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पंचायत प्रतिनिधियों की खल रही कमी, ग्रामीण न कोरोना टेस्ट करवाने काे तैयार और न ही आइसोलेशन सेंटर जाने को

महामारी से बचाव के लिए जो प्रशासनिक आदेश-निर्देश दिए जा रहे हैं, उनकी पालना नहीं हो रही। इस प्रकार की कई और दिक्कतों से प्रशासनिक अधिकारियों को वैश्विक महामारी में ग्रामीण इलाकों में दो-चार होना पड़ रहा है।

पंचायत प्रतिनिधियों की खल रही कमी, ग्रामीण न कोरोना टेस्ट करवाने काे तैयार और न ही आइसोलेशन सेंटर जाने को
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अमरजीत एस गिल : रोहतक

ग्रामीण क्षेत्र में लोग कोरोना टेस्ट नहीं करवा रहे, जिन्होंने करवाया और रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई तो वे आईसोलेशन सेंटर में आईसोलेट नहीं हो रहे। रोगरोधी क्षमता बढ़ाने के लिए लोग काेरोना की डोज लेने को भी तैयार नहीं हैं। महामारी से बचाव के लिए जो प्रशासनिक आदेश-निर्देश दिए जा रहे हैं, उनकी पालना नहीं हो रही। इस प्रकार की कई और दिक्कतों से प्रशासनिक अधिकारियों को वैश्विक महामारी में ग्रामीण इलाकों में दो-चार होना पड़ रहा है। ऐसे असामान्य हालातों में प्रशासन के पास ऐसी चेन नहीं है, जो लोगों को कोविड के खतरनाक पहलुओं से अवगत करवा सके।

इन भयावह हालातों में अगर पंचायती राज संस्थाओं का एक बार बहाल कर दिया जाए तो गांवों में 289 लोगों पर एक उनका अपना व्यक्ति बीच में हो सकता है। यह व्यक्ति ही लोगों को कोरोना टेस्ट और वेक्सीनेशन के लिए सहमत कर सकता है। इसके लिए सरकार ने सिर्फ करना यह है कि पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों को दोबारा से कार्यभार सौंप दे। यह काम करना कानूनी रूप से अवैध भी नहीं होगा। क्योंकि राज्य में इस समय हालात असामान्य हैं। इन हालातों में सरकार चुने हुए प्रतिनिधियों को दोबारा से कार्यभार दे सकती है। इसके लिए सरकार को सिर्फ एक अध्यादेश लाना पड़ेगा।

लोगों की एक ऐसी टीम मिल सकती है, जो ग्रामीणों की अपनी होगी

वर्ष 2016 में जिले के सभी 139 पंचायतों में 139 सरपंच, 1741 पंच, 107 पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद के 14 सदस्य चुने गए थे। इनकी कुल संख्या 2001 बनती है। जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक गांवों की आबादी 579332 है। इस हिसाब से एक चुने हुए प्रतिनिधि को मात्र 289 लोगों को महामारी के प्रति सचेत करना होगा। यह कार्य प्रतिनिधि आसानी से कर भी देगा। लेकिन अब विडम्बना यह है कि गत 24 फरवरी को पंचायती राज संस्थाओं का निर्धारित पांच साल का कार्यकाल पूरा होने पर चुने हुए प्रतिनिधियों से सरकार कार्यभार ले चुकी है। इस समय सरकार ने ग्राम पंचायत का प्रशासनिक अधिकारी संबंधित खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी को, पंचायत समिति का प्रशासक संबंधित एसडीएम और जिला परिषद के प्रशासक की जिम्मेदारी जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दी थी। ये अधिकारी ही इस समय संस्थाओं का कार्यभार देख रहे हैं। अगर पंचायती राज संस्थाएं होंगी तो एक प्रतिनिधि 289 लोगों को समझा पाएगा।

24 फरवरी को की थी भंग

पंचायती राज संस्थाओं का निर्धारित पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद गत 24 फरवरी को सरकार ने संस्थाओं को भंग कर दिया था। चूंकि छठे आम चुनाव को लेकर मामला उच्च न्यायालय में विचारधीन है। इसलिए चुनाव नहीं करवाए जा सकते थे तो सरकार ने संस्थाओं का प्रशासनिक कार्य करने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिए।

प्रतिनिधियों की बात मानेंगे

टिटौली गांव में संदिग्ध बीमारियों के चलते जिले में सबसे ज्यादा करीब 60 मौतें हुई हैं। लेकिन प्रशासन अभी तक लोगों को कोविड टेस्ट करवाने के लिए ही सहमत नहीं कर पाया है। इस गांव में 1 से 16 मई तक मात्र 681 लोगों ने टेस्ट करवाए। जबकि गांव की आबादी करीब 13 हजार है। प्रशासनिक मशीनरी लगातार टेस्ट करवाने के लिए लोगों से अनुरोध कर रही है। लेकिन परिणाम सभी के सामने हैं। लोग अधिकारियों की बातों पर ही बहुत कम विश्वास करते हैं। जो बात अधिकारी कोविड टेस्ट करवाने के लिए कह रहे हैं, अगर वहीं बात अगर उनके बीच चुना हुआ व्यक्ति कहे तो वह ज्यादा असरदार रह सकती है। बता दें टिटौली गांव में संदिग्ध बीमारियों के चलते जिले में सबसे ज्यादा करीब 60 मौतें हुई हैं। अभी तक सहमत नहीं कर पाए हैं।

ऐसे दिया जा सकता है कार्यभार

राज्य सरकार के पास विशेष अधिकार है कि किसी भी आपात स्थिति में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल बढ़ा सकती है। इसके लिए सिर्फ एक अध्यादेश लाना होगा। यहां यह भी याद दिला दें कि नए पंचायती राज अधिनियम के तहत संस्थाओं के पहले आम चुनाव दिसम्बर 1994 में हुए थे। इनका निर्धारित पांच साल का कार्यकाल दिसम्बर 1999 में पूरा होना था। लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार ने इनके कार्यकाल में छह सात महीने की बढ़ोतरी करके जुलाई 2000 में दूसरा आम चुनाव करवाया था। अब कोविड को लेकर राज्य में हालात अति खराब हैं। ऐसे में सरकार पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए प्रतिनिधियों को दोबारा से कार्यभार सौंप सकती है। इसकी कोई कानूनी अड़चन नहीं है।

महामारी के मद्देनजर प्रशासन का सहयोग

मैं महामारी के मद्देनजर प्रशासन का सहयोग कर रहा हूं। क्योंकि एक नागरिक होने के नाते यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है। जब तक महामारी है, तब तक सरकार ने चुने हुए प्रतिनिधियों को दोबारा से कार्यभार सौंप देना चाहिए। ताकि वे लोगों को कोविड टेस्ट और वैक्सीनेशन के लिए समझाएं। कानूनी जिम्मेदारी मिलने पर व्यक्ति दोगुने उत्साह से काम करता है।- अमित काद्यान, पूर्व सरपंच काहनौर रोहतक

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