जानें क्या है आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों का पूरा मामला, ऐसे हुई थी कार्रवाई
दिल्ली सरकार को चुनाव आयोग से बड़ा झटका लगा है। दिल्ली में आम आदमी सरकार के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है।

दिल्ली सरकार को चुनाव आयोग से बड़ा झटका लगा है। दिल्ली में आम आदमी सरकार के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेज दी है।
निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट पर अब वहीं इस बात का अंतिम फैसला लिया जाएगा कि इन विधायकों की सदस्यता खत्म की जाए या नहीं? लेकिन एक बात साफ है कि यदि विधायकों की सदस्यता रद्द की जाती है तो यह आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है।
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क्या है मामला
आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया था।
इसके बाद जरनैल सिंह के पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राजौरी गार्डन के विधायक के रूप में इस्तीफा देने के साथ उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई थी।
आयोग का कहना है कि जब हाईकोर्ट ने विधायकों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताकर उन्हें दरकिनार कर दिया था, तब ये विधायक 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 तक ‘अघोषित तौर पर’संसदीय सचिव के पद पर थे।
राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह ‘लाभ का पद’ है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। इससे पहले मई 2015 में चुनाव आयोग के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी।
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दिल्ली सरकार ने इस विधेयक में किया था संशोधन
दिल्ली सरकार ने दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन ऐक्ट-1997 में संशोधन किया था। इस विधेयक का मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से छूट दिलाना था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नामंजूर कर दिया था।
ऐसे फंसे थे आप के 20 विधायक
बता दें कि दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की नियुक्ति मार्च 2015 में की थी, जबकि इसके लिए कानून में जरूरी बदलाव कर विधेयक जून 2015 में विधानसभा से पास हुआ। इस विधेयक को केंद्र सरकार से मंजूरी आज तक नहीं मिली है।
केंद्र ने उठाए थे कई सवाल
दूसरी तरफ, केंद्र सरकार ने विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का विरोध करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में आपत्ति जताई थी। केंद्र सरकार ने कहा था कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा। इन विधायकों को यह पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
संविधान के अनुच्छेद 102(1)(A) और 191(1)(A) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई सदस्य अगर लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है। यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है।
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अगर राष्ट्रपति इसको पास कर देते हैं तो ये होगा
अगर इस बिल पर राष्ट्रपति मुहर लगा देते तो यह कानून बन जाता और फिर इलेक्शन कमीशन भी कुछ नहीं कर पाता। मगर अब राष्ट्रपति ने इसे साइन करने से मना कर दिया है। तो ऐसे में पूरी रिपोर्ट राष्ट्रपति के पास भेजी जाएगी।
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