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क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का बेहतरीन कार्य, बाल दिवस पर 11 बिछड़ों को मिलवाया
एक जनवरी से 14 नवंबर के बीच इस यूनिट की टीम ने कुछ एनजीओ के साथ मिलकर 617 बिछड़े बच्चों को रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों व अन्य जगहों से रेस्क्यू करवाकर उनके परिवारों से मिलवाया है।

क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट विभिन्न कारणों से अपना घर छोड़ शहर की भीड़ में खो गये सैंकड़ों बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाने का सराहनीय कार्य कर रही है। गत वर्षों की तरह ही इस साल भी एक जनवरी से 14 नवंबर के बीच इस यूनिट की टीम ने कुछ एनजीओ के साथ मिलकर 617 बिछड़े बच्चों को रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों व अन्य जगहों से रेस्क्यू करवाकर उनके परिवारों से मिलवाया है। बाल दिवस के मौके पर इस बार भी पुलिस ने 11 बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाया है।
1 नवंबर से 14 नवंबर के बीच एक बार फिर इस यूनिट ने रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों से 27 बच्चों को रेस्क्यू करवाया जिनमें से 11 बच्चों को रोहिणी सेक्टर-16 स्थित क्राइम ब्रांच के दफ्तर में बाल दिवस पर एक कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें परिवारों से मिलवाया गया। अपनी जिंदगी का सबसे कीमती तोहफा यानि अपने बच्चों को दोबारा मिलकर सभी माता-पिता की खुशी देखते ही बन रही थी। बिछड़े बच्चों को अपनों तक पहुंचाने में साथी और प्रयास जैसी एनजीओ का भी पुलिस को भरपूर सहयोग मिल रहा है।
कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो विभिन्न शेल्टर होम में रह रहे हैं। उनके परिवारों तक पहुंचने का प्रयास लगातार यह यूनिट कर रही है। एडिशनल सीपी बी के सिंह के दिशा-निर्देश में एसीपी सुरेंद्र गुलिया और उनकी टीम के मेंबर इंस्पेक्टर महेश पांडेय, एएसआई बिरेंद्र, बहादुर शर्मा, कुलदीप, विजेंद्र, हेडकांस्टेबल नवीन पांडेय और प्रफुल्ल चंद्रा इस काम को बड़ी ही मेहनत व इमानदारी से कर रहे हैं। एसीपी सुरेंद्र गुलिया ने बताया कि इनमें ज्यादातर बच्चे यूपी और बिहार के रहने वाले होते हैं।
कुछ बच्चे विभिन्न कारणों से बिना टिकट ट्रेन में चढ़कर दिल्ली पहुंच जाते हैं तो कुछ अपनी पारिवारिक स्थिति के कारण काम की तलाश में दिल्ली आ जाते हैं। इनमें कई ऐसे भी होते हैं जो अपने माता-पिता की डांट के बाद घर छोड़ देते हैं। पुलिस और एनजीओ साथी की टीमें रेलवे स्टेशनों व बस अड्डों के अलावा विभिन्न शेल्टर होम में रह रहे बच्चों से प्यार से बात करती है। उनसे मिले छोटे से छोटे क्लू को जोड़कर कड़ियां बनाई जाती है और आखिर में उनके पते-ठिकाने पर पहुंचा जाता है। पुलिस की तरफ से इन बच्चों को स्कूल बैग, किताबें और कपड़े भी वितरित किये जाते हैं ताकि वह फिर से अन्य बच्चों की तरह ही स्कूल जा सकें।