ब्रेस्ट कैंसर को पहचानने के ये हैं आसान तरीके
रेग्युलर सेल्फ चेकअप और मेडिकल टेस्ट के जरिए ब्रेस्ट कैंसर की समय रहते पहचान की जा सकती है। साथ ही रिस्क फैक्टर्स पर ध्यान देकर और जीन प्रबंधन के जरिए भी इस बीमारी की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

रेग्युलर सेल्फ चेकअप और मेडिकल टेस्ट के जरिए ब्रेस्ट कैंसर की समय रहते पहचान की जा सकती है। साथ ही रिस्क फैक्टर्स पर ध्यान देकर और जीन प्रबंधन के जरिए भी इस बीमारी की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित ताजा ग्लो बैकन 2018 रिपोर्ट में कहा गया है कि स्तन कैंसर भारत में सबसे आम कैंसर है-महिलाओं और पुरुषों दोनों में। इसने अन्य सभी कैंसर को पीछे छोड़ दिया है। यहां हर साल लगभग 1.6 लाख नए स्तन कैंसर की पहचान की जाती है।
सभी कैंसर में 14 प्रतिशत स्तन कैंसर होते हैं। चिंता की बात यह है कि सभी कैंसर के कारण होने वाले मृत्यु में भी स्तन कैंसर पहले स्थान पर है। भारत में 25 महिलाओं में से एक महिला को स्तन कैंसर होने का खतरा है।
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जागरूकता की कमी
ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली मृत्यु दर के बढ़ने के सामान्य कारण इस प्रकार हैं-
1. भारत में ज्यादातर महिलाएं कैंसर के सेकेंड या थर्ड स्टेज में इलाज के लिए आती हैं। हालांकि उन शहरों में प्रवृत्ति बदल रही है, जहां महिलाएं अधिक जागरूक हैं और जांच के लिए जल्दी आती हैं, लेकिन पूरे देश में अधिकतर महिलाएं देर से ही इलाज के लिए आती हैं।
2.ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में काफी अधिक असमानता है।
3.कैंसर को लेकर समाज में कायम भ्रांतियों, कैंसर के सामाजिक कलंक, वैकल्पिक उपचार के जरिए कैंसर का उपचार किए जाने के लिए झूठे दावों, कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव के डर के कारणों से काफी महिलाएं रोग की पहचान के बाद भी इलाज में देर कर देती हैं।
4.भारत में स्तन कैंसर के लिए अधिक कारगर मैमोग्राफी या किसी अन्य स्क्रीनिंग फैसिलिटीज की कमी है।
5. अपने देश में स्तन कैंसर से लगभग 15 प्रतिशत युवा महिलाएं पीड़ित हैं, जो पश्चिमी देशों की तुलना में दोगुना है। कम उम्र वाली महिलाओं में कैंसर अधिक आक्रामक होते है, जो बाद के चरण में प्रकट होते हैं और उनके आनुवांशिक कारण हो सकते हैं।
6.इस समस्या से बचाव के लिए जरूरी है कि महिलाएं स्तन में बदलावों से अवगत रहें और स्क्रीनिंग कराएं।
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रिस्क फैक्टर्स
स्तन कैंसर के रिस्क फैक्टर्स में परमानेंट और टेंपरेरी फैक्टर्स शामिल हैं। परमानेंट फैक्टर्स में एज, सेक्स और जीन शामिल हैं। इसके लिए आपको रेग्युलर चेकअप ही करवाना होगा।
लेकिन टेंपरेरी फैक्टर्स को कुछ बातों पर ध्यान देकर कम किया जा सकता है या टाला जा सकता है। इनमें शामिल हैं-अधिक वसा युक्त आहार, मोटापा, शराब का सेवन, ओवर एज डिलीवरी और हार्मोनल टैबलेट्स का सेवन।
जीन प्रबंधन से बचाव संभव
अपने जीन को प्रबंधित करके इस समस्या से बहुत हद तक बचाव संभव है, क्योंकि लगभग 10 प्रतिशत स्तन कैंसर वंशानुगत होते हैं। वे एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक जाने में सक्षम होते हैं। हालांकि इसके लिए कई जीन जिम्मेदार होते हैं लेकिन बीआरसीए 1 और 2 सबसे सामान्य हैं।
इन जीनों में उत्परिवर्तन 75 साल की उम्र तक स्तन कैंसर के खतरे को 50 से 80 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या आपमें ये जीन मौजूद हैं और अगर ऐसा है तो जोखिम को कम करने के लिए कुछ उपाय करने होंगे। इसके लिए इन बातों का ख्याल रखें...
1.अधिक निगरानी रखें: मैमोग्राम के अलावा सालाना स्तनों की एमआरआई भी कराएं।
2.कीमोप्रिवेंशन: डॉक्टर की सलाह पर टैमॉक्सिफेन या रालोक्सिफेन दवाएं रोजाना लेने पर स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
3.खतरे को कम करने वाली सर्जरी: दोनों स्तन और दोनों अंडाशय को हटाने से उच्च जोखिम वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
इस तरह यहां बताई गई बातों पर ध्यान देकर आप ब्रेस्ट कैंसर से काफी हद तक बची रह सकती हैं।
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