जानिए क्या है ''नाश'' बीमारी, इसके लक्षण और उपचार
अमिताभ बच्चन की एक चर्चित फिल्म में डायलॉग था कि ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब हो जाएगा। यह डायलॉग इस आम धारणा पर आधारित है कि जिगर या लीवर की खराबी से वही लोग परेशान होते हैं जो ज्यादा शराब पीते हैं। लेकिन ऐसा सही नहीं है। जो लोग शराब नहीं पीते उन्हें भी ‘नाश’ (नॉन एल्कोहोलिक स्टेटियोहेपेटाइटिस) हो सकता है, बल्कि उन्हें ही यह रोग होता है।

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Non alcoholic steatohepatitisCreated On: 25 Jan 2019 7:01 PM GMT
अमिताभ बच्चन की एक चर्चित फिल्म में डायलॉग था कि ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब हो जाएगा। यह डायलॉग इस आम धारणा पर आधारित है कि जिगर या लीवर की खराबी से वही लोग परेशान होते हैं जो ज्यादा शराब पीते हैं। लेकिन ऐसा सही नहीं है। जो लोग शराब नहीं पीते उन्हें भी ‘नाश’ (नॉन एल्कोहोलिक स्टेटियोहेपेटाइटिस) हो सकता है, बल्कि उन्हें ही यह रोग होता है।
45 वर्षीय मोनिका को लगभग तीन वर्ष पहले डायग्नोस किया गया था कि उनके रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बहुत ज्यादा है। डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी कि वह अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं। लेकिन उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की। फिर एक दिन उनके पेट में जबरदस्त दर्द हुआ और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। मालूम हुआ कि वह ‘नाश’ से पीड़ित हैं। इसलिए आज हम आपको ‘नाश’ बीमारी क्या है, इसके लक्षण और उपचार के बारे में बता रहे हैं। जिससे आप समय से इस बीमारी को होने से खुद को बचा सकें।
क्या है ‘नाश’
‘नाश’ क्या है? जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है यह रोग शराब न पीने वालों को होता है और इसमें जिगर में जलन व सूजन आ जाती है। वास्तव में इसके चलते जिगर में फैट की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे फैटी लीवर कहते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों को फैटी लीवर की शिकायत होती है, उनमें से 25 प्रतिशत ‘नाश’ से पीड़ित हो जाते है यानी उनके जिगर को ऐसा नुकसान पहुंचता है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता।
सवाल यह है कि ‘नाश’ किस वजह से होता है? सबसे पहले तो यह जान लें कि यह उसी किस्म का रोग है जो ज्यादा शराब पीने वाले लोगों को जिगर की खराबी के रूप में होता है। लेकिन ‘नाश’ उन लोगों को होता है जो शराब नहीं पीते हैं। विशेषज्ञों को यह नहीं मालूम है कि कुछ लोगों को ‘नाश’ क्यों होता है कुछ को ‘नाश’ क्यों नहीं होता? यह विरासत में भी मिल सकता है या इसका संबंध पर्यावरण में किसी चीज से भी हो सकते हैं, जिसकी वजह से यह रोग होता है।
'नाश’ रोग के लक्षण
व्यक्ति को थकन, वजन में कमी, कमजोरी और पेट में दर्द महसूस होता है। जो लोग आवश्यकता से अत्याधिक मोटे, मधुमेह पीड़ित, पाचन दर में कमी और हाई कोलेस्ट्रोल वाले हैं उनको इस रोग के होने का खतरा अधिक होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 30 प्रतिशत लोगों को फैटी लीवर होता है, जिनमें से 25 प्रतिशत पर ‘नाश’ का खतरा मंडराता रहता है। अगर ‘नाश’ अत्याधिक बिगड़ जाये और जिगर क्षतांकित हो जाए तो इससे सिरोसिस भी हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार फैटी लीवर या ‘नाश’ की सबसे बड़ी कमी यह है कि रोगी में जिगर प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता यानी वह जिगर प्रत्यारोपण के योग्य नहीं रहता है।
बहरहाल मोनिका को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि उसके रोग में इतनी तेजी से वृद्धि हो गयी है। उसे इस पर बहुत आश्चर्य हुआ और अफसोस भी। विशेषज्ञों का कहना है कि मोनिका जैसी स्थितियों में ज्यादातर रोगी होते हैं क्योंकि ‘नाश’ एक ऐसी स्थिति है जो बहुत खामोशी से अपना काम करती है और कोई विशेष लक्षण सामने नहीं आते हैं।
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विशेषज्ञों के अनुसार फैटी लीवर की स्थिति का बिगड़ जाना ही ‘नाश’ है और 45 वर्ष से अधिक की महिलाओं को इसका ज्यादा खतरा होता है। दरअसल, जिगर से जुड़े रोगों के चार स्तर होते हैं-फैटी लीवर, नाश, फाईब्रोसिस और सिरोसिस, जिसमें जिगर फेल हो जाता है। ‘नाश’ आसानी से उन रोगियों में हो जाता है जो मोटे हैं, मधुमेह पीड़ित हैं और जिनके कोलेस्ट्रोल का स्तर अधिक है।
ज्यादातर लोग समझते हैं कि फैटी लीवर एक अन्य साधारण सी बीमारी है, जिसमें ज्यादा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से स्थिति यह नहीं है। फैटी लीवर से पीड़ित लगभग 25 प्रतिशत रोगी ‘नाश’ पीड़ित हो जाते हैं और उनके जिगर को ऐसा नुकसान पहुंचता है जिसे फिर सुधारा नहीं जा सकता।
आमतौर से लोग यह भी समझते हैं कि फैटी लीवर वह रोग है जो शराब पीने वाले व्यक्तियों को होता है। इससे वह यह अंदाजा लगाते हैं कि लंबे समय से शराब पीने वाले लोगों को ही यह रोग होता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है।
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विशेषज्ञों के अनुसार 20 वर्ष पहले जो मधुमेह रोगी सामने आते थे उनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत को ही फैटी लीवर की शिकायत होती थी। लेकिन आज कम से कम 60 प्रतिशत मधुमेह रोगियों को फैटी लीवर की भी शिकायत है और उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो शराब नहीं पीते हैं।
‘नाश’ खामोशी से वार करने वाला रोग है। लगभग 40 प्रतिशत ‘नाश’ रोगियों का कोई लक्षण नहीं होता और बहुत देर में उनकी डायग्नोसिस हो पाती है। जिन लोगों में लक्षण दिखायी देते हैं वह थकन, तेजी से वजन कम होना और पेट के दायीं तरफ शरीर में दर्द महसूस करते हैं।
फैटी लीवर या ‘नाश’ होने की एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस रोग का पीड़ित अपना जिगर दान नहीं कर सकता। इस रोग के कारण अनेक जिगर दानकर्ता खो दिए जाते हैं। गौरतलब है कि जिगर शरीर का एक ऐसा हिस्सा है जिसका एक अंश दान करने पर वह फिर से पूरा हो जाता है।
'नाश’ रोग के उपचार
बहरहाल, सवाल यह है कि फैटी लीवर या ‘नाश’ से किस तरह बचा जा सकता है? अगर आप अपनी जीवनशैली में मामूली परिवर्तन कर लें तो इस रोग से सुरक्षित रहा जा सकता है। सबसे पहली बात तो यह है कि शुगर और फैटी फूड्स के सेवन की मात्रा कम कर दें।
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दूसरा यह कि अपनी तोंद यानी पेट के आसपास जो फैट जमा होता है उसे कम करें। कसरत करने से फैटी लीवर या ‘नाश’ को काफी हद तक रोका जा सकता है। विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि मात्र 30 मिनट की एरोबिक्स या रेजिस्टेंस से शानदार नतीजे बरामद हो सकते हैं।
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ध्यान रहे कि जो गलती मोनिका ने की थी कि डॉक्टरों की सलाह नहीं मानी और अपनी जीवनशैली में सुधार नहीं किया, वही आप न करें। आपके स्वस्थ्य रहने के लिए जरूरी है कि 4 सफेद चीजों-घी, शुगर, मैदा व नमक-का सेवन कम करें और नियमित कसरत करें।
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