Knowledge News: इस गांव में इंसानों से ज्यादा नजर आएंगे पुतले, कोशिश करो तो बात भी करेंगे
Knowledge News: आपने कई ऐसे गांवों के बारे में सुना होगा, जो कि अपनी परंपराओं या किसी खास चीजों के कारण प्रसिद्ध हैं। इसी कड़ी में जापान का एक गांव भी आप देखकर हैरान रह जाएंगे। इस गांव में जहां इंसानों से ज्यादा पुतले रहते हैं। यहां रहने वाले लोग पुतलों से अपना दुख दर्द भी साझा कर लेते हैं। तो चलिए बताते हैं कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है...

जापान के इस अजीबोगरीब गांव की तस्वीरें।
यह गांव किसी आश्चर्य से कम नहीं, क्योंकि यहां आने पर आपको इंसान दिखाई दें या ना दें, लेकिन बिजुका जरूर दिख जाएंगे। पुतलों की वजह से इस छोटे से गांव में दुनिया भर से लोग घूमने आते हैं। पूरी दुनिया के गांव, शहर, राज्य इंसानों और तरह-तरह के जानवरों से भरा पड़ा हैं। जिस समाज में हम रह रहे हैं, इसमें कोई अचरज भरी बात नहीं हैं, लेकिन आपको दुनिया के एक ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां इंसान कम पुतले ज्यादा नजर आते हैं।
इस गांव में अगर कोई गलती से चला जाए तो वह इंसान डर जाएगा, पहले तो वह सोचेगा कि ये कहां आ गया। दरअसल, यहां गलियों, घरों और खेतों में इंसान नहीं, बल्कि पुतले ही नजर आएंगे। आइये जानते हैं वह कौन सी जगह है और किसने बसाया इस दुनिया को...
गांव को बसाने के पीछे का कारण अकेलापन
यह अनोखा गांव जापान के शिकोकू टापू पर बसा हुआ है। इस गांव का नाम है नागोरो, जिसे पुतलों के गांव के नाम से जानते हैं। यहां पुतलों को बिजुका कहते हैं। कई बार तो पर्यटक रात में इन्हें देख कर डर भी जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में तकरीबन 30 लोग ही रहते हैं, जबकि बिजुका की संख्या कम से कम 300 होगी। यहां पर दुकानों, बस स्टॉप,पब्लिक प्लेस पर आपको इंसान दिखाई दें या ना दें, लेकिन बिजुका जरूर दिख जाते हैं।
क्या है इंसानों से ज्यादा बिजुका होने की कहानी
ये कहानी लगभग 10 साल पुरानी है, आज से महज 10 साल पहले महिला ने स्कूलों में रखने के लिए बिजुका बनाए थे। बताया जाता है कि एक वक्त में इस गांव में अच्छी खासी आबादी हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे काम की तलाश में लोगों ने शहर छोड़ना शुरू कर दिया था। इस तरह देखते ही देखते पूरा गांव खाली होने लगा और कुछ ही लोग रह गए। यहां रहने वाले लोगों ने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए यह उपाय निकाला और पूरे गांव में जगह-जगह पुतले लगा दिए।
सबसे खास बात यह हैं कि इन पुतलों को खरीद कर नहीं लाया गया है, बल्कि गांव की एक बूढ़ी महिला ने बनाया है, जिसकी उम्र 70 के पार है। इस बुजुर्ग महिला के मुताबिक उन्होंने गांव के अकेलेपन को कम करने के लिए किया यह गांव बसाया। यह भी कहा जाता है कि जब भी कभी लोग अकेलापन महसूस करते हैं तो इन पुतलों से बात कर लेते हैं।

Priyanka Yadav
प्रियंका यादव, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज से एम वॉक इन मीडिया स्टडीज में परा स्नातक का कोर्स किया है। इसके साथ कई प्रतियोगिता पर कॉन्टेंट राइटिंग में भाग लिया। वर्तमान समय में हरिभूमि डिजिटल में करियर, नॉलेज, फैक्ट चेक के बीट पर बतौर वेब स्टोरीज, कॉन्टेंट राइटर और पद पर कार्यरत हूं। मुझे लिखना, नए विषयों के बारे में जानना और उनके बारे में पढ़ना पसंद है।