भीमा-कोरेगांव हिंसा: SC ने आरोप पत्र दाखिल करने के लिए महाराष्ट्र पुलिस को दिया और समय
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को राहत देते हुए कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में अपनी जांच पूरी करने तथा आरोप पत्र दाखिल करने के लिये सोमवार को अतिरिक्त समय दे दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को राहत देते हुए कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में अपनी जांच पूरी करने तथा आरोप पत्र दाखिल करने के लिये सोमवार को अतिरिक्त समय दे दिया है।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की अपील पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद बंबई उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी।
उच्च न्यायालय ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने के लिये और समय देने का निचली अदालत का आदेश निरस्त कर दिया था।
पीठ ने इसके साथ ही महाराष्ट्र सरकार की अपील पर कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी किेये। इन सभी से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।
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राज्य सरकार की ओर से पूर्व अटार्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अतिरिक्त समय देने से इंकार किये जाने का नतीजा 90 दिन की निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं होने पर आरोपियों को जमानत प्राप्त करने का कानूनी हक प्रदान करेगा।
रोहतगी ने उच्च न्यायालय के आदेश की आलोचना करते हुये कहा कि इस मामले में जांच अधिकारी ने आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि बढ़ाने के लिये निचली अदालत में आवेदन किया था और लोक अभियोजक ने इसका समर्थन किया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुये कहा कि उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष सही है कि इस तरह के आवेदन दायर करना गैरकानूनी है क्योंकि लोक अभियोजक ने जांच अधिकारी की आवश्यकता को देखते हुये स्वतत्र रूप से आवेदन किया था।
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश रोक लगाते हुये इस मामले में आरोप पत्र दाखिल करने के लिये समय बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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इस बीच, पीठ ने गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस की एक अन्य याचिका पर भी नोटिस जारी किया।
इस मामले में रोहतगी ने कहा कि उच्च न्यायालय को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए था क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने आरोपी को घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका कैसे दायर की जा सकती है।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने और इन गिरफ्तारियों की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने से इंकार कर दिया था।
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