधिकार के दायरे में

सुंदरम ने कहा कि जहां तक डेटा प्रोटेक्शन का सवाल है तो इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-300ए में प्रावधान है और यह संविधान के पार्ट तीन में नहीं आता है। तब जस्टिस चेलामेश्वर ने सवाल किया कि आप बताएं कि यह कैसे प्रॉपर्टी के दायरे में आता है।

अगर डेटा महत्वपूर्ण है तो यह प्रॉपर्टी के दायरे में आएगा। प्रॉपर्टी की विस्तार से जो व्याख्या है उसके दायरे में डाटा आएगा। निजता को विधाई अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए इसे संविधान के पार्ट 3 में मौलिक अधिकार के तहत नहीं रखा जा सकता।

इसे भी पढ़ें: यूआईडीएआई ने कहा सितंबर से आधार केंद्र सिर्फ सरकारी परिसरों में

यूआईडीएआई की ओर से दलील

यूआईडीएआई और मध्यप्रदेश की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील दी। मेहता ने कहा कि खड़ग सिंह के मामले में जो व्यवस्था दी गई है उसमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया है। उसे अस्पष्ट रखा गया है और जो चीज अस्पष्ट है वह मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।

निजता महत्वपूर्ण अधिकार है और इसे पहले से मान्यता दी गई है। संसद ने कई कानून बनाए हैं और इन कानूनों के तहत निजता को संरक्षित किया गया है। ऐसे में इसे मौलिक अधिकार के स्तर पर ले जाने की जरूरत नहीं है। विधायिका को इस बात का इल्म है कि निजता को किस स्तर तक संरक्षित करने की जरूरत है।

ऐसे में इसे विधायिका पर छोड़ा जाना चाहिए। तब जस्टिस बोबडे ने कहा कि दिक्कत तब शुरू होती है जब विधायिका इन अधिकारों को नकारती है। मौजूदा दौर में पारदर्शिता महत्वपूर्ण है, लेकिन फिर भी सूचना के अधिकार में भी निजता को संरक्षित किया गया है।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि सूचना के अधिकार ऐक्ट में अनुचित एक अस्पष्ट शब्द है ऐसे में आप कैसे इस बात को चुनौती देंगे अगर निजता का अधिकार नहीं होगा। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह सामान्य कानूनी अधिकार में संरक्षित हैं।

तब जस्टिस बोबडे ने कहा कि लेकिन राज्य का ऐक्शन सिर्फ मौलिक अधिकार के उल्लंघन के मामले में चुनौती के दायरे में आ सकता है कॉमन कानूनी अधिकार के मामले में नहीं।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि अगर किसी की गरिमा प्रभावित होती है तो फिर उसका ग्राउंड क्या होगा क्योंकि इसकी व्याख्या नहीं है। इस दौरान तुषार मेहता ने व्यक्तिगत अधिकार को संरक्षित करने वाले तमाम भारतीय कानून का उल्लेख किया।

राज्य को तय करना है कि निजता मौलिक अधिकार या फिर विधायी अधिकार के तौर पर रखा जाए

जस्टिस चंद्रचूड़ का सवाल था कि अगर आधार उल्लंघन करता है तो लोगों के पास क्या कानूनी उपाय है। तब अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि आधार ऐक्ट निजता को प्रोटेक्ट करता है और निजता को आदर्श मानता है।

उन्होंने कहा कि आईटी ऐक्ट सूचनात्मक निजता को संरक्षित करता है। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, जापान, ब्राजील, सऊदी अरब और चीन जैसे देश में निजता को विधायी अधिकार के तौर पर संरक्षित किया गया है।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि पाकिस्तान में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने की बात कही गई है। तुषार मेहता ने कहा कि यह राज्य को तय करना है कि वह क्या निजता को मौलिक अधिकार के दायरे में रखना चाहती है या फिर विधायी अधिकार रखना चाहती है।

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

और पढ़ें
Next Story