मार्केटिंग से जुड़े लोग भी फिल्म को बर्बाद कर देते हैं : रणबीर शौरी
अब बॉलीवुड के कई कलाकार फिल्मों के साथ-साथ डिजिटल मीडियम पर भी नजर आ रहे हैं। रणवीर शौरी भी इन्हीं कलाकारों में हैं। उन्हें लगता है कि इस मीडियम से क्रिएटिविटी बढ़ेगी। रणवीर की नजर में किसी फिल्म की सक्सेस में मार्केटिंग का कितना कंट्रीब्यूशन होता है? बेबाक बातें रणबीर शौरी से।

निकिता त्रिपाठी : लगभग सत्रह सालों से रणवीर शौरी बॉलीवुड में एक्टिव हैं। वह हर तरह के किरदार निभा चुके हैं। दर्शकों को उनका कॉमिक अंदाज खूब भाता है। इस साल वह 'सोनचिड़िया' में एक डकैत के रोल में नजर आए थे। इस फिल्म से उन्हें काफी उम्मीदें थीं, लेकिन फिल्म नहीं चली। फिल्में करने के साथ-साथ रणवीर वेब सीरीज, शॉर्ट फिल्मों का हिस्सा भी बनते रहे हैं। इन दिनों भी वह 'मेट्रो पार्क' नाम की वेब सीरीज में काफी पसंद किए जा रहे हैं। हाल ही में रणवीर शौरी से मुलाकात हुई। इस मौके पर उनसे फिल्मों की सफलता-असफलता, अपकमिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़ी बातचीत हुई। पेश है बातचीत के चुनिंदा अंश-
आपकी पिछली फिल्म 'सोनचिड़िया' फ्लॉप हो गई, इस पर क्या कहेंगे?
जी हां, इस फिल्म के फ्लॉप होने से मुझे निराशा हुई। जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी थी तो कहानी बहुत अच्छी लगी। फिल्म उससे अच्छी बनी थी, लेकिन मुझे अहसास हुआ कि दर्शकों का इंट्रेस्ट वक्त के हिसाब से बदलता जा रहा है। इसके अलावा उनका अपना एक मूड भी होता है। इसके लिए मार्केटिंग को दोष दिया जा सकता है। मेरे हिसाब से इस फिल्म को अच्छे दर्शक मिलने चाहिए थे, जोकि नहीं मिले। इस बात का कहीं न कहीं गुस्सा भी है।
गुस्सा अपने आप पर आता है या दर्शकों पर?
अपने आप पर ही गुस्सा आता है। लेकिन इस बार थोड़ा गुस्सा दर्शकों पर भी आया।
लेकिन कहा तो यही जाता है कि दर्शक हमेशा सही होता है?
आपने एकदम सही कहा। मैं भी यही मानता हूं। मेरा मानना है कि अगर इसी फिल्म को हम किसी दूसरे वक्त में, बेहतर मार्केटिंग के साथ लाते तो ज्यादा अच्छे रिजल्ट दे सकती थी।
तो आप मानते हैं कि मार्केटिंग से जुड़े लोग भी फिल्म को बर्बाद करते हैं?
भाई, आजकल सारा खेल ही मार्केटिंग का हो गया है। फिल्म तो कोई भी बना लेता है। असल दारोमदार मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन पर होता है। अब तो लगता है कि दर्शकों की बजाय सारा गुस्सा मार्केटिंग वालों पर निकालना चाहिए।
इंडियन सिनेमा एक क्रिएटिव फील्ड है, जिसका सौ साल का इतिहास है। क्या इसका मार्केटिंग पर निर्भर होकर रहना ठीक है?
सिनेमा ही क्यों, आप हर चीज को देख लें। मोबाइल को देख लें। हर चीज मार्केटिंग के भरोसे ही चल रही है। सब कुछ बाजारवाद के अधीन होकर रह गया है। आप कौन-सा मोबाइल खरीदेंगे, यह भी मार्केटिंग पर ही निर्भर करता है।
आप मानते हैं कि बाजारवाद ने क्रिएटिविटी को नुकसान पहुंचाया है?
हां भी और नहीं भी। मार्केटिंग अपने आप में क्रिएटिव काम है। मार्केटिंग नई तरह की क्रिएटिविटी को क्रिएट कर रहा है, लेकिन यह क्रिएटिविटी को नुकसान भी पहुंचा रहा है।
आप कई वेब सीरीज कर रहे हैं। आप इस मीडियम का क्या फ्यूचर देखते हैं?
मैं देख रहा हूं कि सिनेमा के जरिए से जो क्रिएटिविटी की आवाजें दर्शकों तक पहुंचने का प्रयास कर रही थीं, उन्हें अब वेब सीरीज के रूप में एक नया मीडियम मिल गया है। यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन पर भी मार्केटिंग की परछाई आनी शुरू हो गई है। मैं भी एक वेब सीरीज 'मेट्रो पार्क' कर रहा हूं। इसे ऑडियंस पसंद कर रही है। आप पूरे परिवार के साथ बैठकर इसे देख सकते हैं।
रवीना टंडन का मानना है कि वेब सीरीज को सेंसरशिप के अंदर लाना चाहिए?
गलत बात है। ऐसे लोग मानव सभ्यता के विकास में बाधक हैं। मैं तो फिल्मों पर से सेंसरशिप हटाने की मांग कर रहा हूं।
आप अपने करियर से कितना खुश हैं?
मेरी कई बेहतरीन फिल्में बनकर तैयार हैं लेकिन वो सिनेमाघर नहीं पहुंचीं। इरफान खान के साथ पांच साल पहले एक फिल्म की थी। नाम याद नहीं लेकिन फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई। नवदीप सिंह ने निर्देशित किया था। एक फिल्म 'ले ले मेरी जान' है, इसमें मेरे साथ अनुपम खेर हैं। यह भी चार साल से बनकर तैयार है। एक फिल्म 'कैरी ऑन पांडू' की थी, यह हवलदार पर फिल्म थी लेकिन रिलीज नहीं हो पाई। इसके बावजूद मैं करियर में आगे बढ़ रहा हूं और खुश हूं।
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