Genetic Biomarker: फूड एलर्जी की गंभीरता का पता लगाएगा जेनेटिक बायोमार्कर, जानें क्या कहती है Latest Report
Genetic Biomarker: पहली बार शोधकर्ताओं ने एक जेनेटिक बायोमार्कर खोज निकाला है, जो भोजन से होने वाली एलर्जी के रिएक्शन को गहराई से अनुमान लगाने में सहायता कर सकता है। पढ़िये नई स्टडी का चौंकाने वाला खुलासा...

जेनेटिक बायोमार्कर
Genetic Biomarker: पहले की तुलना में अब खाद्य पदार्थ से होने वाली एलर्जी की समस्या अब आम हो चुकी है। दुनिया भर में लाखों लोग इससे प्रभावित हो जाते हैं। एक अच्छे और आसानी से उपयोग में आ जाने वाले क्लिनिकल बायोमार्कर की कमी लंबे समय से महसूस कर रहे थे, जिससे गंभीर एलर्जी वाले रोगियों अथवा हल्के लक्षणों वाले मरीजों को अलग किया जा सकता है। अब शोधकर्ताओं ने पहली बार एक जेनेटिक बायोमार्कर खोज निकाला है। यह फूड एलर्जी के रिएक्शन को गहराई से जांच कर इसकी गंभीरता का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है।
जर्नल ऑफ़ एलर्जी एंड क्लीनिकल इम्मुनोलॉजी की रिपोर्ट का दावा
जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लीनिकल इम्मुनोलॉजी से प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि α-ट्रिप्टेज नाम के एंजाइम आइसोफॉर्म की उपस्थिति, जिसे TPSAB1 नाम से विशेष जीन दवाई आंकड़ा (एन्कोड) किया है। यह एनाफिलेक्सिस के तेजी से फैलने से जुड़ा हुआ है, जो भोजन के चिंताजनक रिएक्शन को दर्शाता है। साइंस डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, बिना किसी α-ट्रिप्टेज वाले रोगी की तुलना में भोजन, ट्रिप्टेज मुख्य रूप से मस्तूल कोशिकाओं में पाया जाता है, जो श्वेत रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स) होती हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र (इम्युन सिस्टम) का हिस्सा होती हैं। यह एलर्जी रिएक्शन के दौरान एक्टिव हो जाती हैं।
एनाफिलेक्सिस एक जानलेवा एलर्जीक रिएक्शन हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर एनाफिलेक्सिस के समय किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर काफी हद तक कम हो जाता है, सांस लेने में दिक्कत आती है या उसके ऑर्गन को पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है तो इंसान एनाफिलेक्टिक सदमे (शॉक) में पहुंच जाते हैं।
रिसर्च के मुख्य लेखक का क्या है कहना
अध्यन के मुख्य लेखक अलीबेग लैंग का कहना है कि फूड एलर्जी वाले रोगी में α-ट्रिप्टेज से ग्रस्त हैं या नहीं, इसका निर्धारण क्लिनिकल अभ्यास में गाल के स्वाब से जेनेटिक अनुक्रमण करने के लिए व्यावसायिक रूप से प्राप्त परीक्षण का इस्तेमाल करके आसानी से किया जा सकता है। अगर बायोमार्कर का खोज किया जाता है, तो यह समझने में आसानी व गहराई तक जांच का पता लगा सकता है कि बच्चे को फूड एलर्जी के गंभीर रिएक्शन है या एनाफिलेक्सिस के हाई रिस्क है और क्या उन्हें अपने एपिनेफ्रिन ऑटो-इंजेक्टर का इस्तेमाल करना चाहिए या नहीं।
अलीबेग लैंग आगे बताते हैं कि यह रिसर्च फूड एलर्जी की लिए बिलकुल नई एक उपचार व निदान पाने के लिए रणनीति विकसित कर सकती है, जो खाद्य एलर्जी के लिए एक पूरी तरह से नई उपचार रणनीति विकसित करने में मदद करती है। यह α-ट्रिप्टेज को ब्लॉक करने में मदद कर सकती है।
रिसर्च के क्या हैं रिजल्ट
इस रिसर्च में 119 शोधकर्ता शामिल रहे हैं। लैंग ने कहा की शुरुआती रिजल्ट आशापूर्ण व हैरान कर देने वाले हैं। शुरुआती परिणामों और निष्कर्षों को एक बड़ा अध्ययन व रिसर्च मान्य है। उन्होंने कहा कि हमें अभी भी इस बात की बेहतर समझ की जरूरत है कि संभावित उपचार व निदान के लिए अथवा इस राह को आगे बढ़ाने के लिए α-ट्रिप्टेज खाद्य एलर्जी रिएक्शन को क्यों और कैसे अधिक गंभीर व जोखिम भरा बनाता है।
इस अध्ययन से पहले, 2020 नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में एक ऐसे गोली (दवा) की खोज की थी, जो नार्मल से जानलेवा तक के एनाफिलेक्सिस को सकती थी। रिसर्च के वरिष्ठ लेखक ब्रूस बोचनर ने बताया था कि यह गोली 'जीवन बदलने वाली' साबित हो सकती है।
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Disclaimer: यह खबर सामान्य जानकारी पर आधारित है। इन तरीकों और सुझावों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

Haribhoomi Team
युवा पत्रकार राघवेन्द्र तिवारी हरिभूमि डिजिटल में बतौर सब एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता शिक्षा के दौरान शैक्षणिक गतिविधियों के पहले पंक्ति में अपनी जगह बनाकर संस्थान का नाम रौशन किया। फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, वीडियो एडिटिंग एवं लेखन की विशेषज्ञता के लिए देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान आईएमएस नोएडा से जुड़े हैं।