Expose : ये हैं महिला बाल विकास विभाग की बेखौफ महिला अफसर, दोषी पाई जाने के बावजूद बाल बांका न हुआ...
छत्तीसगढ़ सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग में दो ऐसी महिला अफसर हैं, जिनकी धमक, धौंस और रुतबे की चर्चा पूरे विभाग में हैं। उनके अधीन काम करने वालों का तो वैसे भी जीना-मुहाल हो चुका है, साथ ही साथ बड़े अफसर भी उनसे संबंधित फाइलों को छूने के नाम पर थरथर कांप रहे हैं, कार्रवाई करना तो दूर की बात है। एक महिला अफसर राजनांदगांव में पदस्थ है, तो दूसरी धमतरी में। आगे पढ़िए पूरी खबर-

रायपुर। महिला एवं बाल विकास विभाग का संचालनालय इन दिनों विभाग के दोषी अधिकारी-कर्मचारियों के लिए कार्रवाई से बचने का मुफीद अड्डा साबित हो रहा है। शिकायतें होती हैं, शिकायतों पर जांच भी हो जाती हैं, जांच रिपोर्ट आने के बाद अभिमत या अनुशंसा भी ले लिए जाते हैं, लेकिन उसके बाद....जब दोषी पर कार्रवाई करने की बारी आती है, तो संचालनालय के अफसरों के हाथ कांप जाते हैं। वे बहाने भले फाइल गुम जाने का बनाएं, या डाक देरी से पहुंचने का बनाएं, लेकिन ये ऐसी तमाम परिस्थितियां साफ संकेत देती हैं कि विभाग के जिन अफसरों पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी है, वे इतने बखौफ हैं कि सीएम, मिनिस्टर, सिक्रेटरी के आदेश-निर्देश का उन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के संचालनालय में जारी ऐसी मनमानी को समझने के लिए कुछ मामलों पर बारीकी से गौर करना होगा। धमतरी जिले के मगरलोड परियोजना का मामला ही ले लीजिए। यहां एक सुपरवाइजर हैं, जिनका नाम है मोनिका साहू। मोनिका साहू की अभद्रता से सेक्टर के अंतर्गत काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं इस कदर परेशान हैं, कि अब तक मोनिका साहू के खिलाफ कई बार शिकायतें हो चुकी हैं।
लगातार शिकायतों के बावजूद कार्रवाई न होने का दुष्परिणाम ये है कि उस सुपरवाइजर के हौसले बेहद बुलंद हैं। किसी भी प्रकार की कार्रवाई को लेकर बिल्कुल बेखौफ हो चुकीं उस सुपरवाइजर की तानाशाही और रौब ऐसा है कि पिछले दिनों उसने एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ ऐसा बर्ताव किया, कि कार्यकर्ता आत्महत्या के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो गई। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी का नमूना देखिए कि इस घटना की लिखित जानकारी भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और उनके परिजनों ने जिला कार्यालय को दी है, इसके बाजवूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस संबंध में जिला कार्यक्रम अधिकारी एमडी नायक से जब पूछा गया तो उनका कहना था कि शिकायत आई है। यह भी सही है कि मोनिका साहू नाम की सुपरवाइजर के खिलाफ पहले भी शिकायत आ चुकी है। उनके खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा कर दी गई है। उन्होंने यह भी बताया कि टाइम लिमिट की बैठक में इस पर चर्चा हुई थी। कलेक्टर साहब ने संबंधित सुपरवाइजर के बारे में जानकारी मांगी। कलेक्टर साहब के निर्देश के आधार पर टाइम लिमिट की बैठक का संदर्भ देते हुए जानकारी प्रेषित कर दी गई थी। आपको बता दें कि कलेक्टर को जानकारी प्रेषित किए जाने के बाद सुपरवाइजर के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा महिला एवं बाल विकास विभाग के संचालनालय को भी भेज दी गयी, लेकिन इसके बाद भी उस सुपरवाइजर के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। स्पष्ट है कि पहले की गई शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाय सुपरवाइजर को समझाइश देकर छोड़ देने के का नतीजा यह हुआ कि वह सुपरवाइजर न केवल बेखौफ हुई, बल्कि एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को अपना अभद्र व्यवहार का शिकार बनाते हुए उसे आत्महत्या के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया। इसकी जानकारी विभाग के बड़े अफसरों तक पहुंचने के बावजूद कार्रवाई न होना साफ संकेत है कि उस सुपरवाइजर की रौब और धौंस सिर्फ उसके सेक्टर तक ही सीमित नहीं, बल्कि राजधानी के संचालनालय तक भी है। अपनी करतूतों के कारण पूरे विभाग को बदनाम करने वाले ऐसे दोषी अधिकारी-कर्मचारियों को बचा लेने और उसकी पूरी कुंडली को ठंडे बस्ते में डाल देने की यह इकलौती कहानी नहीं है। एक किस्सा राजनांदगाव जिले का भी है। राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ परियोजना में एक परियोजना अधिकारी हैं नीरू सिंह। महिला एवं बाल विकास विभाग की गतिविधियों से ताल्लुक रखने वालों के लिए यह नाम न तो नया है, और न ही अपरिचित। क्योंकि यह वही नीरू सिंह हैं, जिनके दफ्तर में महापुरुषों की तस्वीरें जलाए जाने का एक गंभीर मामला कुछ माह पहले सामने आया था। नागरिकों ने तीखा आक्रोश व्यक्त किया था। एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर कार्रवाई की मांग की गई थी। कार्रवाई का तो पता नहीं, लेकिन नीरू सिंह आज भी यथावत अपने पद पर बनीं हुई हैं, क्योंकि नीरू सिंह की धौंस और तुनक भी कम नहीं है। नीरू सिंह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ आए दिन तनातनी, दुर्व्यवहार और अभद्रता के लिए अक्सर चर्चित रही हैं। परियोजना अधिकारी नीरू सिंह की शिकायतें जिला कार्यकम अधिकारी के स्तर पर जब आम बात हो गईं, तब कलेक्टर, संचालक, सचिव से लेकर सीएम भूपेश बघेल तक शिकायतें पहुंचने लगी। मुख्यमंत्री निवास कार्यालय ने शिकायत को गंभीरता से लिया। वहां से पत्र जारी किया गया। संचालनालय तक इस आशय का पत्र पहुंचा। राजनांदगांव जिला कार्यालय को संचालनालय से पत्र भेजकर कहा गया कि शिकायत की जांच करें और की गई कार्रवाई से अवगत भी कराएं। जैसे-तैसे उस शिकायत की जांच हुई। जांच के बाद रिपोर्ट भी पेश कर दी गई। रिपोर्ट पेश कर दिए जाने के बाद जिला कार्यक्रम अधिकारी ने कलेक्टर को अपनी रिपोर्ट भेज दी। शिकायत और जांच रिपोर्ट के अध्ययन के बाद राजनांदगांव कलेक्टर की तरफ से संचालनालय को अनुशंसा भेजी गई कि परियोजना अधिकारी नीरू सिंह के खिलाफ की गई अभद्रता संबंधी शिकायत जांच में सही पाई गई है, इसलिए अन्य जिले में स्थानांतरित किया जाए। कलेक्टर की इस अनुशंसा को भेजे हुए ही दो माह से ऊपर हो गए, लेकिन संचालनालय के जिम्मेदार अधिकारियों को कार्रवाई करने में कंपकंपी आ रही है। इस संबंध में संचालनालय का पक्ष जानने के लिए संचालक दिव्या मिश्रा से संपर्क किया गया, लेकिन किसी बैठक में उनकी व्यस्तता के कारण उनसे बातचीत नहीं हो पाई। संचालनालय के स्थापना शाखा प्रभारी अधिकारी से 'हरिभूमि डॉट कॉम' ने संपर्क किया। उन्होंने पहले तो साफ कह दिया कि उस शिकायत का जांच-प्रतिवेदन अभी तक आया ही नहीं है। दो दिन बाद उन्हीं अधिकारी को फिर कॉल करके बताया गया कि राजनांदगांव कलेक्टर कार्यालय से कार्रवाई की अनुशंसा दो माह पहले ही भेज दी गई है, तब उन्होंने कहा कि नीरू सिंह वाली फाइल को ढूंढ़ना पड़ेगा, उसके बाद कुछ बताया जा सकेगा। सीएम-डीएम को कुछ नहीं समझते अधिकारी : महिला एवं बाल विकास विभाग के संचालनालय के अधिकारी अपने विभागीय मंत्री को कुछ नहीं समझते, ऐसी चर्चा संचालनालय में बहुत कॉमन है। लेकिन संचालनालय का जो रवैय्या सामने दिख रहा है, उससे ऐसा लगने लगा है कि अब तो 'मुख्यमंत्री निवास कार्यालय' को भी संचालनालय के अधिकारी कुछ नहीं समझते। 'हरिभूमि डॉट कॉम' के पास मौजूद दस्तावेज इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सीएम हाउस तक की गई शिकायत को जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया और जांच रिपोर्ट मिलते ही संचालनालय को कार्रवाई की अनुशंसा भेजने में देर नहीं की, लेकिन संचालनालय तक अनुशंसा पहुंचने के बावजूद वहां के अधिकारियों ने कार्रवाई अब तक लंबित रखा। लापरवाही और निडरता की सीमा ये है कि वहां तो उस फाइल का ही पता नहीं है, बल्कि खोजना पड़ रहा है। संबंधित अधिकारी कभी कहते हैं कि प्रतिवेदन ही नहीं आया है, कभी कहते हैं कि फाइल ढूंढ़वाना पड़ेगा। ऐसे में समझा जा सकता है कि सीएम हाउस कार्यालय के संज्ञान वाली शिकायतों को आखिर संचालनालय के अफसर कितनी गंभीरता से ले रहे हैं। आपको बता दें कि राजनांदगांव कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा ने संचालनालय को भेजी गई अनुशंसा में साफ उल्लेखित किया है कि खैरागढ़ की परियोजना अधिकारी नीरू सिंह की अभद्रता के कारण उनके साथ काम करने वाले कर्मचारी, आंगनबाड़ीकर्मी, वहां के जन प्रतिनिधि और यहां तक कि वहां के आम आदमी भी व्यथित और आक्रोशित हैं। ऐसे में, नीरू सिंह को दूसरे जिले में स्थानांतरित किया जाए। इतनी गंभीर टिप्पणी कलेक्टर ने ऐसे ही तो नही कर दी होगी। कलेक्टर ने 'अधीनस्थ, जनप्रतिनिधियों और जन सामान्य में असंतोष' जैसी टिप्पणी करते हुए कार्रवाई की अनुशंसा भेजी है। कलेक्टर द्वारा इतनी स्पष्टता से उल्लेखित किए जाने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। आपको यह भी बता दें कि कलेक्टर ने उक्त अनुशंसा में तीन पत्रों का संदर्भ दिया है, जिसमें संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग संचालनालय नवा रायपुर के पत्र क्रमांक 10648 दिनांक 26-02-2021, संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग संचालनालय नवा रायपुर के पत्र क्रमांक 11389 दिनांक 15-03-2021 और माननीय मुख्यमंत्री निवास कार्यालय के जन चौपाल नंबर 2500721000157/मुमनि/2021 दिनांक 04-01-2021 का उल्लेख है। इसी तरह धमतरी में भी मगरलोड परियोजना अंतर्गत सुपरवाइजर मोनिका साहू की अभद्रता संबंधी शिकायत पर जिला कार्यक्रम अधिकारी ने कलेक्टर को अपने पत्र क्रमांक 1188/मबावि/टीएल 2021-22 के जरिए अवगत कराया है कि सुपरवाइजर मोनिका साहू के खिलाफ की गई शिकायत सही पाई गई है। अवकाश के दिन भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को परियोजना मगरलोड बुलाने, उनके साथ दुर्व्यवहार किए जाने की पुष्टि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने की है। आखिर क्यों नहीं होती कार्रवाई : मैदानी स्तर पर काम करने वाले परियोजना अधिकारियों, सुपरवाइजरों और दूसरे वर्ग के कर्मचारियों की 'ऊपर वालों' से अंदरूनी सेटिंग की चर्चाएं भी यहां अक्सर होती रहती है। कई ऐसे अधिकारी-कर्मचारी हैं, जिनके बारे में अक्सर चर्चाएं होती हैं कि उनकी संचालनालय के बड़े-बड़े अफसरों से डायरेक्ट पहुंच है, जिसके कारण उन पर कोई आंच नहीं आ सकती। एक सुपरवाइजर के बारे में यह आम चर्चा है कि वन-विभाग के एक नुमाइंदे से संबंध होने के कारण उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, क्योंकि वन विभाग के उस नुमाइंदे के डायरेक्ट कनेक्शन विभाग के एक बड़े पद पर आसीन अफसर के साथ हैं। इसी तरह, एक परियोजना अधिकारी के रसूख के बारे में भी ऐसी चर्चा है कि पॉलिटिकल बैकग्राउंड से होने के कारण अधिकारी उनकी ही सुनते हैं, न कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिमाकत कर पाते हैं। वह परियोजना अधिकारी अपने इलाके की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और सुपरवाइजर को सरेआम ऐसी धमकियां भी देती रही हैं। इन तमाम चर्चाओं के पीछे की हकीकत जो भी हो, लेकिन संचालनालय के जिम्मेदार अफसर दोषी लोगों पर कार्रवाई करने की बजाय, लेट-लतीफी करते हुए जो हील-हवाला करते रहते हैं, उससे इन चर्चाओं को बल मिलता है। और, हालात जब ऐसे हों, तो विभाग की बदनामी की बात करना तो बेमानी ही है। जांच भी संदिग्ध : जिस जांच के आधार पर खैरागढ़ की परियोजना अधिकारी नीरू सिंह के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा कलेक्टर ने की है, दरअसल उसकी मूल शिकायत में दो बिंदुओं का जिक्र है। पहला, रेडी टू ईट में अनियमितताएं और दूसरा कार्यकर्ताओं, अधीनस्थों के साथ अभद्र व्यवहार। इस शिकायत की जांच के लिए जिला कार्यालय से अधिकारी राज कुमार जाम्बुलकर को खैरागढ़ भेजा गया था। जांच के दौरान कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को पहले से तैयार लिखित बयान दे दिया गया, जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का नाम और केन्द्र का नाम रिक्त रखा गया, और कहा गया कि हस्ताक्षर करके जांच अधिकारी को दे दीजिए। कई कार्यकर्ताओं ने दिया भी, कुछ ने नहीं दिया, तो कई ने अपने तरीके से बयान दिया। यानी जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी का दावा तो नहीं, लेकिन अगर बयानों की प्रतियां सुक्ष्मता से पढ़ी जाए, तो अनेक कार्यकर्ताओं के बयान में एकरूपता से पता चल जाएगा कि वह जांच दरअसल साफ है या संदिग्ध है। हालांकि इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने रेडी टू ईट मामले में परियोजना अधिकारी नीरू सिंह को क्लीन चिट दिया है, किंतु अभद्रता का दोषी पाया है। संगठन में भी आक्रोश : आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के संगठन में भी इन मामलों को लेकर आक्रोश है। खैरागढ़ की कार्यकर्ताओं ने परेशान होकर संयुक्त रूप से इस आशय की शिकायत की थी। उधर, धमतरी में छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ की जिला अध्यक्ष रेवती वत्सल ने भी सुपरवाइजर मोनिका साहू पर कार्रवाई की मांग कई बार की है। बावजूद, संचालनालय के अधिकारी न तो फरियादी की बात सुन रहे हैं, न अनुशंसा करने वाले अधिकारियों की। साफ है, समय पर ऐसे दोषी लोगों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं अभी आक्रोशित हैं, वे आंदोलित भी होंगी। ● विनोद डोंगरे