चीन में बजी ''दिल ने जिसे अपना कहा'' धुन, भारत-चीन की दूरियां कम करने में सफल होंगे मोदी-शी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच बैठक उस समय हो रही है, जब भारत और चीन के बीच अविश्वास और तनाव का माहौल है। इस बैठक से दोनों राष्ट्राध्यक्षों की कोशिश भारत-चीन के बीच दूरियों को पाटने की है और एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ाने की है। चीन की दो दिन की यात्रा पर आये पीएम मोदी का आज दूसरा दिन है। पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मौजूदगी में एक इवेंट में फिल्म ''ये वादा रहा'' का गाना ''तू तू है वही दिलम ने जिसे अपना कहा'' की धुन बजाई गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच बैठक उस समय हो रही है, जब भारत और चीन के बीच अविश्वास और तनाव का माहौल है। इस बैठक से दोनों राष्ट्राध्यक्षों की कोशिश भारत-चीन के बीच दूरियों को पाटने की है और एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ाने की है। चीन की दो दिन की यात्रा पर आये पीएम मोदी का आज दूसरा दिन है। पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मौजूदगी में एक इवेंट में फिल्म 'ये वादा रहा' का गाना 'तू तू है वही दिलम ने जिसे अपना कहा' की धुन बजाई गई।
#WATCH: Prime Minister Narendra Modi & Chinese President XI Jinping enjoy an instrumental rendition of 1982 Bollywood song 'Tu, tu hai wahi dil ne jise apna kaha,' at an event in China's Wuhan. (27.04.2018) pic.twitter.com/KjGRcHbl38
— ANI (@ANI) April 28, 2018
विश्व में भारत और चीन ऐसे विरले पड़ोसी देश हैं, जिनमें तनाव और सहयोग साथ-साथ हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस अनौपचारिक यात्रा का मकसद दक्षिण एशिया में शांति, स्थायित्व और विकास के लिए माहौल कायम करने की है।
#China: Prime Minister Narendra Modi & Chinese President Xi Jinping take a walk along East Lake in Wuhan. The two leaders also had tea after the walk. pic.twitter.com/PGIFt4fXJ7
— ANI (@ANI) April 28, 2018
डोकलाम विवाद के बाद भारत व चीन के रिश्ते तनावपूर्ण हुए हैं, दोनों के बीच अविश्वास बढ़ा है। डोकलाम के दौरान भारत ने जिस तरह ड्रैगन को कूटनीतिक मात दी, उससे चीन को भी एहसास हो गया है कि भारत 1962 के दौर से बहुत आगे निकल चुका है।
2019 में नरेंद्र मोदी की वापसी
दोनों देशों के तेवर में नरमी की वजह यह है कि जहां चीन को भान हो गया है कि 2019 में नरेंद्र मोदी की वापसी हो रही है, वहीं भारत भी समझ गया है कि शी चिनफिंग चीन के आजीवन राष्ट्रपति बने रह सकते हैं।
संरक्षणवाद का झंडा
इसके साथ ही अमेरिका ने संरक्षणवाद का झंडा जिस तरह बुलंद किया है और एक के बाद एक आर्थिक फैसले संरक्षणवाद के पक्ष में ले रहा है, उसके बाद भारत का सतर्क होना लाजिमी है। भारत किसी खेमे में रहने या किसी का मोहरा बनने को तैयार नहीं है।
एनएसजी में भारत की एंट्री
हाल के दिनों में चीन ने भारत पर अमेरिकी खेमे में जाने का आरोप लगाया था। दोनों देशों के बीच कई अहम मसले भी हैं, जिसके चलते दूरियां बदस्तूर हैं। चीन परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) में भारत की एंट्री का विरोध कर रहा है।
अजहर मसूद ग्लोबल आतंकी घोषित
सुरक्षा परिषद के विस्तार और भारत की स्थाई सदस्यता का भी चीन विरोध कर रहा है। जैश ए मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने की भारत की कोशिश को ड्रैगन सिरे नहीं चढ़ने दे रहा है।
चीन पाक पर दबाव नहीं बनाता
कश्मीर में पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने से रोकने के लिए भी चीन पाक पर दबाव नहीं बनाता है। चीन-पाक आर्थिक गलियारे को पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान से गुजारने से भी भारत नाखुश है।
डोकलाम में सड़क बनाने की चीन की जिद
दक्षिण चीन सागर में अंतराष्ट्रीय नियमों व फैसलों को ताक पर रखकर चीन की मानमानियों व अवैध निर्माण को लेकर भी भारत को आपत्ति है। डोकलाम में सड़क बनाने की चीन की जिद भी भारत को नागवार है।
बौद्ध धम्म गुरु दलाई लामा
इसके उलट बौद्ध धम्म गुरु दलाई लामा को शरण देने, शी के वन बेल्ट वन रोड ग्लोबल प्रोजेक्ट का समर्थन नहीं करने के चलते चीन भारत से नाखुश है। चीन ने भारत पर तिब्बती अलगाववादियों को समर्थन देने और अमेरिका-जापान के साथ मिलकर ड्रैगन को घेरने का आरोप भी लगाया है।
चीन के आरोप
हालांकि चीन के ये आरोप बेबुनियाद हैं। भारत कभी भी तिब्बती अलगाववाद को समर्थन नहीं दिया है। जहां तक अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के चतुष्पक्षीय मंच बनाने की बात है, इसका विशुद्ध मकसद आर्थिक और सामरिक सहयोग है,
भारत भी न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहा है
यह चीन समेत किसी देश के खिलाफ नहीं है। आज चीन भी नए ऐरा में है और भारत भी न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में दोनों में परस्पर सहयोग दोनों को अपना लक्ष्य पूरा करने में मदद कर सकता है।
भारत-चीन की दूरियां कम
- पीएम मोदी चीन के साथ अगले सौ साल के लिए शांति व विकास के एजेंडे तय करना चाहते हैं।
- लेकिन यह तभी संभव है, जब दोनों देशों अपने आपसी मतभेदों को सुलझा लें। दोनों देशों के उद्यमी मिलकर काम करना चाहते हैं।
- दोनों देशों पर विश्व की 40 फीसदी आबादी का सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करने का दायित्व है। यह दोनों देशों के नेतृत्व को समझना होगा।
- उम्मीद की जानी चाहिए कि 24 घंटे में मोदी व शी के बीच छह बार की बैठक में भारत और
- चीन अपने मतभेदों को सुलझाने की जमीन तैयार कर लेंगे और विश्व में सहयोग के नए युग की शुरूआत करेंगे।
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