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225 से अधिक आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का रिकॉर्ड तलाश सरकार को भेजा, पर नहीं मिला सम्मान

आजाद हिंद फौज के परिवारों के प्रति सिस्टम द्वारा दिखाई जा रही उदासीनता के बावजूद श्री भगवान फौगाट हार मानने को तैयार नहीं है तथा उन्होंने एक बार फिर हरिभूमि के सामने अब तक तलाश किए गए आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के परिवारों को सम्मान मिलने तथा लातपा की तलाश होने तक अपने इस अभियान को जारी रखने का संकल्प दोहराया।

225 से अधिक आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का रिकॉर्ड तलाश सरकार को भेजा, पर नहीं मिला सम्मान
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भारत को आजादी मिले 70 साल से अधिक समय बीत चुका है। नेताजी सुभाष चंद बोस की अगवाई में आजाद हिंद फौज (आईएनए) का आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा, परंतु आजादी के बाद आईएनए के सिपाहियों को वह सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वे हकदार थे। श्रीभगवान फौगाट अपने परिवार का पालन-पोषण करने के साथ पिछले करीब 8 वर्षों से आजाद हिंद फौज के सिपाहियों व परिवारों को सम्मान दिलवाने के लिए पिछले कई वर्षों से लगे हुए हैं।

जिसके तहत अब तक गुमनानी के अंधेरे में खोए 225 से अधिक सिपाहियों का रिकार्ड खोजकर अगल-अगल माध्यमों से सरकार के पास भेज चुके हैं। सरकार के पास भेजी गई सूची में शामिल आजादी के सिपाहियों को सम्मान देने तथा अब भी लापता सिपाहियों का रिकार्ड खोजने में मदद के लिए अब तक दो दर्जन पत्र सरकार व विभिन्न जिलों के डीसी को भेजे जा चुके हैं, परंतु अभी तक न तो किसी परिवार को सम्मान मिला तथा न ही गुमनाम आजादी के सिपाहियों का रिकार्ड खोजने मेें मदद।

आजाद हिंद फौज के परिवारों के प्रति सिस्टम द्वारा दिखाई जा रही उदासीनता के बावजूद श्री भगवान फौगाट हार मानने को तैयार नहीं है तथा उन्होंने एक बार फिर हरिभूमि के सामने अब तक तलाश किए गए आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के परिवारों को सम्मान मिलने तथा लातपा की तलाश होने तक अपने इस अभियान को जारी रखने का संकल्प दोहराया।

उनका कहना है कि जिस कार्य के लिए मैं सरकार व जिला अधिकारियों के लिए दो दर्जन बार से अधिक पत्र लिख चुका हूं, उस काम को मुख्य सचिव चाहे तो चंद घंटों में पूरा कर सकते हैं। उनके पास अंग्रेजी सेना यूनिट आर्मी से आजादी के सिपाहियों के नाम व पत्त लेने का सैविधानिक अधिकार हैं, परंतु अब तक किसी भी अधिकारी ने अपने इस अधिकार का प्रयोग करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई।

जिस कारण आज भी आजाद हिंद फौज के सैकड़ों सिपाही गुमनामी के अंधेरे में खोए हुए हैं तथा हमारे द्वारा अपने स्तर पर खोजे गए परिवारों को भी आज तक सम्मान नहीं मिल पाया है। जिनके पराक्रम और बलिदान से आज नेता व अफसर देश व प्रदेश की जनता पर शासन कर रहे हैं, उन्हीं को सम्मान देने में दिखाई जा रही हिचक अधिकारियों व नेताओं की मनोदशा का दर्शाती हैं।

40 जिंदा सिपाहियों का रिकार्ड भी खोजा

श्रीभगवान का कहना है कि आईएनए की जांबाजों की खोज के दौरान उसे जिंदा लौटे 40 सैनिकों का रिकार्ड भी मिला था। जिनके नाम रिकार्ड के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के जिलों के अनुसार संबंधित जिला अधिकारियों व सरकार को भेज दिया गया था। जिनमें मुख्य रूप से हिसार, महेंद्रगढ, करनाल, गुरूग्राम, जींद, रोहतक व सोनीपत का नाम लिया जा सकता है।

954 होने का दावा

श्री भगवान फौगाट ने दावा किया कि रक्षा मंत्रालय तोपखाना रिकार्ड में 954 ऐसे सिपाही या शहीदों के नाम दर्ज हैं, जो अंग्रेजी सेना छोड़कर आजाद हिंद फौज में शामिल हुए थे। सांस्कृतिक मंत्रालय ने ऐसे जवानों की संख्या 1458 से ज्यादा बताई है। यदि अधिकारी व सरकार गंभीरता दिखाए तो ऐसे सैनिकों की संख्या और बढ़ सकती है तथा 225 के रिकार्ड तो वह खुद तलाश कर सरकार को भेज चुके हैं।

पहचान के बाद भी दांवपेज में उलझ जाता है सम्मान

श्रीभगवान फौगाट ने कहा कि सिस्टम में बैठे अधिकारी पहचान के बाद भी दांवपेंच लगाकर आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के आश्रितों को सम्मान से दूर रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। जिनमें पंजाब रेजीमेंट से कनीना निवासी हरफूल सिंह, हिसार के गांव राजली निवासी हरका राम, दादरी के रानीला निवासी बदलू राम, जींद के सफीदों निवासी रलदू राम, फतेहाबाद के जांडली निवासी लालजी राम का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास एक कई स्वतंत्रता सेनानियों की रिजेक्ट फाइल मौजूद हैं तथा थोड़े प्रयासों से गुमनामी के अंधकार में खोए वतन के सिपाहियों के रिकार्ड की तलाश कर उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा सकता है।

यह भी है बड़ी बाधा

श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि व्यक्तिगत तौर पर हमारे लिए प्रदेश के प्रत्येक कोने में पहंुच पाना संभव नहीं हो पाता। जिस कारण सहयोग लेने केि लिए तलाशी के बाद रिकार्ड जिला अधिकारियों व सरकार के पास भेजा जाता है। बावजूद इसके अधिकारी व सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूद आश्रितों तक सूचना नहीं पहुंच पाती। जिस कारण बहुत से आश्रित व परिजन आज भी इससे अनभिज्ञ हैं।

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