लगातार टीबी और मौत झेल रहे मुंबई के डॉक्टर, दाने दाने को हैं मोहताज
रेजिडेंट डॉक्टर सुविधाओं और पर्मानेंट कराने को लेकर धरना प्रदर्शन करते रहते हैं।

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haribhoomi.comCreated On: 1 Jun 2014 12:00 AM GMT
नई दिल्ली. अच्छी नौकरी सफेद कोट और सम्मान की चाह में डॉक्टर बनने का सपना देखकर डॉक्टर बनने का सफर कितना जटिल होता है इसे डॉक्टर ही बता सकता है। मुंबई में पिछले साल दो रेजिडेंट डॉक्टरों की बीमारी से मौत हो गई इस मामले में किसी का दोष नहीं था बल्कि उनको मिलने वाली अल्प सुविधाओं के कारण संक्रमण से उनकी मौत हुई थी। हॉस्टल के अभाव में मरीजों के साथ रहते रहते कई बार वे भयंकर संक्रामक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।
रेजीडेंट डॉक्टरों की महाराष्ट्र एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष का कहना है कि रेजिडेंट डॉक्टरों को मेडिकल सिस्टम की रीढ कहा जाता है। लेकिन उनके रहने के लिए छात्रावास, उठने बैठने और भोजन की कोई सही सुविधा मौजूद नहीं होती, जिस कारण वे लगातार 24 घंटे मरीजों के संपर्क में रहते हैं और संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। साथ ही वे कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरी की ट्रेनिंग करने वाले इस छात्रों को नौकरी की भी कोई गारंटी नहीं होती। आठ साल की पढ़ाई करने के बाद भी उन्हें सिर्फ तीन साल के लिए रेजीडेंट डॉक्टर के तौर पर रखा जाता है बाद में उन्हें अपना करियर खुद ही तय करना होता है।
रेजिडेंट डॉक्टर समय समय पर पर्मानेंट करने की मांग उठाते रहे हैं लेकिन अस्पतालों की कमी होने के कारण उन्हें पर्मानेंट नहीं किया जाता। तीन साल का समय गुजर जाने के बाद अपना अभ्यास जारी रखने के लिए उन्हें दोबारा से परीक्षा देनी होती है जिसमें पास होने के बाद ही उनका समय एक्सटेंड किया जाता है।
दिल्ली में इमरजेंसी सेवा में रह चुके एक पूर्व जूनियर रेजीडेंट डॉक्टर बताते हैं कि, मैंने सरकारी अस्पताल के आपातकालीन विभाग में काम किया था, जहां प्रतिदिन 500 से 700 रोगियों का उपचार किया जाता था। इतने मरीजों के उपचार की जिम्मेदारी सिर्फ तीन या चार डॉक्टरों पर होती थी। उनका कहना है कि एक बार में 100 से 200 रोगियों को संभालना बड़ा मुश्किल काम हो जाता था। साथ ही एक रेजिडेंट डॉक्टर की डिग्री हमेशा खतरे में रहती है। क्योंकि अगर कोई केस बिगड़ जाता है तो समझो उसका सर्टिफिकेट कैंसिल।
वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल दिल्ली के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर और रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ( आरडीए ) के अध्यक्ष डॉ. बलविंदर सिंह कहते हैं, वे सुबह छह बजे जागने के बाद से काम पर लग जाते थे और उन्हें कभी-कभी काम करते हुए 48 घंटे हो जाते थे। लेकिन 18 से 19 घंटे काम करना एक आम बात थी।
नीचे की स्लाइड्स में जानिए, ज्यादा वेतन की चाह में दिल्ली है रेजिडेंट डॉक्टरों की पहली पसंद-
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