PM मोदी की अध्यक्षता वाली हाई पावर कमेटी का फैसला, रायपुर के सीएसपी रहे मप्र के शुक्ला CBI के नए बॉस, कहा छग में बैन पर करेंगे बात
पिछले 3-4 महीनों में तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के बाद पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली हाई पावर कमेटी ने शुक्ला का नाम फाइनल कर दिया। वे दो साल तक इस पद पर रहेंगे।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि रायपुरCreated On: 3 Feb 2019 10:44 AM GMT
नई दिल्ली। पिछले 3-4 महीनों में तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के बाद पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली हाई पावर कमेटी ने शुक्ला का नाम फाइनल कर दिया। वे दो साल तक इस पद पर रहेंगे। यानी कार्यकाल 31 अगस्त 2020 तक।
हालांकि, ये कांटों भरा पद ही है। शुक्ला मप्र पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन के चेयरमैन थे। वे मूलत: ग्वालियर के रहने वाले हैं। गौरतलब हो कि 10 जनवरी को आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर पद से हटाने के बाद से ही यह पद खाली था। इससे एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने नियमित डायरेक्टर की नियुक्ति न होने पर नाखुशी जताई थी।
गौर हो कि सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति करने वाली हाई पावर कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया शािमल होते हैं। इस समिति का गठन लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत किया गया है। इससे पहीले केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पास सीवीसी कानून के तहत इस नियुक्ति के अधिकार थे। सीबीआई निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति की शुक्रवार शाम हुई लंबी बैठक में कई नामों पर चर्चा हुई थी।
बैठक में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की आपत्ति को दरकिनार कर समिति ने तीन नामों की सिफारिश नियुक्ति संबंधी कैबिनेट कमेटी कोे भेज दी थी। शनिवार को नए निदेशक के रूप में ऋषि कुमार शुक्ला के नाम का ऐलान हो गया। सीबीआई प्रमुख के एिल सिलेक्शन कमेटी ने मांच नाम तय किए थे। ये नाम थे 1983 बैच के मप्र के डीजीपी रहे आरके शुक्ला, 1983 बैच के डीजी सीआरपीएफ आरआर भटनागर, 1984 बैच के स्पेशल सीबीआई डायरेक्टर अरविंद कुमार, डायरेक्टर एनसीएफएस जावेद अहमद और डीजी बीपीआर एपी माहेश्वरी। इनमें आरके शुक्ला के नाम पर मुहर लगी।
हरिभूमि से कहा ये पद बड़ी चुनौती
मध्यप्रदेश में ढ़ाई साल डीजीपी रहे 1983 बैच के अफसर ऋषि कुमार शुक्ला सीबीआई के डारेक्टर बनाए गए हैं। यह पता चलते ही राजधानी के चार इमली स्थित उनके आवास पर बधाई देने वालों का तांता लग गया। इसमें पुलिस मुख्यालय के अफसरों से लेकर कई आईएएस अफसर भी शामिल थे। शुक्ला ने कहा, मुझे प्रदेश से वह सब कुछ मिला है। जिसको सीबीआई में अपनाने की कोशिश करूंगा।
उन्होंने इस जिम्मेदारी को अपने लिए चुनौती भरा माना है और कहा कि जिन भी मुद्दों पर गतिरोध होगा, उनको राज्यों से एक प्रक्रिया के तहत बातचीत के बाद फैसला लिया जाएगा। उनका आशय छत्तीसगढ़ और पंत. बंगाल में सीबीआई की एंट्री के बैन को लेकर था।
चुनौतियां बेशुमार विवाद धुआंधार
- शुक्ला को ऐसे वक्त में सीबीआई की कमान मिली है जब वह प्रमुख जांच एजेंसी लगातार ऐसी वजहों से चर्चा में है, जो उसकी सााख के लिए ठीक नहीं है। शुक्ला को इस एजेंसी की खोई हुई साख लौटानी होगी।
- तीन राज्यों ने सीबीआई की एंट्री के बैन का ऐलान किया हुआ है। शुक्ला के सामने यह चुनौती होगी कि इस हालात से कैसे निपटा जाए।
- अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम, कोयला घोटाला, 2जी घोटाला, यूपी का अवैध खनन घोटाला, सारदा व रोजवैली चिटफंड घोटाला और पी. चिदंबरम व भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ जांच जैसे हाई प्रोफाइल मामलों से निपटने की भी चुनौती होगी।
रायपुर में पहली पदस्थापना
जन्म 23 अगस्त 1960 में। बीकॉम तक पढ़ाई करने के बाद 1983 में वे भारतीय पुलिस सेवा में आए थे। प्रशिक्षण के बादशुक्ला की पहली पद स्थापना 1985 में अविभाजित मध्य प्रदेश के रायपुर जिले में सीएसपी के तौर पर की गई थी। उसके बाद वे एएसपी शिवपुरी बनाए गए थे। वर्ष 1987 में उन्हें जिले की कमान सौंपी गई थीं एसपी के तौर पर उनकी पहली पद स्थापना दमोह जिले में की गई थी।
शुक्ला सीबीआई में रहे आईजी
वर्ष 2004 में वे प्रतिनियुक्ति में चले गए थे और 2007 में वापस आए थे। प्रतिनियुक्ति के दौरान वे सीबीआई में पदस्थ थे। उनकी पदस्थापना भोपल आईजी सीबीआई के तौर पर थी। मध्यप्रदेश वापसी के बाद आईजी एसएएफ भोपाल, आईजी सुरक्षा और आईजी एससटीएफ के पद पर रहे। हाल ही में हाउसिंग कॉर्पोरेशन से रिटायर्ड हुए।
मप्र में दूसर बार गौरव का मौका
सीबीआई डायरेक्टर बनाए गए ऋषि कुमार शुक्ला के माध्यम से प्रदेश को केन्द्रीय स्तर पर भारतीय पुलिस सेवा की तरफ से दूसरी बार नेतृत्व करने का मौका मिला है। इससे पहले रॉ के चीफ एके धस्माना बने थे। धरमान भी मध्यप्रदेश के कैडर के आईपीएस हैं। फिलहाल धस्माना का कार्यकाल छह महीने सके लिए बढ़ाया गया है।
अब तक ये सीन था: बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे शीर्ष अफसर
वर्मा को डायरेक्टर पद से हटाने के बाद केंद्र सरकार ने एम. नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर नियुक्त किया था। तथी से सीबीआई डायरेक्टर का पद खाली था। इससे पहले, पिछले साल नवंबर में सीबीआई का अंदरूनी घमासान तब सतह पर आ गया जब तत्कालीन डायरेक्टर आलोक वर्मा और तत्कालीन स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक दूसरे के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप लगाए थे।
अस्थाना के खिलाफ तो सीबीआई ने केस भी दर्ज कर यिला, जिसके बाद मामला और गंभीर हो गया। बाद में केंद्र सरकार ने दखल देते हुए वर्मा और आस्थाना दोनेां को जबरन छुट्टभ् पर भेज यिा और एम. नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर नियुक्त कर दिया। केंद्र ने दानेां अफसरों को छुट्टी पर भेजे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट को तब बातया था कि सीबीआई के दोनों शीर्ष अफसर बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे।
वर्मा ने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर जनवरी में कोर्ट ने उन्हें बतौर सीबीआई डायरेक्अर बहाल करने का आदेश दिया। हालांकि, बाद में पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली हाई पावर्ड कमेटी ने 2.1 के बहुमत से लिए गए फैसले में वर्मा का सीबीआई से बाहर तबादले का आदेश दिया, जिसके बाद वर्मा ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था।
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