सफलता के लिए जगाना होगा आत्मविश्वास
यादगार अनुभव
1957 में मद्रास इंस्ट्टियूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अपनी पढ़ाई के आखिरी साल में मैं था। उस दौरान एक गु्रप प्रोजेक्ट में दिए हुए काम को निश्चित समय में पूरा करने को लेकर मैंने एक बहुत ही अनमोल सबक सीखा। प्रोफेसर श्रीनिवासन ने मुझे प्रोजेक्ट लीडर के रूप में लेकर नीची उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमान की प्रारंभिक डिजाइन तैयार करने को कहा था। छह महीने का समय दिया गया। प्रोजेक्ट के ‘एरोडायनामिक्स’ और ‘स्ट्रक्चरल डिजाइन’ की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। टीम के बाकी पांच सदस्यों ने अलग काम संभाले। पांच महीने बाद जब प्रोफेसर श्रीनिवासन ने प्रोजेक्ट की समीक्षा की और पाया कि हमारा प्रोजेक्ट संतोषजनक ढंग से नहीं चल रहा है, तो उन्होंने साफ शब्दों में अपनी मायूसी जाहिर की। मैंने प्रोफेसर से प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए एक महीने का अतिरिक्त समय मांगा। उन्होंने कहा, ‘देखो, आज शुक्रवार की दोपहर है। मैं तुम्हें तीन दिन का समय देता हूं ‘कॉनफिगरेशन डिजाइन’ मुझे दिखाने के लिए। अगर तुमने मुझे संतुष्ट कर दिया, तो तुम्हें एक महीना और मिल जाएगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं कर पाए, तो तुम्हारी छात्रवृत्ति रद्द कर दी जाएगी।’ मुझे इससे बड़ा झटका जिंदगी में पहले कभी नहीं लगा था। छात्रवृत्ति से ही मेरी जिंदगी चलती थी। तीन दिनों में काम पूरा करने के सिवा अब कोई चारा नहीं था। हमने तय किया कि हम जी-जान से इस काम को पूरा करेंगे। रात को भी ड्रॉइंग बोर्ड पर सिर झुकाकर नजरें गड़ाएं, खाना और सोना छोड़ हम चौबीसों घंटे काम में जुटे रहे। रविवार की सुबह जब मैं प्रयोगशाला में काम कर रहा था, तो मैंने महसूस किया कि कोई वहां मौजूद है। देखा, तो वह प्रो. श्रीनिवासन थे, जो चुपचाप हमारे काम का मुआयना कर रहे थे। मेरे काम को देखने के बाद उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और प्यार से मुझे सीने से लगाते हुए बोले, ‘मुझे मालूम था कि इतने कम समय में काम लेकर मैं तुम्हारे ऊपर दबाव डाल रहा था।’ प्रो. श्रीनिवासन ने हमें पूरे महीने भर तक अंधेरे में हाथ मारने के लिए छोड़ने के बजाय अगले तीन दिनों में करने के लिए काम तय कर दिया था। नियत समय में काम पूरा करने के दबाव में हम सफलता की ओर ज्यादा तेजी से बढे जो बीते महीनों में हमसे दूर होती जा रही थी।