हिमाचल के कांगड़ा में सियासत गर्म, भाजपा पदाधिकारियों और विधायकों की बैठक आज
हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है कांगड़ा। जहां इस समय सियासी संकट गहराता जा रहा है। प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण वैसे तो कांग्रेस के नेताओं को छुट्टी मिली हुई है। पर कांगड़ा जैसे मजबूत जिले में पार्टी के ही नेताओं में खींचतान मची हुई है। जिससे वह सियासत की जमीन से बाहर हो गए हैं। आउट होने के पीछे नेताओं की अति महत्वकांक्षा है।

हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है कांगड़ा। जहां इस समय सियासी संकट गहराता जा रहा है। प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण वैसे तो कांग्रेस के नेताओं को छुट्टी मिली हुई है। पर कांगड़ा जैसे मजबूत जिले में पार्टी के ही नेताओं में खींचतान मची हुई है। जिससे वह सियासत की जमीन से बाहर हो गए हैं। आउट होने के पीछे नेताओं की अति महत्वकांक्षा है।
कांग्रेस को हिमाचल की जनता ने पिछले कुछ चुनाव में सिरे से नकार दिया है। हर चुनाव में उन्हें बड़ी हार झेलनी पड़ रही है। इससे पार्टी के ही अन्दर फूट पड़ गई है। कांगड़ा से वीरभद्र सिंह को चुनौती देने वाले विजय सिंह मनकोटिया, विप्लव ठाकुर, चंद्रेश कुमारी, बीबीएल बुटेल और चौधरी चंद्र कुमार जैसे सियासतदार इस समय एकांतवास में चले गए हैं। चुनावी हार के बाद जीएस बाली और सुधीर शर्मा राजनीति से दूर हो गए हैं।
कांगड़ा में न सिर्फ कांग्रेस का अस्तित्व धूमिल हुआ है बल्कि सत्ता में रहने के बावजूद भी भाजपा यहां अपने नेतृत्व को लेकर लगातार संकट का सामना करती रही है। प्रदेश के सीएम जयराम रमेश ने 4 लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल किया। पर कोई भी जिले की बागडोर को नहीं संभाल सका। बिक्रम ठाकुर और सरवीण चौधरी तो अपने विधानसभा से निकले ही नहीं। वहीं कपूर प्रमोशन हासिल करते हुए दिल्ली पहुंच गए।
रामलाल, परमार, वीरभद्र और धूमल की सरकार में अहम पदों पर रहने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एवं राजनीतिक विश्लेषक केसी शर्मा कि माने तो सियासी शून्यता की स्थिति कांगड़ा जिले के लिए वांछनीय नहीं है। इस शून्य को भरने के लिए कांग्रेस व भाजपा को अपने भीतर आंतरिक विचार मंथन करने की जरुरत है। आपसी सुलह के साथ किसी युवा को जिले की राजनीतिक जिम्मेदारी दी जाएगी तभी जिले का भला संभव है।
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