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क्या आप में भी है जी-कॉम्प्लेक्स, जानिए

जी-कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त लोग हर चीज अपने हिसाब से करना चाहते हैं।

क्या आप में भी है जी-कॉम्प्लेक्स, जानिए
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नई दिल्ली. जी-कॉम्प्लेक्स यानी गॉड कॉम्प्लेक्स एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जिससे ग्रस्त व्यक्ति स्वयं को भगवान यानी सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं। ऐसे में वह खुद को हमेशा सही मानते हैं और किसी अन्य की बात पर ध्यान नहीं देते हैं। पर्सनल हो या प्रोफेशनल रिलेशन, इस तरह के लोग प्यार और वास्तविक सम्मान से महरूम ही रहते हैं।
कण-कण में भगवान। ईश्वर सर्वव्यापी है। वह हर जगह मौजूद होते हैं लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते और जो लोग उनके दर्शन पा लेते हैं उनका जीवन सफल हो जाता है। भगवान के दर्शन पाने की इच्छा हर किसी के मन में थोड़ी कम तो कुछ ज्यादा होती ही है। इसके विपरीत दुनिया में कई ऐसे लोग होते हैं, जो खुद को भगवान मानते हैं। ऐसे लोगों की अकसर न तो भगवान में आस्था होती है और न ही वे उनके नाम से अभिभूत होते हैं। खुद को भगवान मानने वाले यह भी मानकर चलते हैं कि उन्हें सही-गलत के बारे में सब पता है और वह जानते हैं कि उन्हें क्या और कब करना है।
क्या है जी-कॉम्प्लेक्स
ऐसे लोगों की नजर में वही हमेशा सही होते हैं और वे सोचते हैं कि कुछ भी उनकी इजाजत के बिना नहीं हो सकता। वे सोचते हैं कि अगर वे दुनिया से चले गए तो यह दुनिया पूरी तरह उलट-पलट हो जाएगी या खत्म ही हो जाएगी। इस तरह का रोग आजकल हर दूसरे-तीसरे व्यक्ति में देखने को मिलता है। इस रोग को जी-कॉम्प्लेक्स यानी ‘गॉड कॉम्प्लेक्स’ कहते हैं। यह जी-कॉम्प्लेक्स वाला आपका भाई, सास, बॉस, पत्नी, दोस्त, सहकर्मी या फिर कोई भी हो सकता है।
नहीं देते किसी को महत्व
इस तरह के लोग आपको कहीं भी किसी भी जगह दिख सकते हैं। आपको राह चलते भी कई ऐसे लोग मिल सकते हैं, जो खुद को बेस्ट और दूसरों से ऊपर समझते हैं। मिसाल के तौर पर कुछ कार वाले भी खुद को सबसे महत्वपूर्ण और बेहतर समझते हैं। उनके पास चूंकि कार है इसलिए वे मोटर साइकिल या स्कूटर, रिक्शा चलाने वालों से हर लिहाज से खुद को बेहतर और श्रेष्ठ मानते हैं। इसीलिए वे सड़क पर जिधर चाहे अपनी कार इधर-उधर घुमाते हुए चलते हैं, क्योंकि वे खुद की नजर में सर्वश्रेष्ठ होते हैं।
वे किसी ट्रैफिक रूल की परवाह किए बिना अपनी गाड़ी कभी राइट और कभी लेफ्ट में घुमाते हैं और अपनी इसी बेपरवाही में वे दूसरे हल्के वाहनों को टक्कर मार देते हैं। टक्कर मारने के बाद अभी बेचारा बाइक या साइकिल वाला उठ ही रहा होता है कि ये कार में सवार महाशय, गुस्से से बाहर निकलते हैं और अपनी गलती होने के बावजूद उल्टा मोटर साइकिल वाले व्यक्ति पर ही बरसते हुए कहता हैं, ‘तुम्हें दिखाई नहीं देता। तुम्हें देखना चाहिए था कि मैं यहां मुड़ रहा हूं।’ फिर इसी बहस के दौरान अकसर खुद को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले दूसरे महानुभाव आ जाते हैं, जो यूनिफॉर्म में होते हैं और आते ही अपनी रौबीली आवाज से सबको चुप करा देते हैं। फिर चारों तरफ देखते हैं और अगर उसी बीच उन्हें कोई बताने की कोशिश करे कि वहां क्या हुआ है तो वे गुस्से से बोलते हैं, ‘मुझे मत बताओ कि यहां क्या हुआ, मैं सब जानता हूं यहां क्या हुआ होगा?’
मानते हैं खुद को सर्वश्रेष्ठ
‘मुझे मत सिखाओ, मुझे पता है, मुझे क्या करना है?’, ‘मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं, तुम अपने काम से मतलब रखो।’ ये कुछ ऐसी बाते हैं, जो अकसर धरती पर रहकर खुद को भगवान मानने वाले लोगों के मुंह से सुनने को मिल जाती है। ऐसे लोग जो भले ही जिंदगी में कुछ न कर पाएं लेकिन सामने वाले को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यह ऐसे लोग होते हैं, जो किसी की बात नहीं सुनते। उन्हें लगता है कि वह जो कहते हैं, वही सही है। वे अपनी सोच और अपने विचार दूसरो पर थोपने की कोशिश करते हैं वह खुद को भगवान समझकर दूसरों को अपना समर्थक बनाना चाहते हैं और उनके मन में जो आता है, वह करते, कहते और दूसरों से करवाते हैं और जब कोई उनकी बात नहीं मानता तो वह दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं।
नहीं सुनते किसी की बात
जी-कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त लोग हर चीज अपने हिसाब से करना चाहते हैं। ये लोग हर समय अपनी तारीफ करते रहते हैं, सामने वाले को अपनी उपलब्धियां बताते हुए उनके कान पकाते रहते हैं। सामने वाला चाहे उनकी बात में दिलचस्पी ले या न ले, उन्हें सिर्फ बोलने से मतलब है। वे अपनी हर छोटी से बड़ी कामयाबी को बढ़ा-चढ़ाकर बताने में माहिर होते हैं। वे सामने वाले को उसकी बात कहने का मौका नहीं देते और अगर गलती से दे भी देते हैं तो उनकी बात पूरी होते-होते वे उन्हें बीच में दस बार टोकते हुए अपनी बात बताते हैं। इन लोगों को लगता है कि वह ही एक अकेले इस दुनिया के मालिक हैं, इन्हें यह समझाना मुश्किल होता है कि इस दुनिया में और भी बहुत सी जरूरी चीजे हैं, जिनसे यह दुनिया चलती है। यकीनन वे ऐसे विभूति नहीं हैं, जिन्हें हर कोई पूजे और उनकी सराहना करे।
इंसान समझना ही है बेहतर
कभी-कभी दूसरों द्वारा भी किसी व्यक्ति को भगवानतुल्य बनाया जाता है। कहने का मतलब यह है कि कई लोग जान-बूझकर किसी व्यक्ति को यह अहसास दिलाते हैं कि वह इस दुनिया में ही अकेला ऐसा व्यक्ति है, जिनका होना उनकी जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है। वे उसे बार-बार यह अहसास दिलाते हैं कि उनकी दुनिया केवल उनके इर्द-गिर्द ही घूमती है। उन्हीं पर शुरू और उन्हीं पर खत्म होती है। ऐसा कहने के पीछे हालांकि उनका प्यार होता है, लेकिन वह व्यक्ति उस बात को गलत दिशा में ले जाता है और अपने मन में यह गलतफहमी बना लेता है कि उसके बिना अब दूसरे का गुजारा नहीं।
उस व्यक्ति को आंख बंद करके दूसरे व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए और खुद को जी-कॉम्प्लेक्स नामक बीमारी का शिकार होने से बचाना चाहिए। आपको भले ही इस बात का अहसास न हो लेकिन इससे आपके दूसरों से रिश्ते खराब हो सकते हैं। क्योंकि दुनिया में घमंडी, दूसरों पर हुकुम चलाने वाले और खुद को भगवान समझने वाले लोगों को कोई भी पसंद नहीं करता। भले ही दूसरे आपके सामने इस बात को न कहें लेकिन आपके पीठ के पीछे आपकी इस मानसिक बीमारी को जी-भरकर कोसा जाता है। इसलिए बेहतर है कि खुद को भगवान नहीं इंसान ही समझें।
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