स्पॉट ब्वॉय से डायरेक्टर तक: जानिए डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर के सफर की कहानी
लिव-इन रिलेशन पर बनी अलग तरह की फिल्म है लुका छुपी बतौर सिनेमेटोग्राफर बॉलीवुड की कई बड़ी फिल्मों का हिस्सा रहे हैं लक्ष्मण उतेकर। दो मराठी फिल्में डायरेक्ट कर चुके लक्ष्मण ने पहली हिंदी फिल्म ‘लुका छुपी'' डायरेक्ट की है। वह सिनेमेटोग्राफी से फिल्म डायरेक्शन की फील्ड में क्या सोचकर आ गए? फिल्म ‘लुका छुपी'' किस तरह की फिल्म है? हिंदी फिल्म का डायरेक्शन उनके लिए कितना चैलेंजिंग रहा? बता रहे हैं अपनी जुबानी डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर।

लक्ष्मण उतेकर ने बतौर सिनेमेटोग्राफर अपने करियर की शुरुआत हिंदी ड्रामा ‘खन्ना और अय्यर’ से की थी। उन्होंने कई फिल्मों की सिनेमेटोग्राफी की, जिनमें प्रमुख हैं- ‘ब्लू’, ‘इंग्लिश-विंग्लिश’, ‘बॉस’, ‘तेवर’, ‘डियर जिंदगी‘, ‘हिंदी मीडियम’। साल 2014 में ‘तपाल’ नाम की मराठी फिल्म से लक्ष्मण सिनेमेटोग्राफर से डायरेक्टर बने। अब उन्होंने पहली हिंदी फिल्म ‘लुका छुपी’ डायरेक्ट की है। इस फिल्म और अपनी अब तक की जर्नी के बारे में बता रहे हैं लक्ष्मण उतेकर...
लिव-इन रिलेशन पर बनी फिल्मों से अलग है यह फिल्म
मैं मानता हूं इंडस्ट्री में पहले भी लिव-इन रिलेशन पर बेस्ड फिल्में बनी हैं लेकिन मेरी मानें तो फिल्म ‘लुका छुपी’ एक अलग तरह की लिव-इन पर बनी फिल्म है। इस फिल्म में एक कपल फैमिली के साथ लिव-इन में रह रहा है, वो भी ऐसी फैमिली जो संकुचित मानसिकता रखती है, उसकी नजर में शादी से पहले कपल का साथ में रहना पाप है। ऐसे में क्या सिचुएशन बनती है, परिवार वालों का क्या रिएक्शन आता है? यही सब फिल्म में बताया गया है।
चैलेंजिंग रहा फिल्म का डायरेक्शन
मेरे लिए इस फिल्म का डायरेक्शन काफी चैलेंजिंग रहा। दरअसल, मैं महाराष्ट्र से हूं और यह फिल्म नॉर्थ इंडियन स्टेट पर बेस्ड है। दोनों एक-दूसरे के एकदम विपरीत हैं, दोनों के कल्चर, पहनावे, स्वभाव में भी जमीन-आसमान का फर्क है। लेकिन एक सच यह भी है कि जब फिल्म मेकिंग चैलेंज हो जाए तो काम करने में और मजा आता है।
इसलिए बन गया डायरेक्टर
बतौर सिनेमेटोग्राफर मुझे अकसर ऐसा लगता था कि मैं कब तक डायरेक्टर के हिसाब से काम करूं, क्यों ना एक बार खुद भी बतौर डायरेक्टर अपना लक ट्राई करूं। मेरे लिए डायरेक्शन इसलिए भी आसान रहा है, क्योंकि मैंने बहुत एक्सपीरियंस एकत्र किया है। मैंने अपने इर्द-गिर्द बहुत से इमोशन देखे हैं और जब आप इतनी सारी चीजों से गुजरते हैं, तो उसे दूसरों के सामने पेश करने में सफल होते हैं। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना एक बार मैं भी यह कोशिश करूं।
बतौर स्पॉट ब्वॉय की थी शुरुआत
जब मैं सात साल का था, तब मैं मुंबई आया था। आठवीं में पहुंचते-पहुंचते मैंने काम करना शुरू कर दिया था। मैंने इंडस्ट्री में शुरुआत बतौर स्पॉट ब्वॉय की थी। उसके बाद थर्ड कैमरा अटेंडेंट से फर्स्ट कैमरा अटेंडेंट, असिस्टेंट कैमरामैन, इसके बाद सिनेमेटोग्राफर बनने का सिलसिला शुरू हुआ, इसके बाद जाकर सिनेमेटोग्राफर बना और अब डायरेक्टर। डायरेक्शन की शुरुआत मैंने मराठी फिल्म से की। मैंने मराठी की दो फिल्में डायरेक्टर की हैं, ‘लुका छुपी’ मेरी तीसरी और हिंदी की पहली डायरेक्टेड फिल्म है।
डायरेक्टर-स्टार की तरह इंपोर्टेंट हैं सेट-वर्कर
चूंकि मैं खुद स्पॉट ब्वॉय रहा हूं, इसलिए मैं अपने सेट पर जितने भी स्पॉट ब्वॉय होते हैं, उनकी उतनी ही इज्जत करता हूं, जितना कि एक प्रोड्यूसर की। मेरी मानें तो एक फिल्म के लिए जितना इंपॉर्टेंट डायरेक्टर और स्टार होता है, उतना ही इंपॉर्टेंट सेट का हर एक वर्कर होता है, उनके बिना फिल्म नहीं बना सकते हैं। हो सकता है मैं वहां से गुजरा हूं, इसलिए मेरी सोच ऐसी है।
मराठी और हिंदी सिनेमा में बहुत अंतर है मैंने मराठी और अब हिंदी फिल्म भी डायरेक्ट कर ली है। मेरे हिसाब से दोनों में बहुत अंतर है। मराठी फिल्में कंटेंट ओरिएंटेड होती हैं। वहां बजट बहुत कम होता है और थिएटर भी कम मिलते हैं। मैं खुद को बहुत लकी समझता हूं कि फिल्म ‘लुका छुपी’ के लिए मुझे दिनेश विजन बतौर प्रोड्यूसर मिले। उन्होंने मुझे शुरुआत से लेकर अंत तक वो सारी चीजें मुहैया करवाईं, जिसकी मुझे जरूरत थी। उन्होंने यहां तक भी कहा कि फिल्म अच्छी बनाओ या बुरी, बस अपने काम को एंज्वॉय करो। बिग बजट हिंदी सिनेमा का प्लस प्वाइंट है। इससे रिकवरी ज्यादा होती है और आपके आगे भी काम करने की गुंजाइश भी बढ़ जाती है।
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