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विश्व आदिवासी दिवस: आज भी बदहाल है आदिवासियों की जिंदगी, 7 साल बाद भी मासूमों को नसीब नहीं हो पाया स्कूल Watch Video

एक ओर जहां सरकार आदिवासियों की किस्मत संवारे का प्रयास कर रही है और उनके सम्मान में आदिवासी दिवस मनाकर अपना कर्तव्य निभाने की बात कर रही है। वहीं दूसरी ओर दमोह जिले के एक आदिवासी टोला में आज भी बच्चों को पढ़ने के लिये स्कूल भवन नहीं है।

विश्व आदिवासी दिवस: आज भी बदहाल है आदिवासियों की जिंदगी, 7 साल बाद भी मासूमों को नसीब नहीं हो पाया स्कूल Watch Video
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एक ओर जहां सरकार आदिवासियों की किस्मत संवारे का प्रयास कर रही है और उनके सम्मान में आदिवासी दिवस मनाकर अपना कर्तव्य निभाने की बात कर रही है। वहीं दूसरी ओर दमोह जिले के एक आदिवासी टोला में आज भी बच्चों को पढ़ने के लिये स्कूल भवन नहीं है।

पिछले सात सालों से ये बच्चे कभी पेड़ की छांव में तो कभी झोपड़ीनुमा किराना दुकान में पढ़ने मजबूर हैं। अफसरों की लापरवाही कहें या लालफीताशाही लेकिन बच्चें इस तरह की शिक्षा ग्रहण करने के लिये मजबूर हैं।

यह है हिंडोरिया नगर परिषद के बार्ड क्रमांक 1 का आदिवासी टोला कंचनपुरा। जो बच्चे झोपड़ीनुमा किराना दुकान में बैठे पढ़ते दिखाई दे रहे हैं, वो हैं शासकीय स्कूल के बच्चे। जी हां ये सरकारी प्राईमरी स्कूल के एक शिक्षक और एक शिक्षिका जो बच्चो को झोपड़ी में पढ़ा रहे हैं।

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर इन बच्चों को इस झोपड़ी में पढ़ने के लिये क्यों मजबूर होना पड़ रहा है इसकी एक ही वजह यह है अफसरों की लापरवाही। इन बच्चों को सात वर्षो में स्कूल भवन नसीब नहीं हो पाया है, पहले कुछ दिन किराये के मकान में स्कूल संचालित किया गया।

लेकिन किराया ना देने पर मकान मालिक ने अपना कमरा खाली करवा लिया। अब इन बच्चों को पढ़ने का एक सहारा बचा था वो था पेड़ लेकिन उसे भी जमीन के मालिक ने कटवा दिया अब यही झोपड़ी बरसात के मौसम में इन बच्चों का स्कूल है और अन्य मौसम में खुला आसमान।

इसे दुर्भाग्य ही कहेगें कि जिस नगर परिषद का यह बार्ड है उस नगर परिषद से दो विधायक वर्तमान विधानसभा में चुनकर गये हैं लेकिन उनके द्वारा भी अभी तक स्कूल भवन बनाने के लिये कोई प्रयास नहीं किया है। आदिवासियों के लिये लड़ाई लड़ने वाले एकता परिषद के प्रदेश सदस्य सुजात खान इस लड़ाई को आगे ले जाने के मूड में नजर आ रहे है।

स्कूल भवन बनाने के लिये भले ही अधिकारी जमीन ना होने की बात कर रहे हैं लेकिन इस नगर के एक समाजसेवी अपनी जमीन देने तैयार है और वो कई बार अधिकारियों के पास भी जा चुके हैं लेकिन अधिकारी इसके बाद भी इस ओर सुध लेने नहीं गये और ना ही आदिवासियों के बच्चों के लिये स्कूल भवन बनवाने के लिये प्रयास करते नजर आये हैं।

ठंड हो या गर्मी या बरसात इन बच्चों के लिये खुला आसमान या यह झोपड़ी ही इनका स्कूल है और यह व्यवस्था सरकारी तंत्र पर करारा तमाचा है, भले ही सरकार आदिवासी दिवस मनाकर आदिवासियों की दशा व दिशा सुधारने का प्रयास कर रही है लेकिन दमोह जिले के इस स्कूल का हाल देखकर यहीं कहा जा सकता है कि आदिवासियों का कोई धनी धौरी नहीं है।


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