देश-दुनिया की 5 संस्थाओं को झारखंड में दिखी उम्मीद की किरण, ढूंढा बच्चों में छोटे कद का इलाज
इस समय जहां दुनिया के अधिकांश विकासशील देश तीन साल तक के बच्चों के स्टटेंड ग्रोथ (बच्चों का कद औसत से कम होना) की बीमारी का सामना कर रहे हैं वहीं इस बीमारी के उपचार की किरण झारखंड में दिखी है। यहां देश और दुनिया की पांच संस्थाओं ने झारखंड और ओडिशा में इसका उपाय ढूंढ निकाला है। अब बिना दवा के भी छोटे कद की बीमारी को दूर किया जा सकता है।

इस समय जहां दुनिया के अधिकांश विकासशील देश तीन साल तक के बच्चों के स्टटेंड ग्रोथ (बच्चों का कद औसत से कम होना) की बीमारी का सामना कर रहे हैं वहीं इस बीमारी के उपचार की किरण झारखंड में दिखी है। यहां देश और दुनिया की पांच संस्थाओं ने झारखंड और ओडिशा में इसका उपाय ढूंढ निकाला है। अब बिना दवा के भी छोटे कद की बीमारी को दूर किया जा सकता है।
दरअसल टाटा ट्रस्ट मुंबई, इस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ यूनिवर्सिटी लंदन, एकजुट चक्रधर (झारखंड), पब्लिक हेल्थ रिसोर्स सोसायटी नई दिल्ली, चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट पैलान (पश्चिम बंगाल) ने झारखंड के गोला (रामगढ़), खुंटपानी (पश्चिम सिंहभूम) व रातू-नगड़ी (रांची) और ओडिशा के कुसमुंडा, शहरपोड़ा में पांच साल (2012-2017) तक रिसर्च किया।
इस रिसर्च के मुताबिक सी-3 मॉड्यूल के जरिए छोटे कद की समस्या को समाप्त किया जा सकता है। सी-3 मॉड्यूल का मतलब है- कम्युनिटी (सहभागिता), काउंसिलिंग (समझाइश) और क्रेच (शिशु गृह)।
रिसर्च के मुताबिक सी-3 मॉड्यूल पर काम करने के बाद पांचों फोकस एरिया में शून्य से तीन साल तक के बच्चों की जांच की गई तो 27 प्रतिश अति कुपोषित, 40 प्रतिशत कम वजन, 27 प्रतिशत छोटे कद में कमी पाई गई। अब इस मॉड्यूल को नीति आयोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत अन्य नीति निर्माताओं को भेजा गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस मॉड्यूल की सराहना की है।
इस मॉड्यूल के तहत सामाजिक सहभागिता (कम्युनिटी) से काम किया जाएगा। कुपोषण प्रभावित इलाकों में स्थानीयों से आंकड़े लिए जाएंगे। इसके बाद तीन साल से कम उम्र के बच्चों पर फोकस कर गर्भकाल व प्रसव बाद माताओं और महिला समूहों को परामर्श (काउंसिलिंग) दिया जाएगा। खान-पान पर सलाह दी जाएगी। तीसरा क्रेच यानि शिशु गृह के तहत स्थानीय महिलाएं शिशुओं की देखभाल करेंगी।
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