मध्य प्रदेश चुनाव / आगर-शाजापुर की पांच सीटों पर राजनीतिक पार्टियों की जातिवादी रणनीति
टिकट बंटवारे के बाद वोटों को कबाड़ने की कवायद में भी जातिवाद हावी है राजनीतिक पार्टियों ने आगर जिले की दोनों विधानसभा में ऐसे नेताओं को मैदान में उतारा जिनके समाज का वोट बैंक विधानसभा में अच्छा है। यह सिलसिला 28 नवम्बर को मतदान शुरू होने से पहले तक चलेगा।

टिकट बंटवारे के बाद वोटों को कबाड़ने की कवायद में भी जातिवाद हावी है राजनीतिक पार्टियों ने आगर जिले की दोनों विधानसभा में ऐसे नेताओं को मैदान में उतारा जिनके समाज का वोट बैंक विधानसभा में अच्छा है।
यह सिलसिला 28 नवम्बर को मतदान शुरू होने से पहले तक चलेगा राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आगर व शाजापुर जिले की पांचों सीटों पर भाजपा कांग्रेस कर जोर मुद्दों से ज्यादा जातिगत समीकरणों को साधने पर है।
आगर जिले की सुसनेर विधानसभा क्षेत्र में सौंधिया व पाटीदार मतदाताओं की संख्या अधिक होने से कांग्रेस ने भाजपा के पाटीदार विधायक एवं प्रत्याशी की काट के लिए सौंधिया समाज से उम्मीदवार बनाया है।
शाजापुर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर गुर्जर, पाटीदार, राजपूत, सोंधिया, खाती जातियों के समीकरण के मद्देनजर प्रत्याशी बनाए गए हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए भी जातिवाद के आधार पर ही रणनीति तैयार की गई है। सुसनेर क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा हो चुकी है।
शाजापुर विधानसभा क्षेत्र में दलित और मुस्लिम मतदाता करीब 90 हजार हैं। इसके बाद संख्या राजपूत, पाटीदार, ब्राह्मण, गुर्जर जातियों की है। इन चारों कुल 80 हजार वोट हैं। शेष वोट राठौर, भावसार समेत सामान्य व पिछड़ी जातियों के हैं।
बीते चुनाव में भाजपा ने पाटीदार कार्ड खेला था और अरूण भीमावत विजयी हुए थे। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में पराजित पूर्व मंत्री हुकमसिंह कराड़ा को फिर मैदान में उतारा है। कराड़ा गूजर हैं।
शुजालपुर सीट पर राजपूत, मेवाड़ा, परमार जातियों का बाहुल्य है। पाटीदार-गुर्जर गठजोड़ किसी भी दल के लिए समस्या खड़ी करने का माद्दा रखता है। तो ब्राह्मण व जैन मतदाताओं की गोलबंदी भी किसी को हराने व जिताने का समीकरण बन सकता है।
अनुसूचित जाति व मुस्लिम वोट भी हार जीत में अहम माने जाते हैं। कांग्रेस ने कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रामवीरसिंह सिकरवार को मैदान में उतारा है, वे राजपूत हैं।
आगर क्षेत्र में अजा में बलाई व मेघवाल मतदाता ज्यादा हैं। सीट आरक्षित होने के बाद 12 में से 5 चुनाव इसी वर्ग के प्रत्याशियों ने जीते। शेष सात विधानसभा चुनाव में खटीक, बेरवा व वाल्मीकि उम्मीदवार सफल हुए।
परिणाम में निर्णायक भूमिका सोंधिया,यादव मुस्लिम व अन्य पिछड़ी जातियों की मानी जाती रही है। यह क्षेत्र के 305 में से 250 मतदान केंद्र ग्रामीण हैं। आगर व बडोद तहसील के इस क्षेत्र में सौंधिया मतदाता बड़ोड क्षेत्र में अधिक है और भाजपा आगर की तुलना में बड़ोद तहसील से हर चुनाव में बढ़त बनाती रही है।
कालापीपल विधानसभा क्षेत्र में खाती परमार , मेवाड़ा , मुस्लिम , अजा मतदाता सर्वाधिक है। खाती, परमार मेवाड़ा समाज बाहुल्य है। लेकिन चुनाव में मुस्लिम एव अजा वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है । विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आने के बाद दो बार इस सीट के लिए चुनाव हुए और दोनो ही बार जातिगत समीकरण हावी रहे है।
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