जल्लीकट्टू के लिए लोगों का कलेक्टर ऑफिस के बाहर प्रदर्शन
तमिलनाडु के लिए पोंगल के मौके पर जलीकट्टू का होना बेहद खास होता है।

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नई दिल्ली. तमिलनाडु में शनिवार को पोंगल के मौके पर होने वाली जलीकट्टू अब नहीं होगी। जिसके लिए डीएमके कार्यकर्ताओं ने कलेक्टर ऑफिस के बाहर जमकर राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया है। कार्यकर्ताओं के साथ नेता एम के स्टॉलेन और एम के कनीमोझी भी मौजूद हैं।
Chennai: DMK workers gather near Collector's office. The party has called for a statewide protest today #jallikattu pic.twitter.com/FHaNniEHCj
— ANI (@ANI_news) January 13, 2017
गौरतलब है कि, सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार से पहले जलीकट्टू पर फैसला सुनाने से इंकार कर दिया है। बता दें कि जल्लीकट्टू यानी सांड़ों की दौड़ पर रोक के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को शनिवार से पहले फैसला देने की अर्जी लगाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी को टुकरा दिया है।
#jallikattu is our tradition but now Centre and State government have failed to get us the permission to conduct it: MK Stalin pic.twitter.com/zcNqN1iV61
— ANI (@ANI_news) January 13, 2017
बता दें कि तमिलनाडु के लिए पोंगल के मौके पर जलीकट्टू का होना बेहद खास होता है। जी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने 2014 को जल्लीकट्टू पर रोक लगाई थी। वहीं केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को अधिसूचना जारी कर जल्लीकट्टू पर लगी रोक को हटा दिया था। और इस अधिसूचना में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए थे। दरअसल, पशु कल्याण बोर्ड, पीपुल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, बेंगलुरू के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अधिसूचना को चुनौती भी दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिसूचना पर रोक लगा दी थी।
Chennai: DMK workers protest near Collector's office. DMK working president MK Stalin and Kanimozhi also present. #jallikattu pic.twitter.com/Z78s3G9jet
— ANI (@ANI_news) January 13, 2017
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से जलीकट्टू को लेकर इस बात की मांग की गई थी कि शनिवार से पहले आदेश सुना दिया जाए। लेकिन कोर्ट का कहना है कि सारे ड्राफ्ट तैयार हो चुके हैं लेकिन शनिवार से पहले आदेश नहीं सुनाया जा सकता है। इस बार ही नहीं पिछले साल जुलाई में तमिलनाडू सरकार ने अपनी परंपरा की बातें बताते हैं याचिका दायर की थी। लेकिन जस्टिस के अनुसार तमिलनाडु सरकार की याचिका में कोई खास वजह नहीं दिखी। उनका कहना था कि साल 1899 में करीब 10 हजार से ज्यादा लड़कियों की उम्र से पहले की गई क्या ये सही है। क्या इस परंपरा मानकर आगे भी चलाया जा सकता है।
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