Independence Day 2022: आजादी को हुए 75 साल... संकीर्ण सोच से लेकर स्त्री के सम्मान तक आज भी लोगों में नहीं दिखा कोई बदलाव!
आजकल घर-बाहर में यह बड़े ही गर्व से कहा जाता है कि हम आजाद देश के नागरिक हैं। लेकिन अपने ही घर की महिलाओं के लिए आजादी (Happy Independence Day 2022) के मायने भूल जाते हैं।

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Harsha SinghCreated On: 14 Aug 2022 7:17 AM GMT
आजकल घर-बाहर में यह बड़े ही गर्व से कहा जाता है कि हम आजाद देश (Independence Day 2022) के नागरिक हैं। लेकिन अपने ही घर की महिलाओं के लिए आजादी के मायने भूल जाते हैं। असल में, आजादी आज भी देश के हर वर्ग की महिला तक नहीं पहुंच पाई है। परिवार वाले अब भी छोटी-छोटी बात के लिए उन पर रोक लगाते हैं। घर की मर्यादा के नाम पर उन्हें बंधनों में रखने की कोशिश करते हैं।
- आजादी की अहमियत: आजादी की अहमियत हर किसी के लिए समान है। पढ़ने-लिखने की आजादी। अपनी बात कहने की आजादी। करियर चुनने की आजादी और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की आजादी। ये जीवन से जुड़े मूलभूत अधिकार हैं, जो हर महिला-पुरुष के लिए समान रूप से अहमियत रखते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बिना अधूरी है।
- स्त्री मर्जी का हो सम्मान: महिलाओं की आजादी के लिए जरूरी है, वे छोटे से काम के लिए अपने पिता, पति या बेटे की अनुमति-सहमति की बाट न जोहें। उन्हें अपने फैसले खुद लेने का अधिकार मिले। बहन-बेटियों के जीवन, करियर, शादी-ब्याह से जुड़े फैसले वो खुद करें और भाई या पिता की भूमिका मार्गदर्शक रूप में हो। महिलाओं की बातों को, विचार को जानने का प्रयास करें। उनके कद को बिल्कुल अपने कद जितना बड़ा और गरिमामय समझें।
- परवरिश में न हो भेदभाव: लड़कों को बचपन से पूरी आजादी और छूट मिलती है, जबकि लड़कियों के लिए घर में कठोर नियम बनाए जाते हैं। घर के कामों को लेकर भी ऐसी ही मानसिकता है। लड़का है तो बाजार जाएगा। लड़की है तो खाना पकाएगी। ऐसे भेदभाव के कारण लड़कियों के विचारों में परंपरावादी सोच पैठ जाती है। वो स्वयं भी यही समझती हैं कि वो स्त्री हैं तो घर के काम उनकी ही जिम्मेदारी है। इस सोच को खत्म करना है तो पहले कामों का विभाजन जेंडर के हिसाब से करना बंद करना होगा।
- संकीर्ण सोच छोड़ना जरूरी: जमाना बदल गया है। अपनी सोच भी हमें बदल लेनी चाहिए। सभ्यता-संस्कृति के नाम पर महिलाओं पर कोई बात, रीत या नियम थोपना ठीक नहीं।क्योंकि जिस घर में औरत खुश रहती है, वह पूरे परिवार को खुश रख सकती है। बेटी को जींस पहनने की आजादी और बहू को सिर से पल्ला हटाने की भी आजादी नहीं, ऐसी छोटी-बेतुकी बातें मत कीजिए। पढ़ी-लिखी बहुओं को घर की इज्जत मान-मर्यादा के नाम पर जीवन भर घरों में मत बैठाइए। उन्हें भी अपनी पसंद का काम करने का मौका दीजिए। महिलाओं का कर्तव्य सिर्फ घर-परिवार संभालना और बच्चों की परवरिश करना नहीं होता। वे भी अपने आप में एक व्यक्तित्व हैं। जिसके भीतर सपनों का असीम समंदर हो सकता है। तो आइए इस बार आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के साथ अपने घर-परिवार की महिलाओं को पूरी आजादी से जीने देने का संकल्प करें।
सरस्वती रमेश

Harsha Singh
दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की है। कॉलेज के दौरान ही कुछ वेबसाइट्स के लिए फ्रीलांस कंटेंट राइटर के तौर पर काम किया। अब बीते करीब एक साल से हरिभूमि के साथ सफर जारी है। पढ़ना, लिखना और नई चीजे एक्स्प्लोर करना पसंद है।
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