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बच्चों पर ना डालें पढ़ाई का प्रेशर, नहीं तो हो सकते हैं डिप्रेशन का शिकार

बार-बार बच्चों को डांटने से उन पर मानसिक दबाव पड़ता है।

बच्चों पर ना डालें पढ़ाई का प्रेशर, नहीं तो हो सकते हैं डिप्रेशन का शिकार
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बच्चे का रुझान जानना बहुत जरूरी है। हम बार-बार यही सोचते हैं कि हमारा बच्चा पढ़ लिखकर डॉक्टर बने, इंजीनियर बने आदि आदि। हमारा ध्यान सिर्फ बच्चों पर रहता है कि वह हमारे स्वप्न को पूरा करें।

हम उस बच्चे का दाखिला महंगे विद्यालय में करा देते हैं, ट्यूटर भी लगा देते हैं। सुबह से लेकर बच्चे के दिमाग पर पढ़ाई का दबाव रात्रि सोने के पूर्व तक रहता है। अक्सर बच्चे बोझिल पढ़ाई से ऊब जाते हैं। सुबह उठकर बैग सजाकर भेज देते हैं।

स्कूल मैम का गृह कार्य, कक्षा कार्य करते करते बच्चे धीरे-धीरे मानसिक अवसाद का भी शिकार हो जाते हैं। हमारा बस चले सारी पढ़ाई बच्चों को घुट्टी की तरह पिला दें। बच्चे का कोमल मन मस्तिष्क क्या कहता है वह हमारा विषय नहीं है।

हम जबरदस्ती अपने ख्वाब पूरे होने में सिमट जाते हैं। ऐसे में बच्चों का मन पढ़ाई से हटने लगता है। अक्सर ऐसा होता है कि कोई बच्चा पढ़नें में तेज है, हमें खुशी मिलती है। हम प्राय: दृष्टान्त देकर बच्चों को प्रेरित करते हैं। यह जानने का प्रयास नहीं करते कि हमारे बच्चे की रूचि क्या है। वह जीवन में क्या बनना चाहता है।

बच्चे के ऊपर पढ़ाई का दबाव कभी-कभी उसे मानसिक अवसाद का शिकार बना देता है। इसलिए बच्चों को खेलने-कूदने, गाने बजाने के लिए प्रेरित करें। योग के लिए भी प्रेरित करें। इससे बच्चों का शरीर लचीला होता है। साथ ही मानसिक अवसाद कभी आस-पास नहीं फटकेगा। बच्चे की मानसिक स्थिति सही रहने से अच्छा कार्य कर सकेंगे। उन्हें नियमित कहानी, प्रेरक प्रंसग सुनाएं। खुद भी उनके साथ अभिनय करें।

बच्चों के साथ मित्रवत भावना से कार्य करें जिससे अपनी कोई समस्या परेशानी बताने से परहेज न करें। बच्चों के साथ नम्रता विनम्रता का आचरण करें जिससे बच्चा आपके बताए संस्कार को जीवन में धारण कर सके।

बार-बार बच्चों को डांटने से उन पर मानसिक दबाव पड़ता है। बच्चा को जन्म के बाद तीसरे साल से ही हम किडीज प्ले में भेज देते हैं। बच्चे के स्कूल दाखिला की उम्र पांच वर्ष ही सही है। मगर तीन साल की उम्र से जब तक बच्चे का चयन कहीं न हो अच्छे स्कूल में अभिभावक का ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। बच्चे को लेकर अभिभावक अधिक संवेदनशील होता है, जिसका फर्क उसके अपने स्वर्ण से सुंदर जीवन में पड़ने लगता है।

अक्सर मनोचिकित्सक की शरण बच्चे के साथ ही अभिभावक भी लेने लगते हैं। सोचना होगा, कहीं हम अपने सुंदर जीवन पर ग्रहण तो नहीं लगा रहे हैं। हमारा सुंदर जीवन बच्चे के भविष्य की सफलता के बीच ही तय होता। इसलिए हमें तमाम पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।

बच्चों के भविष्य को लेकर सजग रहना हमारी प्राथमिकता है। अपने बच्चों के भविष्य के बीच मनमुटाव टकरार दैनिक दिनचर्या में कड़वाहट जैसा जहर घोल देती है। कैसे क्या करें? प्रेम सद्भाव के साथ कार्य करें बच्चे उस कोमल पौधे की तरह है। जिसमें हमारी भूमिका माली के तरह से होती है। हम कैसा परिवेश दे, कैसा वातावरण सृजन करें जिसमें नई कोपलें मुरझाएं न अपितु पल्लवित पुष्पित हो। हमें बच्चों की मनोस्थिति का विश्लेषण करना होगा।

बच्चों में प्यार, भरोसा और प्रोत्साहन के लिए उनके कौशल को पहचान कर सही दिशा के लिए प्रेरित करने का कार्य करना होगा वरना जाने अपने स्वप्न को मरते देख स्वयं भी कुंठा में अपना जीवन खत्म कर देंगे जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। बच्चों की रुचि को पहचान कर हमें उसी तरीके से उन्हें शिक्षा देने की जरूरत है।

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