1965 की जंगः महानायक शहीद अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि देंगे सेना प्रमुख
10 सितंबर को करेंगे उत्तर-प्रदेश के गाजीपुर का दौरा।

भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में हुई जंग में दुश्मन को नाको चने चबाने वाले शहीद कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि देने के लिए सेनाप्रमुख जनरल बिपिन रावत रविवार 10 सितंबर को उत्तर-प्रदेश के गाजीपुर जाएंगे।
सेनाप्रमुख का यह दौरा एक दिन का होगा। सेना के सूत्रों ने कहा कि बीते 1 जनवरी 2017 को सेनाप्रमुख का कार्यभार संभालने के बाद सेना की 4 ग्रेनेडियर इंफेंट्री रेजीमेंट के इस शहीद पत्नी रसूलन बीबी ने जनरल रावत से मुलाकात कर यह आग्रह किया था कि वह एक बार उनके पति को श्रद्धांजलि देने के लिए गाजीपुर में बनाए गए स्मारक पर जरूर आएं। इस पर जनरल रावत ने शहीद की पत्नी की वृद्धावस्था को देखते हुए गाजीपुर जाने का फैसला किया है।
10 सितंबर को होती है सभा
शहीद अब्दुल हमीद का परिवार हर साल 10 सितंबर को गाजीपुर में बनाए गए स्मारक के पास एक सभा का आयोजन करता है। 1965 की लड़ाई में हमीद के अदम्य साहस और वीरता के लिए सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र (पीवीसी) से सम्मानित किया था। हमीद का पैतृक गांव धरमपुर है। यह गाजीपुर जिले में स्थित है।
असल-उत्तर बना पैटन टैंकों की कब्रगाह
8 सितंबर 1965 को पाकिस्तानी सेना ने अमेरिका से खरीदे गए पैटन टैंकों से पंजाब के खेमकरण सैक्टर के असल-उत्तर गांव में हमला कर दिया था। भारतीय सेना के जवान अपनी थ्री नॉट थ्री राइफल और एल़ एम़ जी बंदूक से दुश्मन का मुकाबला करने लगे।
अब्दुल हमीद के पास गन माउंटेड जीप थी। वह उसके साथ ही जंग में कूद पड़े। उन्होंने अपनी जीप पर लगी हुई गन की मदद से एक-एक करके पैटन टैंकों पर सटीक निशाने लगाने शुरू कर दिए।
इससे पाकिस्तानी सैनिकों में अफरातफरी मच गई और हमीद के अलावा अन्य भारतीय जवानों में जोश भर गया। हमीद ने अपनी गन से कुल 7 पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया था।
हमले के बाद पाक सेना द्वारा युद्धस्थल से भागने के बाद असल-उत्तर का गांव पैटन टैंकों की कब्रगाह बन गया था। इतना ही नहीं युद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका ने पैटन टैंकों की मारक क्षमता का पुन: विश्लेषण करने के लिए एक समीक्षा भी की थी।
इसमें भी उनके सामने तुलना करने के लिए और कुछ नहीं बल्कि शहीद अब्दुल हमीद की वह छोटी सी जीप माउंटेड गन ही थी। जिसने युद्ध के बाद अमेरिका को भी एक बार अपनी सैन्य-सामरिक तकनीक के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था।
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