Hari bhoomi hindi news chhattisgarh
toggle-bar

किडनी ट्रांसप्लांट के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जयपुर गोल्डन अस्पताल की अपील खारिज

अस्पताल में डॉक्टरों ने अनियमितता बरती और बताया नहीं कि उनका लाइसेंस वर्ष 2006 में ऑपरेशन की तारीख से पहले समाप्त हो गया था। उन्होंने इसका रिन्यू नहीं करवाया था। उन्होंने लापरवाही की थी, जिस वजह से यह ऑपरेशन फेल हो गया और मुल्कराज को चेन्नई में जाकर डेड किडनी निकलवानी पड़ी। बाद में मरीज की भी मौत हो गई थी।

किडनी ट्रांसप्लांट के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जयपुर गोल्डन अस्पताल की अपील खारिज
X

सुप्रीम कोर्ट

हरिभूमि न्यूज : रोहतक

सुप्रीम कोर्ट ने किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में जयपुर गोल्डन अस्पताल की अपील खारिज की है। मामला रोहतक के एक व्यक्ति के किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ा हुआ है। अस्पताल पर बिना लाइसेंस ऑपरेशन करने और लापरवाही बरतने के आरोप हैं।

शिकायत पक्ष के अधिवक्ता तुषार पाहवा ने बताया कि रोहतक के रहने वाले मुल्कराज धमीजा ने वर्ष 2006 में किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन जयपुर गोल्डन अस्पताल रोहिणी दिल्ली में करवाया था। मुल्कराज की दोनों किडनियां खराब हो गई थी और उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। तब उनकी पत्नी पिंकी धमीजा ने अपनी किडनी दी थी। डॉक्टर ने बताया कि जयपुर गोल्डन अस्तपाल के पास किडनी ट्रांसप्लांट करने का लाइसेंस सरकार द्वारा दिया गया है।

अस्पताल में डॉक्टरों ने अनियमितता बरती और बताया नहीं कि उनका लाइसेंस वर्ष 2006 में ऑपरेशन की तारीख से पहले समाप्त हो गया था। उन्होंने इसका रिन्यू नहीं करवाया था। उन्होंने लापरवाही की थी, जिस वजह से यह ऑपरेशन फेल हो गया और मुल्कराज को चेन्नई में जाकर डेड किडनी निकलवानी पड़ी। बाद में मरीज की भी मौत हो गई थी।

अधिवक्ता तुषार पाहवा ने बताया कि शिकायकर्ता ने वर्ष 2007 नेशनल उपभोक्ता न्यायालय में याचिका दायर की। 2018 में नेशनल कमीशन नई दिल्ली ने अपना फैसला सुनाया। राष्ट्रीय उपभोक्ता न्यायालय ने 10 लाख रुपये जयपुर गोल्डन अस्पताल को वादी मुल्क राज धमीजा को देने का व डॉक्टर उमेश नौटियाल एवं आरके सक्सेना को 5 लाख वादी मुल्क राज धमीजा को देने का आदेश सुनाया था। यह पैसा देने में देरी होने पर 9 प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देना होगा।

राष्ट्रीय उपभोक्ता न्यायालय के फैसले के खिलाफ की थी अपील

अस्पताल और डॉक्टरों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। जिसमें कहा कि वादी ने अपने केस में यह कहीं नहीं कहा कि अस्पताल के पास ऑपरेशन के समय लाइसेंस नहीं था। इस पर मुल्क राज के परिजनों की तरफ से एडवोकेट तुषार पाहवा ने दलील दी कि जब केस के दौरान डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज को एक आरटीआई लगाई थी जिस आरटीआई में हमें यह पता चला था कि जयपुर गोल्डन अस्पताल के पास एक्सीडेंट के समय ऑर्गन ट्रांसप्लांट का लाइसेंस नहीं था। तभी राष्ट्रीय उपभोक्ता न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है। दलीलें सुनने के पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल की अपील खारिज कर दी। इससे पहले भी दिल्ली मेडिकल काउंसिल व मेडिकल काउसिल ऑफ इंडिया ने भी इन सभी डॉक्टर के लाइसेंस एक माह के लिए कैंसिल कर दिए थे।

और पढ़ें
Next Story