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Aamir Khan Exclusive Interview: इन पांच सवालों के जवाब में आमिर खान ने खोले अपनी लाइफ के कई राज

आमिर खान ने कहा कि दस-पंद्रह साल की उम्र में मैंने कई सालों तक फाइनेंसियल प्रॉब्लम फेस की थी। दरअसल, मेरे अब्बा ताहिर हुसैन एक प्रोड्यूसर थे, लेकिन उनका बिसनेस सेंस शार्प नहीं था, उन्होंने कई कामयाब फिल्में बनाईं लेकिन पैसा नहीं कमाया।

Aamir Khan Exclusive Interview: इन पांच सवालों के जवाब में आमिर खान ने खोले अपनी लाइफ के कई राज
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तीस साल पहले सुपरहिट फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ ने बॉलीवुड को एक ऐसा स्टार दिया, जो आज तक छाया हुआ है-आमिर खान। उन्होंने ‘लगान’, ‘रंग दे बसंती’, ‘तारे जमीं पर’ और ‘दंगल’ जैसी शानदार फिल्में दीं। आमिर की सबसे बड़ी खूबी है, वह जो भी काम करते हैं पूरी संजीदगी से करते हैं, उसको उस अंजाम तक पहुंचाने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं, जहां पर उसे खूबसूरती के साथ पहुंचना चाहिए। इसलिए उन्हें मिस्टर परफेक्शनिस्ट भी कहा जाता है। सिनेमा के प्रति पूरी तरह समर्पित आमिर अब तक की अपनी जर्नी से कितने संतुष्ट हैं? फिल्म इंडस्ट्री में लंबा समय बीता चुके आमिर क्या बदलाव देख रहे हैं? ‘कयामत से कयामत तक’ के दौरान और इसके बाद उन्हें इंडस्ट्री में जो एक्सपीरियंस मिले, साझा कर रहे हैं आमिर खान...

फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ को रिलीज हुए तीस साल हो गए हैं। क्या आपने कभी सोचा था कि आपकी यह फिल्म इतनी बड़ी हिट साबित होगी?

इस फिल्म की रिलीज को लेकर मैं काफी एक्साइटेड था, लेकिन फिल्म इतनी बड़ी हिट होगी यह मैंने कभी नहीं सोचा था और ना ही मुझे इस बात का अंदाजा था। इसकी वजह यह थी कि इस फिल्म को बेचने में नासिर साहब (प्रोड्यूसर) को पूरे एक साल लग गए थे। कोई भी इस फिल्म को खरीदने के लिए तैयार नहीं था। फिल्म के कलाकार एकदम नए थे, इसलिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। जैसे-तैसे कुछ लोग फिल्म खरीदने के लिए रेडी हुए लेकिन उन्होंने डायरेक्टर मंसूर साहब के आगे तीन शर्त रखीं, पहली यह कि फिल्म का टाइटल बहुत बड़ा है, इसे छोटा किया जाए। दूसरी फिल्म का एंडिंग सैड है, उसे हैप्पी एंडिंग दी जाए और तीसरी कि फिल्म के जो गाने हैं, वो दमदार नहीं हैं, सो फिल्म के चारों गाने बदल दिए जाएं। लेकिन मंसूर साहब ने उनकी एक भी शर्त नहीं मानी, उन्होंने कहा फिल्म जैसी है, वैसी ही रिलीज होगी, आपको फिल्म नहीं दिखानी तो ना दिखाएं। ऐसे में उस वक्त मेरे लिए फिल्म का रिलीज होना ही बहुत बड़ी बात थी, उसके हिट-फ्लॉप के बारे में क्या सोचता।

कहा जाता है कि यह फिल्म तीन हफ्तों बाद ही सिनेमा घरों से उतरने लगी और फिर वापस लगी, ऐसा क्यों हुआ?

जी हां, यह बात बिल्कुल सही है। दरअसल, मैंने नासिर साहब से कहा था कि अगर यह फिल्म हम दिवाली, ईद जैसे बड़े मौके पर लगाएंगे तो हमारी यह फिल्म बाकी फिल्मों के बीच फुटबॉल बनकर रह जाएगी। फिल्म कब आई, कब उतर गई, कोई नहीं जान पाएगा। इसलिए फिल्म को रिलीज करने के लिए हमें वीक पीरियड का चुनाव करना चाहिए। उस समय वीक पीरियड खासकर तीन थे, एक रमजान, दूसरा श्राद्ध और तीसरा प्री दिवाली। इस समय कोई अपनी फिल्म रिलीज नहीं करता था, सो हमने सोचा कि ऐसे में हमारी फिल्म के साथ ना तो कोई दूसरी फिल्म रिलीज होगी और ना ही आने वाले तीन हफ्ते कोई फिल्म आएगी, इससे खुद को इस्टैब्लिश्ड करने के लिए हमारे पास तीन हफ्ते होंगे, सो हमने रमजान के महीने में फिल्म रिलीज की। पहले हफ्ते बहुत अच्छी सफलता मिली, दूसरे हफ्ते कुछ कम हुई और तीसरे में और ज्यादा कम हो गई। नतीजतन कुछ सिनेमाघरों से फिल्म उतरने लगी। उस समय फिल्में माउथ पब्लिसिटी से चलती थीं, जिसमें तीन से चार हफ्ते लग जाते थे। हमारी फिल्म के साथ भी ऐसा ही हुआ और फिर चौथे हफ्ते फिल्म ने बहुत शानदार कामयाबी हासिल की, ऐसे में जिन सिनेमा घरों से फिल्म उतरी थी, वहां फिर लग गई।

इस फिल्म के साथ आपको एक फिल्म स्टार बने तीस साल का समय हो गया, कैसी रही आपकी जर्नी, आपने क्या सीखा अपने सफर से?

मेरी जर्नी बहुत ही एक्साइटिंग रही, जब मैं अपनी इस जर्नी के बारे में सोचता हूं तो लगता है तीस साल इतनी जल्दी बीत गए, पता ही नहीं चला। खैर, मैंने अपनी जर्नी से एक बात सीखी है। वो यह कि मुझे वही काम करना है, जिससे मुझे खुशी मिले। दरअसल, फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के हिट होने के बाद मैंने एकसाथ आठ-दस फिल्में साइन कर ली थीं। मैंने उन फिल्मों में काम करना भी शुरू कर दिया, लेकिन मुझे खुशी और सैटिस्फैक्शन नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि मैं जिन प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स के साथ काम कर रहा था, उनसे मेरी सेंसिबिलिटी और सोच बिल्कुल भी नहीं मिलती थी। जब एक डायरेक्टर और एक्टर की सोच नहीं मिलती है तो फिल्म कुछ और ही बन जाती है। मैं रोज घर में आकर रोता था, क्योंकि आने वाले तीन साल मुझे इसी तरह मन मारकर काम करना था। वे फिल्में एक के बाद एक रिलीज होती गईं और सिनेमाघरों में पिटती गईं। मीडिया ने मुझे वन फिल्म वंडर का खिताब दे दिया था। मुझे लगा जैसे मेरा करियर बस खत्म होने को है। उस वक्त मैंने अपने आपसे ये वादा किया कि मैं आज के बाद ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस काम से मुझे खुशी ना मिले। कहा जाता है कि जब आप कमजोर हो जाते हैं, तो कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, लेकिन मैंने अपने बुरे दौर में भी कॉम्प्रोमाइज नहीं किया।

आपके अनुसार तब से लेकर आज तक इंडस्ट्री कितनी बदली है। एक्टर बनना तब मुश्किल था या आज मुश्किल है?

इंडस्ट्री में काफी बदलाव आए हैं, फिल्म बनने के तरीके से लेकर फिल्म के कॉन्सेप्ट में भी। जहां तक एक्टर बनने का सवाल है, मुझे लगता है कि उस वक्त स्टार बनने के लिए आपको खुद को प्रूव करना होता था। शायद आप यकीन ना करें लेकिन ‘कयामत से कयामत तक’ के सुपरहिट होने के बाद भी मुझे उन तक पहुंचने में बहुत समय लग गया, जो उस दौर के काफी मशहूर और कामयाब लोग थे। मैंने पहले ही उन डायरेक्टर्स की लिस्ट बनाई थी, जिनके साथ मुझे काम करना था, लेकिन अफसोस कि शुरुआत के तीन साल भी उन डायरेक्टर्स ने मुझे कोई फिल्म ऑफर नहीं की। पहले एंटरटेनमेंट मीडिया नाम की कोई दुनिया भी नहीं थी। एंटरटेनमेंट की खबरें बस मैग्जीन में आती थीं। उस समय कुछ गिने-चुने अखबार थे, जिसमें हफ्ते में एक बार एंटरटेनमेंट की कोई खबर छपती थी। उस वक्त इतने चैनल्स भी नहीं थे, इतने जर्नलिस्ट भी नहीं थे। वो समय अलग था, काफी डिफिकल्ट था। आज तो लोग बहुत जल्दी स्टार बन जाते हैं। कुछ दिनों में उनकी फोटो भी छपने लगती है। आज सोशल मीडिया के जरिए एक्टर्स भी अपने चाहने वालों से सीधे बात कर पाते हैं, फैंस अपनी फीलिंग शेयर कर सकते हैं, उस वक्त ऐसा कुछ नहीं था।

बताया जात है, बचपन में आप बहुत बड़ी फाइनेंसियल प्रॉब्लम से गुजरे थे, उस वक्त ने आपको क्या सिखाया?

जी हां, दस-पंद्रह साल की उम्र में मैंने कई सालों तक फाइनेंसियल प्रॉब्लम फेस की थी। दरअसल, मेरे अब्बा ताहिर हुसैन एक प्रोड्यूसर थे, लेकिन उनका बिसनेस सेंस शार्प नहीं था, उन्होंने कई कामयाब फिल्में बनाईं लेकिन पैसा नहीं कमाया। उन्होंने हमेशा अपने परिवार को कंफर्टेबल लाइफ दी, उन्होंने हमें हमेशा अच्छे से अच्छी जिंदगी दी। उनकी एक फिल्म बनने में तीन साल का समय लगा था और एक दूसरी फिल्म आठ साल तक बनती रही, नतीजतन पूरे परिवार को फाइनेंसियल प्रॉब्लम से गुजरना पड़ा। उन्होंने उस वक्त लोन भी लिया था। अब्बा ने जिनसे उधार लिए थे, रोज उनके फोन आते। अब्बा बस यही कहते कि फिल्म रिलीज होते ही पैसे लौटा दूंगा। मेरे अब्बा एक ईमानदार इंसान थे, वो एक्टर्स को उनकी फीस और कर्ज देने वाले को पैसा देना चाहते थे, लेकिन परिस्थिति उनके विपरीत थी, ऐसे में उन्हें कैसी मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ा होगा, मैं समझ सकता हूं। खैर, शुक्र है कि हम उस परिस्थिति से बाहर आ गए, लेकिन हां, मैंने उस वक्त यह जरूर सीखा लाइफ में कुछ भी बनना है एक्टर, डायरेक्टर लेकिन प्रोड्यूसर नहीं बनना, वरना अब्बा जैसे हालात हो सकते हैं।

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