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कुलदीप बिश्नोई को आदमपुर से ज्यादा 10 हजार रुपये की चिंता, विधानसभा अध्यक्ष गुप्ता ने विधायक पर कसा तंज

विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि कमेटियों की सदस्यता जाने की भनक लगते ही कुलदीप बिश्नोई ऐसे पत्र मीडिया में वायरल कर रहे हैं, जो कभी भेजे ही नहीं गए। कमेटियों से सिर्फ उन्हीं सदस्यों को हटाया जा रहा है, जो इन जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पा रहे।

कुलदीप बिश्नोई को आदमपुर से ज्यादा 10 हजार रुपये की चिंता, विधानसभा अध्यक्ष गुप्ता ने विधायक पर कसा तंज
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विस अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता और विधायक कुलदीप बिश्नोई

चंडीगढ़। हरियाणा विधान सभा की समितियों की सदस्यता मामले में आदमपुर विधान सभा क्षेत्र से विधायक कुलदीप बिश्नोई द्वारा मीडिया में दिए गए बयान पर विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने संज्ञान लिया है। विस अध्यक्ष ने कहा कि कमेटियों की सदस्यता जाने की भनक लगते ही कुलदीप बिश्नोई ऐसे पत्र मीडिया में वायरल कर रहे हैं, जो कभी भेजे ही नहीं गए। कमेटियों से सिर्फ उन्हीं सदस्यों को हटाया जा रहा है, जो इन जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पा रहे। ऐसा किसी के प्रति दुर्भावना के कारण नहीं अपितु कमेटियों की बैठकों में अनुशासन और कोरम के गणित को देखते हुए किया जा रहा है। लेकिन इस प्रकार की कार्रवाई से पहले ही बिश्नोई ने मीडिया में जिस प्रकार की बयानबाजी शुरू की है वह पूरी तरह गैरजिम्मेदारा तथा संसदीय मर्यादाओं के विपरीत है।

विस अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि कुलदीप बिश्नोई न तो एक जनप्रतिनिधि के तौर पर अपनी विधायी कामकाज संबंधित जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे और न ही संसदीय मर्यादाओं का पालन कर रहे। इतना ही नहीं उनके बयान से स्पष्ट होता है कि शायद उन्हें विधान सभा के नियमों का भी ज्ञान नहीं है। कुलदीप बिश्नोई कमेटियों की अध्यक्षता और सदस्यता के लिए वरिष्ठता और 4 बार विधायक रहने का हवाला दे रहे हैं, जिसमें अहंकार की बूं आती है। जबकि उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि ऐसा न तो कोई नियम है और न ही भूतकाल में ऐसी कोई परंपरा रही। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी जनप्रतिनिधि समान हैं और पहली बार चुनने वाला विधायक भी शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकता है। यह सिर्फ कमेटियों के मामले में नहीं अपितु पहली बार चुना जाने वाला जनप्रतिनिधि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या सदन का अध्यक्ष भी बन सकता है। कुलदीप बिश्नोई को भी इन संवैधानिक व्यवस्थाओं का सम्मान करना चाहिए।

बिश्नोई का यह दावा कि उन्होंने पिछले साल ही लिख कर दे दिया था कि उन्हें पांच साल तक किसी भी विधानसभा कमेटी का सदस्य न बनाया जाए। हालांकि ऐसा कोई पत्र विधान सभा सचिवालय के रिकॉर्ड में पत्र नहीं है, लेकिन बिश्नोई के व्यक्तव्य से यह अवश्य साबित हो गया कि उन्होंने चुनाव जीतते ही अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया था। जनता के वोट लेने के बाद उन्होंने जन समस्याओं के प्रति कोई सरोकार नहीं रखा। ये जग जाहिर है कि एक विधायक विधानसभा समिति का सदस्य होते हुए अपने विधान सभा क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करवाने में काफी हद तक सफल रहते हैं, लेकिन कुलदीप बिश्नोई ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया।

ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि कुलदीप बिश्नोई को अपने हलके की समस्याओं से ज्यादा अपने 10 हजार रुपये की चिंता है, जो समितियों की बैठकों में न आने कारण उन्हें नहीं दिए गए। हरियाणा विधान सभा विधायक वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम 1975 की धारा 3 के अनुसार विधायक पद की शपथ ग्रहण उपरांत अगर विधायक एक महीने में समिति की बैठकों में 90 फीसदी से कम हाजिर होता है तो उसे महीने का प्रतिपूरक भत्ता देय नहीं होता। बिश्नोई बैठकों में बिना आए ही प्रतिपूरक भत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं और वह भी ब्याज समेत। इससे स्पष्ट होता है कि उन्हें विधान सभा के नियमों का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है।

ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि बिश्नोई जिस प्रकार अपने स्वाभिमानी होने की बात कर रहे हैं, इसे बनाए रखने कि लिए अच्छा होता कि वे पत्र में यह भी लिखते कि जब वे व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण विधायी कामकाज में योगदान ही नहीं दे पा रहे तो वह इनसे संबंधित भत्ते भी नहीं लेंगे। नये विधायक की अध्यक्षता में काम करने से स्वाभिमान पर आंच नहीं आती, बल्कि बिना काम किए जनता का धन लेते वक्त हमें अपनी आत्मा की आवाज अवश्य सुननी चाहिए। कोई भी विधायक अपने हलके के लाखों लोगों का प्रतिनिधि होता है। उनके व्यक्तिगत कार्य इन सार्वजनिक कार्यों से ऊपर नहीं होने चाहिए। इस जनसेवा के लिए ही उन्हें वेतन और भत्ते देने की व्यवस्था की गई है।

ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि कुलदीप बिश्नोई अपने विधान सभा क्षेत्र की समस्याओं को लेकर कितने गंभीर हैं, इस बात का अनुमान उनके बतौर विधायक पद पर रहते हुए विधान सभा में उनकी कार्यशैली से लगाया जा सकता है। विधायक रहते हुए उन्होंने न कोई प्रश्न, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, अल्पकाल नोटिस, न कोई अन्य प्रस्ताव सदन में दिया। उन्होंने सदन के वर्तमान और पिछले कार्यकाल के सत्रों में बहुत की कम में हिस्सा लिया। रही बात उनको कमेटी की सदस्यता से हटाने और उससे संबंधित ज्ञान की तो बिश्नोई को यह जानकारी होनी चाहिए कि विधानसभा की नियमावली में स्पष्ट शब्दों में नियम 286 (3) के तहत वर्णित है कि कोई विधायक अगर समिति की दो बैठकों से अधिक जो कि अब संशोधन के बाद 3 बैठकें कर दिया गया है, समिति की बैठकों में गैरहाजिर रहता है तो विधान सभा अध्यक्ष उन्हें कमेटी की सदस्यता से हटा सकते हैं।

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