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डकैतों को मारने पर मिले आउट ऑफ टर्न प्रमोशन, 220 रुपए वेतन पर किया था ज्वाइन, रिटायरमेंट तक वेतन पहुंचा 92 हजार 

डकैतों को मारने पर मिले आउट ऑफ टर्न प्रमोशन ने जहां एसआई को इंस्पेक्टर बना दिया, फिर वे पुलिस अधिकारी एआईजी पद तक पहुंचे। तब थानेदारी में वेतन कम था मात्र 220 रुपए। अंत में एआईजी पद से रिटायर होने तक वेतन 92 हजार रुपए के पार हो गया था।

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प्रमोशन (प्रतीकात्मक फोटो)

भोपाल। डकैतों को मारने पर मिले आउट ऑफ टर्न प्रमोशन ने जहां एसआई को इंस्पेक्टर बना दिया, फिर वे पुलिस अधिकारी एआईजी पद तक पहुंचे। तब थानेदारी में वेतन कम था मात्र 220 रुपए। अंत में एआईजी पद से रिटायर होने तक वेतन 92 हजार रुपए के पार हो गया था। प्रदेश में कुछ सिपाही ऐसे भी हैं जो डकैत मार-मारकर पहले हवलदार, फिर एएसआई, एसआई और अंत में टीआई तक बन गए। पिछले सात साल से बंद आउट ऑफ टर्न प्रमोशन अब फिर शुरू होने से प्रदेश के उत्कृष्ट सेवा के लिए अपना 100 परसेंट देने वाले पुलिस कर्मचारियों में उम्मीद की किरण जागी है कि वे भी समय पूर्व पदोन्नति पा सकते हैं।

हरिभूमि ने पुलिस विभाग में समय पूर्व पदोन्नति का प्रावधान अब सात साल बाद फिर से शुरू होने के संबंध में पहली खबर 19 अगस्त को सबसे पहले बे्रक की। जिसके बाद तलाश किया कि ऐसे कौन पुलिस कर्मचारी हैं जो सिपाही से टीआई तक बने हैं। इनमें एक नाम ऐसा मिला, जो वर्ष 1984 में डकैतों से मुठभेड़ में सिर में गोली धंसने के बाद भी जीवित रहे। फिर वे एसआई रणधीर सिंह रूहल आउट ऑफ टर्न प्रमोशन से टीआई बने। अंत में एआईजी पद से रिटायर हुए हैं। खास बात है कि उन्होंने नौकरी में रहने हुए प्राइवेट फॉर्म भरकर एमए की, फिर एलएलबी भी की। इसके साथ ही ग्वालियर-चंबल संभाग में दस्यु समस्या पुलिस संगठन के परिपेक्ष्य में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन विषय पर पीएचडी भी कर ली। तब उनके नाम के आगे डॉक्टर लग गया। सेवानिवृत्त होकर आजकल डा.रूहल हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं।

डा.रूहल एसआई से एआईजी पद तक पहुंचे :

- मध्यप्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर एक जुलाई 1978 को भर्ती हुए।

- 31 मई 2012 को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में दिल्ली पदस्थ हुए।

- अंत में ग्वालियर जिला विशेष शाखा में एआईजी रहते हुए रिटायर हो गए।

ये सिपाही बन गए टीआई, कोई एएसआई :

मध्यप्रदेश पुलिस में डकैतों को मारने पर कुछ सिपाही एएसआई और टीआई तक बन गए। इनमें एक नाम भोपाल के स्टेशन बजरिया थाना प्रभारी सुदेश तिवारी का है। जबकि दो भाई श्याम चंद्र शर्मा व रामचंद्र शर्मा ऐसे भी हैं, जिनमें से एक सिपाही से टीआई व दूसरे सिपाही से एएसआई बने हैं। श्याम चंद्र जहां टीआई बने, वहीं उनके भाई रामचंद्र एएसआई हैं। एक और नाम रामकिशन गुर्जर है, जो सिपाही से टीआई बने हैं।

टीआई सुदेश तिवारी की समय पूर्व पदोन्नत कुछ यूं :

- सुदेश को पहला आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भिंड जिले में डकैत कुसमा नाइन की गैंग सरेंडर कराने पर मिला। तब तिवारी हवलदार बने।

- डकैत गड़रिया गैंग मारने पर सुदेश एएसआई बन गए। फिर डकैत जबर सिंह लोधी को मारने पर सब इंस्पेक्टर बने।

- सिपाही से भर्ती होकर कम उम्र में एसआई पद तक आ गए, फिर पांच साल में इंस्पेक्टर बन गए।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट :

डकैत-पुलिस विषय पर पीएचडी होल्डर डा.रूहल ने हरिभूमि से चर्चा में स्पष्ट किया कि पुलिस विभाग में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन एक बेहतरीन प्रावधान है, जिससे उत्कृष्ट सेवा का जज्बा मन में जागता है। सिपाही को लगता है कि अगर वह जी-जान से काम करेगा तो जल्दी तरक्की पा सकता है। इसीलिए यह प्रावधान पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा 70 में 70 क के नाम से किया गया।

चंबल डीआईजी से सेवा निवृत्त हुए डा.यादव ने मारे कई डकैत :

डा.हरीसिंह यादव, जो चंबल डीआईजी पद से सेवा निवृत्त हो चुके हैं, ने कई डकैत मारे। इन्हें मुरैना एसपी रहते हुए सवा सात लाख रुपए के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का खात्मा करने पर तीसरा राष्ट्रपति अवार्ड मिला था। उस मुठभेड़ में डीएसपी से सेवा निवृत्त हो चुके केडी सोनकिया भी गंभीर रूप से घायल हुए थे, जो तब टीआई थे। डा.यादव से हरिभूमि ने आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पर बात की। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत अच्छा प्रावधान है, जिससे काम करने वाले और आलसी लापरवाहों का आंकलन हो जाता है। जो अच्छा काम करे, उसकी तरक्की तो होनी ही चाहिए।

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