यूपी: 164 सालों में कितना बढ़ा अयोध्या विवाद, इस वजह से नहीं निकला कोई हल
अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचा गिराए जाने के पूरे 25 साल हो गए हैं।

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचा गिराए जाने के पूरे 25 साल हो गए हैं। जिसको लेकर देशभर में अलर्ट जारी कर दिया गया है।
विश्व हिंदू परिषद ने देशभर में शौर्य दिवस मनाने का ऐलान किया है तो वहीं बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने शांतिपूर्ण ढंग सें बाबरी विध्वंस की बरसी मनाने का ऐलान किया है।
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लेकिन इस बार चर्चा सुप्रीम कोर्ट की हो रही है। दरअसल करीब 164 साल पुराने इस विवाद पर मंगलवार यानि 5 दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। यह तारीख इस वजह से और भी खास है क्योंकि इसके ठीक एक दिन बाद विवादित ढांचा को ढहाए 25 साल हो।
6 दिसंबर 1992 के दिन जब विवादित ढांचा को ढहाए गया तो जहां केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तो उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा था। 25 साल बाद जब इस मामले पर सबसे बड़ी और अहम सुनवाई होने जा रही है तब केंद्र और राज्य दोनों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
164 साल पुराने अयोध्या विवाद में 90 हजार पेज में गवाहियां दर्ज हुई हैं। अकेले उत्तर प्रदेश सरकार ने ही 15 हजार पन्नों के दस्तावेज जमा कराए हैं। 16 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद इसकी जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया।
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सुप्रीम कोर्ट में हुए 7 साल पूरे
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड 14 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। फिर एक के बाद एक 20 याचिका दाखिल हो गईं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दी।
लेकिन सुनवाई शुरू नहीं हुई। इस दौरान 7 चीफ जस्टिस बदल गए। सातवें चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इस साल 11 अगस्त को पहली बार याचिका लिस्ट की पर सुनवाई के लिए तैयार हुए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
28 साल सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो एक के बहुमत से 30 सितंबर, 2010 को जमीन को तीन बराबर हिस्सों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बांटने का फैसला सुनाया था।
हालांकि, हाईकोर्ट के खिलाफ सभी पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 को अपीलों को विचारार्थ स्वीकार करते हुए मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था, जो यथावत लागू है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अयोध्या विवाद पर सुनवाई शुरू हुई। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 8 फरवरी 2018 की तारीख दे दी। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने इस मामले की सुनवाई 2019 के आम चुनाव तक टालने की मांग की।
उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि अभी तक कागजी कार्रवाई भी पूरी नहीं हुई है। कोर्ट के फैसले का देश में बड़ा असर पड़ेगा और मामले में जल्द सुनवाई की जरूरत नहीं है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इसपर नाराजगी जताते हुए कहा कि सभी पक्षकार जनवरी में सुनवाई के लिए तैयार हो गए थे और अब कह रहे हैं कि जुलाई 2019 के बाद सुनवाई हो। चीफ जस्टिस ने कहा कि इससे हमें धक्का लगा है।
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