सावधान ! घट रही कीटों की संख्या, बढ़ेगा हानिकारक कीड़ों का प्रकोप
कीटों की संख्या को लेकर की गई एक वैज्ञानिक समीक्षा से पता चला है कि 40 प्रतिशत प्रजातियां पूरी दुनिया में नाटकीय ढंग से कम हो रही हैं। अध्ययन बताता है कि मधुमक्खियां, चींटियां और बीटल (गुबरैले) अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 16 March 2019 3:50 PM GMT
कीटों की संख्या को लेकर की गई एक वैज्ञानिक समीक्षा से पता चला है कि 40 प्रतिशत प्रजातियां पूरी दुनिया में नाटकीय ढंग से कम हो रही हैं। अध्ययन बताता है कि मधुमक्खियां, चींटियां और बीटल (गुबरैले) अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं।
मगर शोधकर्ता कहते हैं कि कुछ प्रजातियों, जैसे कि मक्खियों और कॉकरोच (तिलचट्टों) की संख्या बढ़ने की संभावना है। कीट-पतंगों की संख्या में आ रही इस कमी के लिए बड़े पैमाने पर हो रही खेतीबाड़ी, कीटनाशकों का इस्तेमाल और जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है।

धरती पर रहने वाले जीवों में कीटों की संख्या प्रमुख है। वे इंसानों और अन्य प्रजातियों के लिए कई तरह से फ़ायदेमंद हैं। वे पक्षियों, चमगादड़ों और छोटे स्तनधारी जीवों को खाना मुहैया करवाते हैं। वे पूरी दुनिया में 75 प्रतिशत फसलों के पॉलिनेशन (परागण) के लिए ज़िम्मेदार हैं यानी कृषि के लिए वे बेहद महत्वपूर्ण हैं। वे मृदा को समृद्ध करते हैं और नुक़सान पहुंचाने वाले कीटों की संख्या को नियंत्रित रखते हैं।
क्या है अध्ययन में

हाल के सालों में किए गए अन्य शोध बताते हैं कि कीटों की कई प्रजातियों, जैसे कि मधुमक्खियों की संख्या में कमी आई है और ख़ासकर विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में। मगर नया शोध पत्र बड़े स्तर पर इस विषय में बात करता है। बायोलॉजिकल कंज़र्वेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित इस पत्र में पिछले 13 वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की एक तिहाई प्रजातियां ख़तरे में घोषित की गई हैं। सिडनी विश्वविद्यालय से संबंध रखने वाले मुख्य लेखक डॉक्टर फ्रैंसिस्को सैंशेज़-बायो ने कहा, ‘इसके पीछे की मुख्य वजह है- आवास को नुक़सान पहुंचना. खेती-बाड़ी के कारण, शहरीकरण के कारण और वनों के कटाव के कारण इस तरह के हालात पैदा हुए हैं।’

कितना गंभीर है मामला
वह कहते हैं, ‘दूसरा मुख्य कारण है पूरी दुनिया में खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल और कई तरह के ज़हरीले रसायनों के संपर्क में आना। तीसरा कारण जैविक कारण है जिसमें अवांछित प्रजातियां हैं जो अन्य जगहों पर जाकर वहां के तंत्र को नुक़सान पहुंचाती हैं। चौथा कारण है- जलवायु परिवर्तन। खासकर उष्ण कटिबंधीय इलाकों में, जहां इसका प्रभाव ज़्यादा पड़ता है।’
अध्ययन में जर्मनी में उड़ने वाले कीटों की संख्या में हाल ही में तेज़ी सी आई गिरावट का ज़िक्र किया गया है। साथ ही पुएर्तो रीको के उष्णकटिबंधीय वनों में भी इनकी संख्या कम हुई है। इस घटनाक्रम का संबंध पृथ्वी के बढ़ते तापमान से जोड़ा गया है। अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि अध्ययन के नतीजे ‘बेहद गंभीर’ हैं।

ब्रितानी समूह बगलाइफ़ के मैट शार्डलो कहते हैं, ‘बात सिर्फ़ मधुमक्खियों की नहीं है। मामला परागण या हमारे खाने से भी जुड़ा नहीं है। ये गोबर के बीटल की भी बात है जो अपशिष्टों को रिसाइकल करते हैं। साथ ही ड्रैगनफ़्लाइज़ से भी यह मामला जुड़ा है जो नदियों और तालाबों में पनपते हैं।’ ‘यह स्पष्ट हो रहा है कि हमारे ग्रह का पर्यावरण ख़राब हो रहा है। इस दिशा में पूरी दुनिया को मिलकर गंभीर क़दम उठाने की ज़रूरत है ताकि न सिर्फ़ इस नुक़सान को रोका जाए, बल्कि इससे उबरा भी जाएगा।
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