Holi Health Tips: होली खेलते वक्त सांस की बीमारी और शुगर के मरीज रखें इन बातों का ध्यान
होली खुशी और उल्लास का एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाकर विश करते हैं। लेकिन होली पर रंगों के उड़ने से सांस की बीमारी होने, तो वहीं होली की मिठाईयों से शुगर बढ़ने का खतरा बना रहता है। ऐसे में अगर कुछ बातों को ख्याल रखा जाए, तो होली के बाद होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। इसलिए होली आने से पहले हम आपको सांस की बीमारी और शुगर के मरीजों के लिए खास टिप्स बता रहे हैं।

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डॉ. जे. रावतCreated On: 20 March 2019 11:02 AM GMT
Holi 2019 : होली खुशी और उल्लास का एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाकर विश करते हैं। लेकिन होली पर रंगों के उड़ने से सांस की बीमारी होने, तो वहीं होली की मिठाईयों से शुगर बढ़ने का खतरा बना रहता है। ऐसे में अगर कुछ बातों को ख्याल रखा जाए, तो होली के बाद होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। इसलिए होली आने से पहले हम आपको सांस की बीमारी और शुगर के मरीजों के लिए खास टिप्स बता रहे हैं।
रेस्पिरेटरी रिलेटेड पेशेंट्स (सांस की बीमारी)
अस्थमा, चेस्ट इंफेक्शन, ब्रोंकाइटिस जैसी श्वांस संबंधी बीमारियों के मरीजों को होली के रंगों से खासी दिक्कत होती है। अबीर-गुलाल जैसे सूखे रंग सांस के जरिए लंग्स में जाने से इंफेक्शन हो जाता है। नाक बंद हो जाती है, नाक से पानी आने लगता है, सांस लेने में मुश्किल होती है। ऐसे में अस्थमा के रोगियों को अच्छी गुणवत्ता वाले गीले रंगों के साथ होली खेलनी चाहिए। इन मरीजों को तुरंत मुंह धोकर इन्हेलर पफ या नेबुलाइजर की मदद लेनी चाहिए, जिससे ब्लॉकेज से राहत मिले। साथ ही मुंह पर पतला कपड़ा बांधकर रहें।
डायबिटीज पेशेंट्स (सुगर की बीमारी)
होली के दौरान बनने वाले पकवानों के सेवन से डायबिटीज पेशेंट्स का ब्लड शुगर लेवल बढ़ने का खतरा रहता है। इसलिए परेशानी से बचने के लिए सतर्क रहने और डाइट को बैलेंस करने की जरूरत रहती है। अगर ऐसे पेशेंट 100-200 कैलोरी वाली गुझिया खाते हैं, तो उन्हें उस दिन लंच और डिनर में रोटी नहीं खानी चाहिए। संभव हो तो शुगर फ्री मिठाइयां खाएं और वो भी सीमित मात्रा में। मीठे ड्रिंक्स न लेकर नमकीन ड्रिंक्स पिएं।
डाइजेशन रिलेटेड पेशेंट (पाचन संबंधी बीमारी)
जिन लोगों को डाइजेशन रिलेटेड प्रॉब्लम है, उन्हें भी होली पर सावधान रहने की जरूरत होती है। होली के आस-पास वातावरण में कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिससे ऐसे पेशेंट्स को गैस्ट्रोएंट्राइटिस की समस्याएं भी उभरने की संभावना बढ़ जाती है। होली खेलते वक्त रंग जाने-अनजाने मुंह, नाक और कान के जरिए शरीर के अंदर भी चले जाते हैं या फिर रंग लगे हाथों से जब कुछ खाते-पीते है, तो हाथ-मुंह में लगे रंग शरीर में पहुंच जाते हैं। इससे केमिकल डायरिया या फूड प्वॉयजनिंग हो सकती है। ऐसी स्थिति में मरीज को ओआरएस का घोल और लिक्विड डाइट बराबर देते रहना चाहिए। यदि स्थिति में सुधार न हो तो डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए।
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