अब एंटीबायोटिक दवाओं को कहें बाय-बाय, शोधकर्ताओं ने तलाश लिया है विकल्प
वैज्ञानिकों का कहना है कि बीमारियों से लड़ने में पहले की एंटीबायोटिक्स की अपेक्षा नई तकनीक की एंटीबायोटिक्स अधिक प्रभावी हैं।

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haribhoomi.comCreated On: 8 Nov 2014 6:03 PM GMT
नई दिल्ली. नीदरलैंड में शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक्स का विकल्प खोजने का दावा किया है जो एमआरएसए जैसी खतरनाक बीमारियों का सामना करने में कारगर साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने बैक्टिरिया से लड़ने के लिए पहले से भी प्रभावी एंटीबायोटिक फ्री दवाओं को विकसित किया है। इसके लिए एक रोगी का छोटा सा परीक्षण किया गया जिससे पता चला कि बैक्टीरिया से लड़ने का नया इलाज ज्यादा प्रभावी है। स्किन पर संक्रमण को रोकने के लिए तो क्रीम पहले से ही उपलब्ध है और अब शोधार्थियों का कहना है कि अगले पांच सालों में इसका इंजेक्शन का संस्करण भी बनाया आएगा।
तकरीबन 90 साल पहले पेनिसिलीन का अविष्कार हुआ था फिर उसके बाद के अविष्कार में एंटीबायोटिक्स महत्वपूर्ण दवाओं में से एक रहा है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार रोगाणुरोधी प्रतिरोध के खतरे की चेतावनी देता रहा है कि एंटीबायोटिक केवल मामूली चोटों और आम संक्रमणों से निजात दिला सकता है। जिसकी 21वीं सदी में बहुत अधिक फैलने की अधिक संभावना है।
लेकिन अब वैज्ञानिकों का कहना है कि बीमारियों से लड़ने में पहले की एंटीबायोटिक्स की अपेक्षा नई तकनीक की एंटीबायोटिक्स अधिक प्रभावी हैं। क्योंकि इन बीमारियों का इलाज बिल्कुल अलग तरीके से होता है। उपचार में प्रयोग किए जाने वाले एंजाइमों को एंडोलिसिन्स कहा जाता है। वायरस स्वभाविक रूप से होने वाले होते हैं जो बैक्टीरियल प्रजातियों पर अटैक करते हैं। लेकिन रोगाणुओं को अकेले छो़ड़ देते हैं।
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