फिल्मों में क्रिएटिविटी और अलग कंटेंट के जरिए सिनेमा को नई पहचान-नया आयाम दिया हैः अजीत अंधारे
साल 2001 में रिलीज हुई फिल्म ‘गदर-एक प्रेम कथा’ से बॉलीवुड में भी स्टूडियो सिस्टम की शुरुआत हुई थी। उसके बाद तमाम देश-विदेशी स्टूडियो भारत आए और बॉलीवुड में अपने पैर जमाने की कोशिश की।

साल 2001 में रिलीज हुई फिल्म ‘गदर-एक प्रेम कथा’ से बॉलीवुड में भी स्टूडियो सिस्टम की शुरुआत हुई थी। उसके बाद तमाम देश-विदेशी स्टूडियो भारत आए और बॉलीवुड में अपने पैर जमाने की कोशिश की।
लेकिन ‘के सेरा सेरा’, ‘अष्टविनायक’, ‘डिज्नी’ जैसे बड़े स्टूडियो को भी मनचाही सफलता नहीं मिली। कुछ स्टूडियो बंद होने की कगार पर हैं। लेकिन ‘इंकार’, ‘पद्मावत’, ‘अंधाधुन’, ‘बाजार’, ‘मंटो’, ‘टॉयलेट : एक प्रेम कथा’, ‘मैरी कॉम’ और ‘क्वीन’ जैसी कई सफलतम फिल्मों का निर्माण कर ‘वायकॉम 18’ स्टूडियो निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है।
अब ‘वायकॉम 18’ स्टूडियो ने हिंदी के अलावा मराठी, बांग्ला, तेलुगू और मलयालम जैसे क्षेत्रीय सिनेमा की तरफ भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं। इस समय ‘वायकॉम 18’ के सीओओ अजीत अंधारे हैं। वह अपने स्टूडियो की सफलता और आगे की योजना के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
बदलते सिनेमा में स्टूडियोज की भूमिका
हम खुद एक स्टूडियो चला रहे हैं। ऐसे में अपने मुंह अपनी तारीफ करना ठीक नहीं लगता। लेकिन मेरी सोच यह है कि सिनेमा में जो पूरा बदलाव आया, वह कॉर्पोरेट कंपनियों यानी स्टूडियो से ही संभव हुआ है।
इसमें ‘वायकॉम 18’,‘जी स्टूडियो’,‘यूटीवी डिज्नी’, ‘फॉक्स’ सभी का योगदान है। सिनेमा में जो बदलाव आया है, उसका नेतृत्व इन स्टूडियो ने ही किया है। स्टूडियोज के कारण ही नए-नए लेखक, नई नई कहानियां, नए-नए निर्देशक सिनेमा से जुड़े।
जहां तक ‘वायकॉम 18’ का सवाल है तो हम लोगों ने तो इसे अपना डीएनए ही बनाया हुआ है। हमने अलग तरह के विषयों पर फिल्में बनाईं। हमें यकीन था कि मल्टीप्लेक्स के दर्शक अलग तरह का सिनेमा देखने को इच्छुक हैं।
ऐसे में हमने बॉलीवुड मसाला और फॉर्मूला से हटकर फिल्मों का निर्माण किया। फिर चाहे वह ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ हो या ‘कहानी’ या ‘स्पेशल 26’ हो। अक्षय कुमार की इमेज एक्शन हीरो की थी, जिसे हमने अपनी फिल्मों से बदला।
हमने अक्षय कुमार से कॉमेडी किरदार करवाए। ‘स्पेशल 26’ और ‘ओह माय गॉड’ जैसी फिल्मों में दर्शकों ने अक्षय कुमार को एक नए रूप में पसंद किया। कुछ समय पहले उनकी आई फिल्म ‘टॉयलेट : एक प्रेम कथा’ भी आपको याद होगी।
इसे भी हम ही लेकर आए। इस तरह हमने सामाजिक मुद्दों को मनोरंजन के साथ पेश किया और एक नए सिनेमा की नींव रखी। हमने वूमेन ओरिएंटेड फिल्मों को भी प्रॉयोरिटी में रखा।
इतना ही नहीं नई-नई कहानियों को नए अंदाज में पेश करने की कोशिश की। मसलन, आप हमारी नई फिल्म ‘अंधाधुन’ को लें, इसमें ट्रेडिशनल कहानी का कोई हिस्सा नहीं है।
क्रिएटिविटी को लेकर रिस्क लिया
कई स्टूडियोज के बीच हमारे स्टूडियो की सफलता का राज कई लोग पूछते हैं। असल में हमारी सफलता के पीछे कुछ जरूरी और बुनियादी बातें हैं। जैसे हम नए-नए आइडिया के लिए खुले विचार रखते हैं।
नए लोगों को मौका देते हैं। साथ ही क्रिएटिव रिस्क के लिए नुकसान सहने को भी तैयार रहते हैं। वायकॉम 18 ने क्रिएटिव रिस्क बहुत लिया है। क्रिएटिव रिस्क लेते हुए हमने उन रास्तों को चुना, जिन्हें दूसरे चुनने से घबराते रहे हैं।
उसी से हम कुछ अलग कर पाए। हमने स्क्रिप्ट और बजट दोनों को ध्यान में रखकर फिल्में बनाई हैं। यह बात कुछ लोगों को खल सकती है, लेकिन मेरा विनम्रता से मानना है कि हमने फिल्मों में रचनात्मकता को एक नया आयाम, एक नई परिभाषा दी है।
चुनौतियों का किया सामना
ऐसा नहीं है कि हमें अचानक सफलता मिली, हमने भी बहुत से चुनौतियों का सामना किया है और कर भी रहे हैं। कई सारे दबाव हम पर भी होते हैं। लेकिन इस व्यवसाय का एक मूल मंत्र है कि इन सारे दबावों का प्रभाव अपने निर्णयों पर ना होने दें।
हम हर फिल्म को ईमानदारी से समझकर बनाते हैं। इसके बावजूद यह मानकर चलना पड़ता कि आपकी फिल्मों का सफलता का प्रतिशत सौ नहीं हो सकता।
फिर भी इन सारे दबावों को झेलते हुए हम अपनी फिल्म के प्रति ईमानदार रहते हैं और दर्शकों के प्रति भी ईमानदार रहते हैं, इससे नुकसान वाली नौबत नहीं आती है।
हमारे अपकमिंग प्रोजेक्ट्स
सबसे पहले हम हिंदी फिल्मों की बात करेंगे। हिंदी में सबसे बड़ी और रोचक फिल्म ‘ठाकरे’ है। ऐसा पहली बार होगा कि दो भाषाओं में बनी फिल्म एक ही सिनेमाघर में दो अलग-अलग स्क्रीन पर चल रही होंगी।
अब ऐसे में दोनों फिल्मों को लोगों का क्या रेस्पॉन्स मिलता है, यह देखने लायक होगा। इसके अलावा हम जॉन अब्राहम के साथ एक फिल्म ‘रॉ’ (रोमियो अकबर वाल्टर) बना रहे हैं।
इसके बाद हम इमरान और ऋषि कपूर के साथ रोमांचक फिल्म बना रहे हैं, जो कि एक वेनिस फिल्म का हिंदी रीमेक है। इसके अलावा हम पैरामाउंट कंपनी के साथ मिलकर अंग्रेजी भाषा की ‘बंबल’ के अलावा कुछ फिल्में ला रहे हैं।
‘बंबल’ दिसंबर में आएगी। इसके बाद हम ‘टॉप गर्ल’ ला रहे हैं। यह टॉम क्रूज की फिल्म है। ‘मिशन इम्पॉसिबल’ की फ्रेंचाइजी पर भी काम हो रहा है। हमने क्षेत्रीय सिनेमा का भी रुख किया है।
मराठी में डॉक्टर काशीनाथ घाणेकर और बाला साहेब ठाकरे पर बायोपिक फिल्में हैं। तेलुगू, तमिल में भी सक्रिय हैं, सूर्या के साथ हम दो फिल्में बना रहे हैं। मलयालम और बांग्ला में भी काम कर रहे हैं।
हम काफी समय से कोशिश कर रहे हैं कि स्पेस (अंतरिक्ष) फिल्म बनाएं। हकीकत यह है कि हिंदी फिल्में स्पेस पर नहीं पहुंची है। यह एक नया आयाम है। हमने इस पर अपनी तरफ से काफी काम किया है।
हम कल्पना चावला की बायोपिक बनाना चाहते हैं। इसके अलावा हमारा अपना मानना है कि हमने अब तक अपने देश की सांस्कृतिक धरोहर को सेल्यूलाइड के पर्दे पर पेश ही नहीं किया है।
हमें अपनी संस्कृति को सिनेमा के माध्यम से जो गौरव और जो इज्जत देनी चाहिए, वह नहीं दी है। हमने ‘पद्मावत’ जरूर बनाई, लेकिन यह एक ऐतिहासिक फिल्म थी।
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