सालों से गैरहाजिर दस डॉक्टर, खुद की दुकान खोल मरीजों का चल रहा इलाज, विभाग बना 'मौनी बाबा'
डॉक्टर खुद नौकरी छोड़ने की बजाए उम्मीद पाले बैठे है कि किसी तरह विभाग ही उन्हें बर्खास्त कर दें, जिससे उनके 25 लाख रुपए बच सके।

सरकार भले ही लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने का दम भरे, लेकिन सच्चाई इससे कोसो दूर है। नागरिक अस्पताल में इलाज से लेकर डॉक्टरों तक का भारी अभाव हैं। जबकि सरकार की नजर में नागरिक अस्पताल में पार्यप्त स्टाफ है, जबकि विभाग के रिकार्ड में 10 डॉक्टरों सालों से गैरहाजिर चल रहे है। गैरहाजिर रहने का कारण कोई परेशानी नहीं, बल्कि खुद की दुकान चलाकर लोगों का इलाज करना हैं।
जबकि ऐसे डॉक्टरों पर कार्रवाई की बात की जाए तो विभाग ने मौनी बाबा का रूप धारण किया हुआ है। डॉक्टर खुद नौकरी छोड़ने की बजाए उम्मीद पाले बैठे है कि किसी तरह विभाग ही उन्हें बर्खास्त कर दें, जिससे उनके 25 लाख रुपए बच सके। डॉक्टरों की अनुपस्थिति का मामले का खुलासा आरटीआई में हुआ है।
दरअसल, स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टर के पद पर नौकरी ज्वाइन करने से पहले चिकित्सक को 25 लाख रुपए का बॉन्ड भरकर देना होता है। बॉन्ड इसलिए भरवाया जाता है कि अगर समय से पहले चिकित्सक नौकरी छोड़े तो उससे रकम वसूली जा सके, लेकिन डॉक्टरों ने इसकी काट का नया तरीका इजात किया।
जिसके जरिए डॉक्टर समय से पहले नौकरी से गायब भी हो जाते है और फिर उसे पैसे भी नहीं चुकाने पड़ते, क्योंकि डॉक्टर खुद नौकरी छोड़ने की बजाए गैरहाजिर होते है, जिससे उन्हें खुद ही सरकारी स्तर पर बर्खास्त किया जा सके और फिर 25 लाख का भरा गया बॉन्ड भी माफ हो जाए।
इनकी वजह से नहीं मिल पा रहा इलाज
गैर हाजिर चल रहे चिकित्सकों की वजह से ही लोगों को नागरिक अस्पताल में बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि इनमें ज्यादातर डॉक्टर स्पेशलिस्ट है। विभाग के रिकार्ड में भले ही यह गैरहाजिर है, लेकिन सरकार की नजर में आज भी यहां पर्याप्त स्टाफ है, क्योंकि किसी डॉक्टर ने नौकरी नहीं छोड़ी है। ऐसे में जब तक गैरहाजिर डॉक्टरों पर फैसला नहीं हो जाता तब तक यहां पार्यप्त स्टाफ की उम्मीद करना बेमानी होगी।
आखिर कार्रवाई हो कैसे
विभाग में गैर हाजिर और सरकार की नजर में कभी तो वापस लौटने की उम्मीद, लेकिन कार्रवाई और इलाज...दोनों के परिणाम शून्य हैं। क्योंकि जब तक डॉक्टर खुद इस्तीफा ना दे तब तक उन्हें विभाग गैरहाजिर ही रखेगा और डॉक्टर इस उम्मीद में है कि कभी तो वो दिन आएगा, जिस दिन सरकार उन्हें नौकरी से बर्खास्त करेगी। ऐसे में अभी दोनों ही तरफ से किसी तरह की कोई चहल-पहल नहीं है। कारण यह है कि गैरहाजिर चल रहे डॉक्टरों से 25 लाख रुपए की राशि भी नियम अनुसार वसूली नहीं जा रही।
साल दर साल बढ़ी रही ओपीडी, इलाज नहीं
फिलहाल नागरिक अस्पताल में एक ही जनरल सर्जन है, डा. सुदर्शन पंवार है। इसके अलावा यहां सर्जन कोई नहीं है। जिससे ऑपरेशन जैसी स्थिति में काफी परेशानी होती है। विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 तक जो ओपीडी की संख्या प्रतिवर्ष 9078 थी वो अब बढ़कर 20313 पर पहुंच चुकी है। इसी प्रकार आईपीडी की भी संख्या बढ़ रही है।
हाईकोर्ट में पहुंचा मैनेजर
दो साल पूर्व एक बैंक मैनेजर के बेटे की अंबेडकर चौक स्थित एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी। बैंक मैनेजर ने चिकित्सक पर लापरवाही का आरोप लगाकर इस मामले में केस भी दर्ज कराया, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। उसके बाद बैंक मैनेजर ने डॉक्टर का खाका निकाला तो सामने आया कि डॉक्टर कई सालों से सरकारी अस्पताल से गैर हाजिर है और अपना खुद का अस्पताल चला रहा है। उसने नौकरी ज्वाइन करते समय भरा गया 25 लाख रुपए का बॉन्ड भी नहीं दिया। इसके बाद मैनेजर ने इस मामले को हाईकोर्ट में डाला। फिलहाल मामला हाईकोर्ट में लंबित है।
सरकार करें सख्त कार्रवाई
आरटीआई लगाकर डॉक्टरों की गैरहाजिरी का मामला उठाने वाले मोहल्ला छीपटवाड़ा निवासी साकेत धींगड़ा ने कहा कि सरकार ऐसे चिकित्सकों पर सख्त कार्रवाई कर 25 लाख रुपए वसूल करें जो नियम की काट ढूंढकर सरकार को बेवकूफ बना रहे है। साकेत ने कहा कि गैरहाजिर चिकित्सकों की वजह से ही लोगों को नागरिक अस्पताल में बेहतर चिकित्सका सेवा नहीं मिल पा रही है।
गैर हाजिर चिकित्सक
नाम गैरहाजिर
1. डा. नरेन्द्र कुमार
2. डा. पियुष यादव
3. डा. संजय गुप्ता
4. डा. विजय पाल यादव
5. डा. भानू प्रिया
6. डा. रतना रेखा
7. डा. ममता यादव
8. डा. रमाकांत यादव
9. डा. डा. विनय मोहन
10 डा. रवि यादव
गैरहाजिर चल रहे चिकित्सकों की रिपोर्ट महानिदेशक को भेजी जा चुकी है। इस पर किसी भी तरह का एक्शन महानिदेशक की तरफ से ही लिया जा सकता है। हमारी कोशिश नागरिक अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज देने की है। डा. अशोक कुमार, सीएमओ।
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