ईसा मसीह का संदेश : ईसा मसीह ने महिलाओं को दिया था ये गुप्त संदेश
ईसा मसीह के हृदय में परमेश्वर की हर संतान, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, सभी के लिए समान स्थान था। वह हमेशा ही स्त्रियों को सम्मान देने, उनके विचारों को महत्व देने और उनकी आजादी की बात करते थे। जबकि उस समय के समाज में ऐसा सोचना भी सही नहीं माना जाता था। इसके बावजूद समय-समय पर ईसा मसीह ने कई रूढ़ियों को तोड़ा और महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास किया।

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शिखर चंदCreated On: 25 Dec 2018 12:01 AM GMT
Jesus Christ Secrete Message For Women
आज क्रिसमस (Christmas) है यानी ईसा मसीह का जन्मदिवस (Jesus Christ Birthday)। उन्होंने दुनिया को प्रेम और मानवता का संदेश दिया, सभी को अच्छाई करने की सीख दी। ईसा मसीह ने हर इंसान को समान माना और अपना प्यार-स्नेह दिया। असहायों की सहायता की, दीन-दुखियों का दर्द दूर किया, पापियों को सही राह दिखाई और उन्हें क्षमा किया। कहने का अर्थ है कि ईसा मसीह ने इंसान-इंसान में भेद नहीं किया, उनके लिए पुरुष और स्त्री सभी समान थे, सबको वे परमपिता परमेश्वर की संतान मानते थे। महिलाओं के प्रति तो यीशु का नजरिया अपने समय से बहुत आगे था, क्योंकि ईसा मसीह जिस काल में जन्मे थे, उस समय महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन यीशु ने कई बंधनों को तोड़ा और महिलाओं को सम्मान दिया, अपनी शिक्षाएं दीं। ईसा मसीह के जीवन और चमत्कारों में ऐसी कई घटनाएं शामिल हैं, जहां उनका उदार नजरिया महिलाओं के प्रति स्पष्ट तौर पर दिखता है। आज हम आपको बता रहे हैं ईसा मसीह के ऐसे संदेश बता रहे हैं, जिनसे महिलाओं के साथ हर शख्स अपना जीवन बेहतर बना सकता है।
महिलाओं को दिया समान दर्जा
महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए ईसा मसीह ने अपने ही समाज में मौजूद दकियानूसी और रूढ़िवादी नियमों को ताक पर रखा, इसके लिए वह निंदा के भागी भी बने। दरअसल, जिस काल में उनका जन्म हुआ था, तब के समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। उन दिनों महिलाओं को सेकेंड क्लास सिटीजन समझा जाता था। इस बात का पता उस समय के इतिहास का अध्ययन करने पर होता है। पवित्र पुस्तक बाइबल में कहा गया है कि परमेश्वर की कानून व्यवस्था के तहत, महिलाओं को बड़ा सम्मान मिलना चाहिए।
ईसा मसीह कहते थे, ‘इंसान दो लिंगों में जन्म लेता है-एक पुरुष और दूसरा स्त्री। ईश्वर की नजर में स्त्री और पुरुष दोनों समान प्राणी हैं। पुरुषों की तरह ही महिलाओं में भी आत्मसम्मान की भावनाएं होती हैं, इसे हमें समझना चाहिए।’ ईसा मसीह एक अन्य कथन में महिलाओं से कहते हैं, ‘ईश्वर तुम्हें अपने सुंदर सृजन के रूप में देखता है। उसके लिए तुम्हारा बहुत ज्यादा महत्व है।’
यीशु पर अध्ययन करने वाले विद्वानों के अनुसार भी ईसा मसीह इस धरती पर किसी पुरुष की तरह नहीं बल्कि एक इंसान की तरह आए थे। वह हमेशा महिलाओं को साथी इंसान मानते थे। जेम्स ए बोरलैंड ने अपने एक शोधपरक लेख में लिखा है- ‘जीसस मानते थे कि ईश्वर और उसके अनुयायियों के बीच किसी भी तरह का अवरोध न हो और लैंगिक भेदभाव तो बिल्कुल नहीं। जीसस ने महिलाओं के प्रति अपने जीवन और उपदेशों में उच्चतम सम्मान दर्शाया है।’
महिला आजादी को माना जरूरी
ईसा मसीह ने महिलाओं को समाज में पुरुष के समान तो माना ही, साथ ही उनकी आजादी और विचारों को भी महत्व दिया। बाइबल में वर्णित कुछ घटनाओं से ज्ञात होता है कि ईसा मसीह महिला आजादी के पक्षधर थे, उनके विचारों को भी समाज की बेहतरी के लिए जरूरी मानते थे। जैसा पहले ही बताया गया है कि जिस काल में ईसा मसीह जन्मे थे, उस समय महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की थी। महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर बात तक करने की मनाही थी।
द इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार उस समय के लोग आम जगहों पर महिलाओं से बात करना बड़ी शर्मिंदगी की बात समझते थे। लेकिन ईसा मसीह इस बात से सहमत नहीं थे। वह महिलाओं के साथ अपने विचार और शिक्षाएं साझा करने को जरूरी मानते थे, उनके विचारों को भी महत्व देते थे। ईसा मसीह से जुड़ी एक ऐसी ही घटना का जिक्र मिलता है, जब एक महिला से वह कुएं पर मिलते हैं।
वह उससे पानी मांगते हैं। इसके बाद उस महिला से बात भी करते हैं, उसे उपदेश भी देते हैं। इस तरह एक सामान्य व्यवहार के जरिए ईसा मसीह, महिलाओं को भी अपने विचारों को व्यक्त करने की सीख देते हैं, आजादी का महत्व समझाते हैं।
महिलाओं के प्रति अपराध को माना सबसे बड़ा पाप
आज देश-दुनिया में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध चिंता का विषय हैं, कई स्तरों पर पीड़ित के प्रति समाज भी संवेदनशील नहीं रहता है। यह समस्या हर काल में रही है। लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध को ईसा मसीह ने सबसे बड़ा अपराध माना था। ईसा मसीह, स्त्री को वासना की नजर से देखने को एक बड़ा पाप मानते थे। आज के समय में ईसा मसीह की इस बात को बहुत ही गंभीरता से समझने की जरूरत है, तभी पुरुषों की सोच में बदलाव आ सकता है, महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हो जाएंगे।
ईसा मसीह के सभी कथनों और उनके जीवन में घटी घटनाओं से स्पष्ट होता है कि वह सही मायनों में महिलाओं के सच्चे मसीहा थे, जो उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध थे। आज अगर हम ईसा मसीह के विचारों को अमल में लाएं तो समाज में मौजूद लैंगिक असमानता को दूर कर सकते हैं और महिलाओं के लिए एक स्वस्थ माहौल का निर्माण कर सकते हैं।
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