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अगर आपके बच्चे भी करते हैं स्मार्ट गैजेट्स यूज, तो ध्यान से पढ़ लें ये खबर, वरना होगा नुकसान...

घर में बच्चों की खिलखिलाहट-चहचहाहट न गूंजे, वे शांत होकर स्मार्ट गैजेट्स में उलझे रहें, यह बच्चों के जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है। बच्चों द्वारा स्मार्ट गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से कई प्रकार की मानसिक-शारीरिक परेशानियां पैदा होती हैं। गैजेट्स के साथ समय बिताते हुए बच्चे फिजिकल एक्टिविटीज से ही दूर नहीं होते, मेंटल लेवल पर भी मेहनत करना भूल जाते हैं। ये गैजेट्स किन कारणों से बच्चों के लिए खतरनाक हैं, इसकी जानकारी हर पैरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है।

अगर आपके बच्चे भी करते हैं स्मार्ट गैजेट्स यूज, तो ध्यान से पढ़ लें ये खबर, वरना होगा नुकसान...
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किसी घर में दो साल का छोटू आईपैड पर बिना डांस सांग देखे दूध नहीं पीता तो कहीं मात्र आठ महीने की छुटकी फोन पर वीडियो चलाते ही रोना छोड़कर खिलखिलाने लगती है। किसी घर में पांच साल के बच्चे को स्मार्ट गैजेट्स हैंडल करना बड़ों से भी अच्छा आता है तो कहीं कोई बच्ची घंटों किसी कोने में सिमटी आईपैड लिए बैठी रहती है। घर-घर में ये अब बहुत आम दृश्य हो गए हैं। लेकिन इसके बारे में ध्यान देना जरूरी नहीं समझा जाता। पैरेंट्स इस बात को हंसकर टाल देते हैं, इतना ही नहीं हाईटेक होते बच्चों की इन आदतों पर वे गर्व महसूस करते हैं। लेकिन ना ही यह बात यूं हंसकर टालने की है, ना ही बच्चों पर गर्व करने की। अब ऐसे मामले सामने आने लगे हैं, जिनमें लगातार इंटरनेट के संपर्क में रहने और आईपैड, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स का लंबे समय तक इस्तेमाल करने के कारण बच्चों में मानसिक-शारीरिक परेशानियां पैदा हो रही हैं। उनके शरीर और दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों के मन-मस्तिष्क पर इन स्मार्ट गैजेट्स और इंटरनेट का रेडिएशन खतरनाक असर करता है, इसलिए हर पैरेंट्स को सावधान हो जाना जरूरी है।

खिलौने नहीं हैं गैजेट्स

सबसे पहले तो यह समझ लें कि स्मार्ट गैजेट्स खिलौने नहीं हैं। पैरेंट्स इन्हें बच्चों को व्यस्त रखने का सरल जरिया ना मान लें। बच्चों को पहले आदत और आगे चलकर लत की उस स्थिति तक न पहुंचाएं, जहां वे इन तकनीकी गैजेट्स के बिना खुश रहना ही भूल जाएं। उनके मन का इनमें खोए रहना भाने लगे। इन्हें समय बिताने का माध्यम समझने और बच्चों के हाथ में थमा देने से पहले इनके खतरों को समझिए और उन्हें हमेशा याद रखिए। मौजूदा समय में बचपन को सहेजने के लिए जिन कोशिशों की दरकार है, उनमें मासूम मन को इन टेक्नीकल गैजेट्स के जाल से बचाना बहुत जरूरी है। हम यह समझ लें कि एक बार मनचाहे कंटेंट जैसे गेम्स, वीडियो आदि को देखने-सुनने की आदत हो जाए तो बच्चों को इनसे बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है। देखने में आता है कि आदत हो जाने पर कुछ बच्चे स्मार्ट फोन या आईपैड ना देने पर जिद करते हैं। गुस्सा दिखाते हैं और हाइपर हो जाते हैं। सोचिए, ऐसी व्यवहारगत समस्याएं देने वाली चीजें बच्चों के लिए खिलौने कैसे हो सकते हैं?

जानकर भी अनदेखी क्यों

यह कहना गलत होगा कि आज के पैरेंट्स के पास इन गैजेट्स से होने वाले नुकसान की जानकारी नहीं है। कमोबेश सभी जानते हैं कि इनका इस्तेमाल और खासकर हद से ज्यादा इस्तेमाल कितना नुकसानदेह है। फिर भी आजकल घर-घर में बच्चे इन स्मार्ट गैजेट्स के साथ घंटों खेलते हैं। कहीं ना कहीं इस अनदेखी की वजह बड़ों का अपना स्वार्थ होता है। उनके पास ना बच्चों से बात करने का समय है और ना ही खेलने का। ऐसे में पैरेंट्स को स्मार्ट गैजेट्स बच्चों को बिजी रखने का सबसे सहज तरीका लगने लगे हैं। बच्चों के फुर्सत के लम्हे स्क्रीन स्क्रोल करते हुए ही बीत रहे हैं। कुछ अपने काम में खलल न पड़ने की चाह तो कुछ मासूम मन की ख्वाहिश को पूरा करने की वजह से पैरेंट्स बच्चों को स्मार्ट गैजेट्स पकड़ा देते हैं। जाने-अनजाने पैरेंट्स ने इन तकनीक की सहूलियत को बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनाकर समस्या खड़ी कर ली है। लेकिन जानते-समझते हुए की जा रही यह अनदेखी कई मामलों में बाकायदा अनेक बीमारियां पैदा कर रही हैं। यही वजह है कि अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में तो पैरेंट्स महंगी फीस चुकाकर बच्चों को मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाने की कोशिश करने लगे हैं।

बदलिए लाइफस्टाइल

स्मार्ट गैजेट्स से दूरी के लिए आपको बच्चों की पूरी जीवनशैली बदलनी होगी। डिजिटल हो रही लाइफस्टाइल में उनके साथ समय बिताना, आउटडोर गेम्स के लिए ले जाना, उनके साथ सार्थक ढंग से संवाद स्थापित करना जरूरी हो गया है। इसके लिए खुद पैरेंट्स को भी इन गैजेट्स की जद से बाहर आना होगा। टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन के नाम पर जिंदगी से ही दूर होते पैरेंट्स पहले खुद सचेत हों और फिर बच्चों को संभालें। पैरेंट्स बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें। वरना कम उम्र में इन गैजेट्स के साथ समय बिता रहे बच्चे परिवार और समाज से ही नहीं खुद पैरेंट्स से भी दूर हो जाते हैं। गैजेट्स के साथ समय बिताते हुए बच्चे फिजिकल एक्टिविटीज से ही दूर नहीं होते, मेंटल लेवल पर भी मेहनत करना भूल जाते हैं। ऑनलाइन गेम्स खेलते हुए उन्हें किसी भी परेशानी से क्विट करने की आदत हो जाती है। संघर्ष की सोच और वास्तविक जीवन की समझ से परे बनने वाला उनका व्यक्तित्व आने वाले समय में उनका पूरा ह्यूमन बिहेवियर ही बदल देता है। यह असल जिंदगी में हर पहलू पर तकलीफें पैदा करने वाला व्यवहार है।

पैरेंट्स हों सावधान

बच्चे गैजेट्स के एडिक्ट न हों इसके लिए बड़ों को सावधान होना होगा, क्योंकि आंगन की खिलखिलाहट माने जाने वाले बच्चे स्क्रीन के दायरे तक सिमट गए हैं। बच्चों का नासमझ मन स्क्रीन की मन-मुताबिक चलने वाली दुनिया से बाहर नहीं आता। अब तो इंटरनेट की उपलब्धता ने इन माध्यमों को और एंटरटेनिंग बना दिया है। हर तरह का कंटेंट बच्चों के सामने क्लिक भर में आ जाता है। ऐसे में घर-परिवार के बड़ों का सचेत होना ही बच्चों को इन तकनीकी दानवों से बचा सकता है। जरूरत इस बात की है कि बड़े, खासकर पैरेंट्स इन स्मार्ट गैजेट्स से जुड़े उन खतरों को समझें, जो सेहत और स्वभाव दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं। व्यवहार और विचार के नेगेटिव बदलाव से लेकर शारीरिक तकलीफें, ये पुख्ता कर रही हैं कि इन स्मार्ट गैजेट्स के जाल में फंस जाना बच्चों के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो रहा है। इस मायावी दुनिया में खोए रहने से बच्चों की हेल्थ, बिहेवियर, ईटिंग हैबिट्स और सोशल लाइफ बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इतना ही नहीं स्मार्ट गैजेट्स की लत बच्चों में एक पूरी अस्वस्थ जीवनशैली को जन्म दे रही है। जिसके परिणाम हर तरह से घातक ही हैं। नई पीढ़ी को इन खतरों से बचाने का जिम्मा उनके अपनों को ही उठाना होगा।

ये भी हैं नुकसान

-•सीखने की ललक कम हो जाती है।
-•स्क्रीन स्क्रोलिंग की आदत से लिखने में दिक्कत होती है।
•-पोश्चर बिगड़ता है।
•-आंखों में ड्राईनेस आती है।
•-इयरफोन का इस्तेमाल सुनने की शक्ति पर असर डालता है।
•-बच्चे जिद्दी और हाइपर बनते हैं।
•-सोशल एक्टिविटीज से दूर हो जाते हैं

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