शहीद-ए-आजम भगत सिंह के बारे में क्या आपको पता है ये 5 बातें
शहीदे आजम भगत सिंह की आज जयंती है। उनका जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था। उनका जीवन आज के युवाओं को प्रेरणा देने वाला है।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 27 Sep 2018 1:55 PM GMT Last Updated On: 27 Sep 2018 1:55 PM GMT
शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था। भगत सिंह को बचपन से ही यह बात खाए जा रही थी कि उनके देश पर अंग्रेज राज कर रहे हैं। वह एक बार खेतों में खेल रहे थे। उनके पिता ने आकर उनसे पूछा की क्या कर रहे हो तो उन्होंने कहा कि "बंदूके बो रहा हूं, ताकि अंग्रेजों को मार सकूं"। उनका जीवन आज के युवाओं को प्रेरणा देने वाला है। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें...
जलियावाला बाग गोलीकांड ने जीवन पर डाला प्रभाव
13 अप्रैल 1919 में बैसाखी के दिन अमृतसर में क्रांतिकारी जलियावाला बाग में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। उसी समय जनरल डायर ने वहां गोली चलवा दी। जिसमें 400 से अधिक पुरुष, महिलाएं, व बच्चे मारे गए। गोलीकांड के बाद भगत सिंह जलियावाला बाग गए और वहां खून से सनी हुई मिट्टी एक शीशी में भर लाए। वह हमेशा उसे अपने साथ रखते थे। इस कांड ने उनके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला।
आजादी ही मेरी दुल्हन
भगत सिंह जब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे उस समय उनकी शादी तय हो गई। उन्होंने सोचा कि अगर शादी हो गई तो आजादी के लिए नहीं लड़ पाएंगे। उन्होंने अपने पिता के लिए एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने कि वह शादी नहीं करना चाहते और आजादी ही उनकी दुल्हन है। उसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
आजादी के लिए छोड़ी पढ़ाई
आजादी के वह इतने दीवाने थे कि उन्होंने अंग्रेजों की शिक्षा न लेने का फैसला किया। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।
लाला जी की मौत का लिया बदला
लाला लाजपत राय को एक प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला था। इसके बाद उन्होंनेराजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे. पी. सांडर्स को मार डाला और लाला जी की मौत का बदला लिया।
बम से दहला दिया सदन
भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये स्मोक बम और पर्चे फेंके थे। उन्होंने खुद अपनी गिरफ्तारी भी दी। इसके बाद अंग्रेज सरकार ने मुकदमा चलाकर 23 मार्च 1931 की रात में उन्हें राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी दे दी । फांसी से पहले तीनो कांतिकारी ठहाके लगा कर हंस रहे थे। फंदे को चूमकर वो फांसी
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