Haryana Assembly Election 2019: सांसदों और समीकरणों की पहेली में 12 सीटों पर उलझी भाजपा
भाजपा (BJP) ने अभी नारायणगढ़ (Narayangarh), पानीपत शहरी (Panipat City), गन्नौर (Gannaur), खरखौदा (KharKhauda), फतेहाबाद (Fatehabad), आदमपुर (Adampur), तोशाम, महम, कोसली, रेवाड़ी, गुरुग्राम और पलवल के लिए उम्मीदवार (Candidates) तय नहीं किए हैं। ये सीटें सांसदों और समीकरणों की पहेली में उलझी हुई हैं।

भाजपा (BJP) ने 78 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। लेकिन 12 सीटों पर प्रत्याशी (Candidates) तय करना बाकी है। ये वह सीटें हैं जहां उम्मीदवारों के बीच असल राजनीतिक कौशल का रण हो रहा है, वहीं भाजपा (BJP) के लिए यहां से उम्मीदवार तय करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है, क्योंकि हर सीट पर बगावत और नुकसान के खतरे हैं।
भाजपा ने अभी नारायणगढ़, पानीपत शहरी, गन्नौर, खरखौदा, फतेहाबाद, आदमपुर, तोशाम, महम, कोसली, रेवाड़ी, गुरुग्राम और पलवल के लिए उम्मीदवार तय नहीं किए हैं। ये सीटें सांसदों और समीकरणों की पहेली में उलझी हुई हैं। आइये जानते हैं, क्या राजनीतिक समीकरण हैं इसके पीछे।
नारायाणगढ़
2014 में यहां से भाजपा की टिकट पर विधायक बने नायब सिंह सैनी अब कुरुक्षेत्र के सांसद हैं। उन्होंने पत्नी सुमन सैनी के लिए टिकट मांगी थी, लेकिन वह राव इंद्रजीत की तरह अड़ने वाले व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए साइलेंट रहे। उन्हें सीएम की गुड बुक में भी माना जाता है। यहां से कैलाशो सैनी को भी चुनाव लड़ाने का आश्वासन मिला था।
इसके अलावा संघ के ही एक पुराने कार्यकर्ता मनीष मित्तल तो चुनाव के लिए वीआरएस तक ले चुके हैं। समीकरण ये भी हैं कि अगर दूसरी जगहों से सांसद के परिवार वालों को टिकट दी जाती है तो यहां भी सुमन सैनी को दी जाएगी। इसलिए ये सीट होल्ड पर है।
पानीपत शहरी
इस सीट से रोहिता रेवड़ी विधायक हैं। पहले मेयर के चुनाव में प्रचंड बहुमत और फिर लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के चलते यहां से भी संघ के पुराने कार्यकर्ता सक्रिय हैं। ऊपर से पानीपत शहरी सीट पर मौजूदा सांसद संजय भाटिया की पसंद नापसंद का भी ख्याल रखा जाना है। भाटिया प्रमोद विज को टिकट दिलाना चाहते हैं। प्रमोद विज के पिता फतेहचंद विज पांच बार विधायक रहे हैं। यही कारण है कि यह सीट भी फंसी हुई है।
गन्नौर
गन्नौर से 2014 में कुलदीप शर्मा कांग्रेस के विधायक बने थे। सांसद रमेश कौशिक अपने भाई देवेंद्र कौशिक को टिकट दिलाना चाहते हैं, लेकिन अभी पेंच फंसा है। यहां से युवा नेता देवेंद्र कादियान भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं और नहीं मिलने की सूरत में बागी होने का खतरा है। इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ी निर्मल चौधरी भी टिकट मांग रही हैं। कुल मिलाकर कई मजबूत दावेदारों में ये सीट उलझ गई है।
खरखौदा
कुलदीप काकरना 2014 में चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार प्रीतम, पवन खरखौदा टिकट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। रविंद्र दिलावर भी लाइन में हैं। पिछले चुनाव में पवन खरखौदा निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर रहे थे। ये टिकट भी बगावती तेवरों वाली सीट है इसलिए समय लग रहा है।
फतेहाबाद
ये सीट आदमपुर के चक्कर मेें अटकी है। यहां से भाजपा से बंटू भैया पहले अकेले दावेदार थे, लेकिन अब दूड़ाराम और बलवान सिंह दौलतपुरिया भी दावेदार हैं। भाजपा को एक टिकट बिश्नोई समाज को देनी है और आदमपुर या फतेहाबाद में से एक में दी जाएगी। आदमपुर में अगर कुलदीप बिश्नोई के सामने जाट प्रत्याशी होगा तो यहां दूड़ाराम को टिकट मिलेगी, नहीं तो दूसरे को भी मिल सकती है। बलवान सिंह भी इनेलो से भाजपा में आए हैं और 2014 में विधायक बने थे।
आदमुपर
यहां पार्टी ऐसा मजबूत प्रत्याशी देना चाहती है जो कुलदीप बिश्नोई को हरा सके। पिछली बार कांग्रेस के प्रत्याशी रहे सतेंद्र सिंह का यहां से मजबूत दावा माना जा रहा है, लेकिन संपत सिंह के आने की चर्चाएं खेल को रोचक बना रही हैं। बलवान सिंह दौतलपुरिया भी फतेहाबाद से टिकट नहीं मिलने की सूरत में आदमपुर से टिकट मांग रहे हैं। इसीलिए इस सीट पर प्रत्याशी तय नहीं हो पा रहा है। पिछली बार यहां से कर्णसिंह राणौलिया भाजपा के प्रत्याशी थे।
तोशाम
सांसद धर्मवीर बेटे मोहित के लिए टिकट मांग रहे हैं, लेकिन नियमों के फेर में उलझ गए हैं। भाजपा यहां पर किरण चौधरी के सामने नॉन जाट कंडीडेट लाना चाहती है और उसमें भी कई दावेदार हैं। बाहर से आए लोग भी और पार्टी के अंदर भी। मजबूत प्रत्याशी के चक्कर में यह सीट भी अभी अटकी हुई है।
महम
यहां से शमशेर खरकड़ा पिछली बार भाजपा के प्रत्याशी थे, लेकिन इस बार बलराज कुंडू भी तगड़े दावेदार हैं। सीट इन्हीं दोनों के बीच उलझी है, क्योंकि एक का बागी होना तय है और ऐसे में यहां भाजपा की जीत की उम्मीद भी धूमिल पड़ जाएगी क्योंकि फिर दांगी के मजबूत होने का खतरा है।
कोसली
यहां से विक्रम ठेकेदार विधायक थे जो पिछली बार राव इंद्रजीत के कोटे से टिकट लेकर आए थे, लेकिन इस बार राव साहब का हाथ उनपर नहीं है, लेकिन वे सार्वजनिक मंचों पर सीएम की तारीफ कर चुके हैं और एक तरह से सीएम कोटे से ही टिकट चाहते हैं। यहां से मुख्यमंत्री के नजदीकी एक दूसरे राजनेता की भी चर्चा हैं। राव साहब की हां ना के बीच ये सीट भी उलझी है।
रेवाड़ी
यहां से राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी के आरती राव के लिए टिकट चाहते हैं और अपने तेवर भी पार्टी को दिखा रहे हैं। इसी चक्कर में राव नरबीर की टिकट भी कट चुकी है लेकिन रेवाड़ी से प्रत्याशी तय करना पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। रणधीर कापड़ीवास फिलहाल विधायक हैं, लेकिन उन्हें भी टिकट के लिए राव इंद्रजीत की हां चाहिए होगी।
गुरुग्राम
उमेश अग्रवाल की टिकट पर कई तरह के संकट के बादल हैं और इसी वजह से कई संघ के कार्यकर्ताओं की टिकट पर उम्मीदें टिकी हैं। कुछ तो सीधे नागपुर तक पहुंच रखने वाले हैं और इसी उलझन में ये सीट उलझ गई है।
पलवल
यहां से पार्टी ऐसा उम्मीद्वार उतारना चाहती है जो कर्णसिंह दलाल को पटखनी दे सके। पार्टी के पास कई चेहरे हैं, लेकिन यहां भी सांसद की पसंद नापसंद आड़े आ रही है।
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